![प्रथम विश्व युद्ध कारण तथा परिणाम [UPSC Notes]](https://mlvvxpsmh4vh.i.optimole.com/w:auto/h:auto/q:mauto/f:best/id:37348cc3e1e03ab050aa3fd720ee8d25/https://naraynum.com/प्रथम-विश्व-युद्ध-कारण-तथा-परिणाम-UPSC-Notes.jpg)
प्रथम विश्व युद्ध –
मूलतः साम्राज्यवादी शक्तियों के बीच उपनिवेशों की छीना-झपटी, इनकी साम्राज्य-लिप्सा, विस्तारवादी महत्वाकांक्षा तथा अपने उद्योग व व्यापार को संरक्षण देने की प्रवृत्ति के कारण इन यूरोपीय शक्तियों के बीच टकराव होते रहे जिनके कारण यूरोप में तनाव बढ़ गया | यूरोप के देश अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए परस्पर विरोधी गुटों में शामिल होकर अपनीं-अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाने लगे | जिससे यूरोप सैन्य शिविर बनकर रह गया | यूरोप में 20 वीं शताब्दी के प्रथम दशक में दो विरोधी गुट बन गए | 1882 ई० में जर्मनी, आस्ट्रिया-हंगरी और इटली ने मिलकर ट्रिपिल एलायंस (Triple Alliance) और 1907 में फ्रांस, रूस और ब्रिटेन ने ट्रिपिल आटा अर्थात् त्रि-राष्ट्रीय मैत्री (Triple Entente) का निर्माण कर लिया | इन गुटों की पारस्परिक प्रतिस्पर्द्धा व अंतर्विरोध के कारण यूरोप का वातावरण तनावग्रस्त हो गया था | इसी समय सेरोजिवो से आस्ट्रिया के युवराज और उसकी पत्नी के हत्याकांड के फलस्वरूप 28 जुलाई, 1914 ई० को एक ऐसा युद्ध प्रारंभ हुआ जिसने सम्पूर्ण विश्व को प्रभावित किया |
1914 ई० के प्रारंभ में इस युद्ध ने पूरी दुनिया को अपने प्रभाव-क्षेत्र में समेट लिया | इस लड़ाई में जितनी बर्बादी हुई, उतनी मानव-इतिहास में पहले कभी नहीं हुई थी | वास्तव में यह सर्वव्यापी युद्ध था | इस युद्ध ने सारी दुनिया की अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया | इस युद्ध में हुई भीषण बमबारी से असंख्य लोगों की जाने गयीं तथा धरती पर अकाल पैदा हो गया | इस युद्ध का प्रभाव अभूतपूर्व था | इसने दुनिया के इतिहास को एक नया मोड़ दिया | इसके अभूतपूर्व फैलाव और व्यापक स्वरूप के कारण ही इसे प्रथम विश्वयुद्ध कहा जाता है और इसकी अवधि लगभग 4 वर्षों तक थी |
प्रथम विश्व युद्ध के कारण –
इस युद्ध का कोई भी एक कारण नहीं था | इसके अनेक कारण थे जिस कारण प्रथम विश्व युद्ध का प्रारंभ हुआ | यह कारण इस प्रकार हैं –
1. साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्द्धा –
निःसंदेह यूरोपीय देशों ने विस्तारवाद की जो प्रक्रिया आरम्भ की थी वह आगे चलकर प्रथम विश्वयुद्ध का कारण बनी | आरम्भ में सन्धियों के माध्यम से उत्पन्न संघर्ष को टाला जाता रहा किन्तु 20 वीं सदी के प्रारंभ से स्थितियों में बदलाव आया | जर्मनी के एकीकरण के बाद इतना औद्योगिक विकास हुआ कि 1914 तक उसने लोहे और इस्पात के उत्पादन में ब्रिटेन और फ्रांस को पीछे छोड़ दिया | 1912 में निर्मित जर्मनी का जहाज ‘इंपरेटर’ उस समय का सबसे बड़ा जहाज था | जर्मनी ने बर्लिन से बगदाद तक रेलवे लाइन बिछाकर उस्मानिया (तुर्की) की अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण करना चाहा, इससे ब्रिटेन, फ्रांस था रूस डर गए | इसी प्रकार अन्य साम्राज्यवादी देशों, जैसे – जापान, इटली, आस्ट्रिया आदि के हितों के आपसी टकराव और प्रतिस्पर्द्धा के कारण युद्ध अपरिहार्य हो गया |
2. जर्मनी का एकीकरण व उत्थान –
औद्योगिक उत्थान के बाद जर्मनी भी साम्राज्य-विस्तार की दौड़ में शामिल हो गया | अन्य साम्राज्यवादी शक्तियों की भांति जर्मनी ने भी कच्चे माल की आपूर्ति व सुरक्षित बाजार की आवश्यकता के लिए एशिया व आफ्रीका के क्षेत्रों पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने का प्रयास प्रारंभ कर दिया | जिससे रुष्ट होकर फ्रांस व ब्रिटेन ने इसका कड़ा विरोध किया | यह विरोध आगे चलकर प्रथम विश्व युद्ध का कारण बना |
3. विरोधी गुटों का उदय –
साम्राज्यवाद व सीमा-विस्तार की प्रवृत्ति से यूरोप में चल रहे आपसी वैमनस्य व तनाव के कारण दो विरोधी गुटों का सृजन हुआ | अपने हितों की पूर्ति के लिए विभन्न देश परस्पर विरोधी गुटों में शामिल होकर अपनी सैन्य शक्ति का विस्तार करने लगे | इस समय उग्र राष्ट्रवाद की भावना ने आग में घी का काम किया | 1882 ई० में जर्मनी, आस्ट्रिया-हंगरी और इटली का एक नया त्रिगुट विश्व मंच पर गठित हुआ | इसके विरोध में 1907 ई० रूस, फ्रांस व ब्रिटेन के बीच एक समझौते के आधार पर एक दूसरा गुट भी बनकर तैयार हो गया | इन दोनों अन्तर्विरोधी गुटों के निर्माण से सिद्ध हो गया कि कालान्तर में एक भयंकर युद्ध होकर रहेगा |
4. फ्रांस-जर्मन वैमनस्य एवं उग्र राष्ट्रीयता की भावना –
1871 ई० में जर्मनी ने फ्रांस को हराकर अल्सास-लोरेन का क्षेत्र अपने कब्जे में कर लिया | इस घटना से फ्रांस और जर्मनी की शत्रुता बढ़ गयी | फ्रांस अपनी शर्मनाक पराजय का बदला लेने के लिए तत्पर था | यह बदले की भावना भी प्रथम विश्व युद्ध का कारण बनी | इसके अतिरिक्त प्रथम विश्व युद्ध के पूर्व अधिकांश शक्तिशाली राष्ट्र अपने हित के लिए इतने अंधे हो गए कि उन्हें उचित-अनुचित का ध्यान ही नहीं रहा | वे परस्पर एक-दूसरे को पीछे छोड़ देने के लिए तत्पर थे | उनकी इसी उग्र राष्ट्रीयता की भावना ने विश्वयुद्ध का मार्ग प्रशस्त कर दिया |
5. बाल्कन समस्या –
यूरोप की छह महाशक्तियाँ ब्रिटेन, जर्मनी, आस्ट्रिया-हंगरी, रूस, फ्रांस और इटली बाल्कन प्रायद्वीप के देशों को लेकर उलझ गए | बाल्कन प्रायद्वीप के देश तुर्की साम्राज्य के अधीन थे किन्तु 19वीं शताब्दी में तुर्की साम्राज्य पतन की ओर गतिशील हो गया था | इस समय स्वाधीनता के लिए अनेक जातियां तुर्की साम्राज्य के विरुद्ध विद्रोह कर रही थीं | इधर रूस भी बाल्कन के देशों पर अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहता था | फलतः रूस ने सर्व-स्लाव नामक आन्दोलन को बढ़ावा दिया जो इस सिद्धांत पर आधारित था कि पूर्वी यूरोप के क्षेत्रों में रहने वाले सभी स्लाव एक ही जनगण के लोग हैं | स्लाव आस्ट्रिया-हंगरी के अनेक क्षेत्रों में भी रहते थे | इसलिए रूस ने तुर्की और आस्ट्रिया-हंगरी दोनों के खिलाफ आन्दोलन को बढ़ावा दिया | इस प्रकार रूस की आस्ट्रिया-हंगरी और तुर्कीसे शत्रुता हो गयी | प्रथम विश्वयुद्ध के पूर्व जर्मनी अपनी मित्रता तुर्की से स्थापित कर रहा था और तुर्की की शत्रुता रूस से थी | अतः जर्मनी और रूस भी एक-दूसरें के शत्रु बन गए | इस प्रकार इन राष्ट्रों की परस्पर शत्रुता ने प्रथम विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि तैयार कर दी |
6. मोरक्को संकट –
प्रथम विश्व युद्ध के पूर्व यूरोप में कई ऐसी घटनाएँ हुईं जिनके कारण तनाव चरम पर पहुँच गया | इनमें से एक था मोरक्को को लेकर फ्रांस और ब्रिटेन के बीच टकराव | इस टकराव को समाप्त करने के लिए ब्रिटेन और फ्रांस ने 1904 ई० में एक समझौता किया | इस समझौते के आधार पर ब्रिटेन को मिस्र और फ्रांस को मोरक्को मिल गया किन्तु जर्मनी इस समझौते से रुष्ट हो गया | इस समझौते के विरोध में जर्मन सम्राट मोरक्को गया और वहाँ के सुल्तान को मोरक्को की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए पूरा समर्थन देने का वचन दिया | इससे जर्मनी और फ्रांस में तनाव बढ़ा किन्तु 1911 ई० में फ्रांस ने जर्मनी को कांगो का एक बड़ा भाग देकर तनाव को समाप्त तो कर दिया किन्तु जर्मनी और फ्रांस मोरक्को पर आधिपत्य स्थापित करने के प्रश्न पर भावी युद्ध की तैयारी में संलग्न हो गए |
7. उपनिवेशीकारण की भावना एवं आपसी तनाव –
19 वीं सदी के अंत तक प्रायः सभी शक्तिशाली राष्ट्र अधिक-से-अधिक उपनिवेश बनाने की दौड़ में सम्मिलित हो गए | जर्मनी इस दौड़ में बाद में आया किन्तु उसकी औद्योगिक उन्नति से अन्य राष्ट्र भयभीत होने लगे | जापान भी इस स्पर्द्धा में सम्मिलित हो चुका था, अतः उपनिवेशीकरण की भावना ने भी प्रथम विश्व युद्ध के लिए मार्ग प्रशस्त किया | इसके अतिरिक्त एक-दूसरे के आगे बढ़ जाने की स्पर्द्धा ने यूरोपीय देशों को इतना अन्धा बना दिया कि वे दूसरों के इलाके पाने के लिए आपस में गुप्त समझौते भी करने लगे | इन समझौतों का अक्सर भांडाफोड़ हो जाता था | इससे हर देश में भय एवं शंका का वातावरण बन जाना स्वाभाविक था |
8. तात्कालिक कारण –
20 वीं सदी के द्वितीय दशक में यूरोपीय वातावरण तनावग्रस्त तो था ही इसी समय घटित एक घटना, जिसमें आस्ट्रिया के राजकुमार आर्कड्यूक फ्रांसिस अपनी पत्नी सहित बोसनिया की राजधानी सेरोजीवो गए, जहाँ पर 28 जून, 1914 को गोली मारकर पत्नी सहित उनकी हत्या कर दी गयी | आस्ट्रिया ने अपने राजकुमार की हत्या की जिम्मेदारी सर्बिया पर डालते हुए युद्ध की चुनौती दी | जर्मनी ने आस्ट्रिया का व रूस ने सर्बिया का पक्ष लिया | इस घटना के परिणामस्वारूप 28 जुलाई, 1914 ई० को आस्ट्रिया ने सर्बिया के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी | इधर रूस ने स्लाव जाति की रक्षा के लिए सर्बिया का पक्ष लेकर आस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी | 1 अगस्त, 1914 ई० को जर्मनी ने आस्ट्रिया के पक्ष में तथा 3 अगस्त को फ्रांस और इंग्लैंड ने सर्बिया के पक्ष में युद्ध की घोषणा कर दी | सुदूर पूर्व में जर्मनी के उपनिवेशों को अपने कब्जे में करने के उद्देश्य से जापान ने जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी | इस प्रकार इन घटनाओं ने सम्पूर्ण विश्व को युद्ध की आग में झोक दिया और प्रथम विश्वयुद्ध अपरिहार्य हो गया |
प्रथम विश्वयुद्ध की विशेषताएँ –
1914 ई० के पूर्व इतना विनाशकारी एवं भयंकर युद्ध कभी नहीं हुआ था | यह युद्ध 28 जुलाई, 1914 को प्रारंभ हुआ और 11 नवम्बर, 1918 ई० को जर्मनी के आत्मसमर्पण के साथ समाप्त हुआ | इस विश्वयुद्ध की निम्न प्रमुख विशेषताएँ थीं –
- यह युद्ध विश्व के एक विस्तृत भू-भाग पर लड़ा गया तथा इसमें विश्व की कई जातियों और देशों ने भाग लिया |
- इस युद्ध में नियमित सैनिकों के साथ-साथ गैर-सैनिक जनता को भी युद्ध में भाग लेना पड़ा और उन्हें कहीं सैनिकों से ज्यादा जन-धन की हानि का सामना करना पड़ा | इसका मुख्य कारण वयुयानों का प्रयोग था |
- इस महायुद्ध की विनाशलीला विश्वव्यापी थी | इसके कारण विश्व का सामजिक एवं आर्थिक संतुलन बिगड़ गया |
- यह युद्ध धरती, आकास और समुद्र तीनों में लड़ा गया तथा इसमें टैंकों, बमों और पनडुब्बियों का प्रयोग किया गया | पहली बार वायुयानों का प्रयोग इसी युद्ध में किया गया |
- इस युद्ध में पहली बार जर्मनी द्वारा जहाजों को डुबाने के लिए ‘यू-बोट’ नामक पनडुब्बी का प्रयोग किया गया |
- संसार में पहली बार यह युद्ध शारीरिक शक्ति के स्थान पर मशीनी शक्ति के आधार पर लड़ा गया | 11 नवम्बर, 1918 ई० को जर्मनी के आत्मसमर्पण के फलस्वरूप प्रथम विश्वयुद्ध समाप्त हो गया |
- यह युद्ध ऐसा था जो पहली बार इतनी लम्बी अवधि तक चलता रहा | इस युद्ध का प्रारंभ 28 जुलाई, 1914 ई० को हुआ और अंत 11 नवम्बर, 1918 ई० को हुआ | इस प्रकार यह युद्ध लगभग 4 वर्षों तक चला |
प्रथम विश्वयुद्ध की घटनाएँ –
1. राजकुमार आर्कड्यूक की हत्या –
20वीं सदी के आरम्भ के वर्षों में यूरोप का वातावरण विषाक्त तो था ही इसी समय एक घटना घटित हुई, जिसमें 28 जून, 1914 ई० को आर्कड्यूक फ्रांसिस फर्डीनेण्ड की बोस्निया की राजधानी सेराजिवो में हत्या हो गयी। आस्ट्रिया ने अपने राजकुमार की हत्या के लिए सर्बिया को उत्तरदायी ठहराते हुए 28 जुलाई, 1914 को उसके विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। आस्ट्रिया की सेनाओं ने बेलग्रेड में भीषण बमबारी प्रारम्भ कर दी। इसी समय यूरोप की चार अन्य महाशक्तियाँ- रूस, जर्मनी, फ्रांस और इंग्लैण्ड भी युद्ध में कूद पड़ीं। जर्मनी ने बेल्जियम को पराजित करने के बाद फ्रांस पर आक्रमण करने की योजना बनायी किन्तु इसी बीच रूस ने जर्मनी की पूर्वी सीमा पर आक्रमण कर दिया। इसलिए कुछ जर्मन सेना पूर्वी मोर्चे पर भेजनी पड़ी। परिणामस्वरूप जर्मनी की सेनाओं का फ्रांस की ओर बढ़ना रुक गया। इसी बीच दुनिया के कई अन्य भागों में भी युद्ध फैल चुका था। पश्चिमी एशिया, अफ्रीका और सुदूर पूर्व में लड़ाइयाँ होने लगीं।
2. रूसी क्रान्ति और रूस का युद्ध से हटना –
1917 ई० की रूसी क्रान्ति और उसके बाद रूस का युद्ध से हट जाना एक महत्त्वपूर्ण घटना थी। सर्बिया को नष्ट करने के बाद जर्मनी व आस्ट्रिया की सेनाओं ने रूस के अनेक महत्त्वपूर्ण नगरों पर कब्जा कर लिया। इधर साम्यवादी क्रान्ति के फलस्वरूप रूस में जारशाही का अन्त हुआ तथा लेनिन के नेतृत्व में बोल्शेविक दल की सरकार बनी । क्रान्तिकारी आरम्भ से ही युद्ध का विरोध कर रहे थे क्योंकि इस युद्ध में रूसी साम्राज्य को भारी नुकसान उठाना पड़ा था। रूस के 6 लाख से अधिक सैनिक मारे जा चुके थे। रूसी नेता लेनिन ने जर्मनी के साथ ब्रैस्टलिटोवस्क की सन्धि करके रूस का युद्ध से अलग कर लिया।
3. संयुक्त राज्य अमेरिका का युद्ध में शामिल होना –
6 अप्रैल, 1917 ई० को अमेरिका ने जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। अमेरिका के इस युद्ध में शामिल होने के कई कारण थे। प्रथम-अमेरिका जर्मनी को एक शक्तिशाली प्रतिद्वन्द्वी के रूप में नहीं देखना चाहता था तथा अमेरिका त्रिदेशीय सन्धि के देशों-फ्रांस, ब्रिटेन, रूस आदि को शस्त्र व अन्य आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति करता था। इसी बीच 1915 ई० में जर्मनी की पनडुब्बी ‘यू-बोट’ ने यात्रियों से भरे लुसीतानिया नामक एक अंग्रेजी जहाज को डुबो दिया जिससे 1153 लोगों की मौत हो गयी। मरने वाले यात्रियों में 128 अमेरिकी नागरिक भी थे। जर्मनी के इस कृत्य से अमेरिका में जर्मन विरोधी भावनाएँ भड़क उठीं। अत: अमेरिका मित्र राष्ट्रों के साथ प्रथम विश्वयुद्ध में शामि हो गया।
4. पश्चिमी क्षेत्र के युद्ध –
1917 ई० में रूस के युद्ध से हट जाने के बाद जर्मन सेनाओं का जमाव पश्चिमी क्षेत्र में बढ़ गया। इस क्षेत्र में फ्रांस और जर्मनी के बीच भीषण युद्ध हुआ। जर्मनी की सेनाओं ने बेल्जियम, लक्जमबर्ग तथा मेत्ज तीन ओर से फ्रांस पर आक्रमण कर दिया। बेल्जियम की सेना ने साहस के साथ जर्मन सेना का मुकाबला किया। इसी बीच 7 अगस्त, 1914 ई० को फ्रांस और इंग्लैण्ड की सेनाएँ बेल्जियम की सहायता के लिए पहुँच गयीं किन्तु जर्मन सेना का सामना करने में असफल रहीं। परिणामस्वरूप 20 अगस्त, 1914 ई० को सम्पूर्ण बेल्जियम पर जर्मनी का आधिपत्य स्थापित हो गया।
बेल्जियम को जीतने के बाद जर्मन सेनाएँ फ्रांस में घुस गयीं। फ्रांस और इंग्लैण्ड की सेनाएँ जर्मन सेनाओं को रोक न सकीं। सम्पूर्ण फ्रांस भयभीत हो गया। अन्ततः ‘चार्लेराय’ नामक स्थान पर दोनों पक्षों में युद्ध हुआ जिसमें मित्र राष्ट्रों की सेनाएँ सफल नहीं हो सकीं। इस युद्ध के बाद राइन नदी के तट पर जर्मन सेना ने मित्र राष्ट्रों की सेनाओं को पराजित कर दिया। यह युद्ध चार वर्षों तक चलता रहा। यहाँ नये प्रकार का युद्ध प्रारम्भ हो गया। परस्पर भिड़ रहीं सेनाएँ खंदकें खोदकर वहाँ से एक-दूसरे पर छापा मारने लगीं। आमने-सामने लड़ने का युद्ध नहीं रहा। चार वर्षों तक यही क्रम चला। कोई भी पक्ष दूसरे को विस्थापित नहीं कर सका। इस युद्ध में भीषण मार करने वाली तोपों, टैंकों, मशीनगनों, जहरीली गैसों का अधिक मात्रा में प्रयोग हुआ। 6 अप्रैल, 1917 ई० में युद्ध में अमेरिका के आ जाने से स्थिति में परिवर्तन हुआ। अमेरिका, इंग्लैण्ड तथा फ्रांस की सम्मिलित सेनाओं ने जर्मन सेनाओं के वेग को रोकने में सफलता प्राप्त कर ली। अन्ततः 11 नवंबर, 1918 में जर्मनी को हथियार डाल देने के लिए विवश होना पड़ा।
5. इटली का युद्ध –
त्रिगुट का सदस्य होते हुए भी इटली प्रारम्भ में तटस्थता की नीति अपनाता रहा। बाद में उसने मित्र राष्ट्रों की लालच में आकर 23 मई, 1915 को जर्मनी और आस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। 1917 ई0 में दोनों पक्षों की सेनाओं में आईसेंजों नदी के तट पर भीषण युद्ध हुआ जिसमें इटली की सेनाओं को पीछे हटना पड़ा। शीघ्र ही इटली को इंग्लैण्ड और फ्रांस की सेनाओं की सहायता प्राप्त हो गयी। इन तीनों सेनाओं ने आस्ट्रिया की सेनाओं को पराजित कर इटली से निकाल दिया। 3 नवम्बर, 1918 ई० को दोनों पक्षों में युद्ध विराम सन्धि सम्पन्न हो गयी।
6. टर्की तथा मिस्र का युद्ध –
टर्की ने जर्मनी के पक्ष में मित्र राष्ट्रों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी और सर्वप्रथम डार्डेनल्स की खाड़ी पर अपना अधिकार कर लिया। इससे रूस का मित्र राष्ट्रों से सम्बन्ध टूट गया। ‘गैलीपोली’ के युद्ध में जर्मन सेनाओं की सहायता से टर्की ने मित्र राष्ट्रों की सेनाओं को पराजित कर दिया। अब टर्की का अधिकार मिस्र पर हो गया। मिस्र पहले अंग्रेजों के अधिकार में था। अंग्रेजी सेना ने 1915 में टर्की को पराजित कर बसरा तथा बगदाद पर अधिकार कर लिया। भारतीय सेना मित्र राष्ट्रों की ओर से लड़ रही थी । अतः इसने मेसोपोटामिया पर आक्रमण करके फारस और अफगानिस्तान को जर्मन प्रभाव से मुक्त करा दिया। अन्त में टर्की ने अपनी पराजय स्वीकार कर ली।
7. युद्ध का अन्त (आस्ट्रिया और जर्मनी की पराजय ) –
जुलाई, 1918 ई० में ब्रिटेन, फ्रांस और अमेरिका ने संयुक्त सैनिक अभियान आरम्भ किया। इस संयुक्त सेना के अभियान को जर्मनी रोकने में असफल रहा। बुल्गारिया सितम्बर में युद्ध से अलग हो गया तथा अक्टूबर में तुर्की ने आत्मसमर्पण कर दिया। 3 नवम्बर को आस्ट्रिया हंगरी के सम्राट ने भी आत्मसमर्पण कर दिया। 18 जुलाई, 1918 को मित्र राष्ट्रों ने कई तरफ से जर्मनी पर आक्रमण कर दिया तथा ब्रिटिश सेनापति हेग ने उत्तर की ओर से आक्रमण करके जर्मनी की हिण्डनबर्ग लाइन को तोड़ दिया। जर्मनी में राजनीतिक असंतोष के फलस्वरूप क्रान्ति हो गयी। जर्मन सम्राट कैंसर विलियम द्वितीय देश छोड़कर भाग गया और उसने हालैण्ड में शरण ली। जर्मनी एक गणराज्य बन गया। जर्मनी की नयी सरकार ने 11 नवम्बर, 1918 ई० को युद्ध-विराम सन्धि पर हस्ताक्षर कर दिये। इस प्रकार यह महाविनाशकारी युद्ध समाप्त हो गया।
जर्मनी की पराजय के कारण –
प्रथम विश्वयुद्ध के प्रारम्भ में जर्मनी की स्थिति बड़ी ही सुदृढ़ थी। उसके पास विशाल सुसंगठित सेना तथा अस्त्र-शस्त्रों का पर्याप्त भण्डार था। उसका सैनिक अनुशासन उच्च कोटि का था। उसके पास रसद की कमी नहीं थी। फिर भी जर्मनी को अन्ततः पराजित होना पड़ा। उसके इस पराजय के निम्न कारण थे –
- युद्ध का लम्बा हो जाना जर्मनी के लिए घातक हुआ। जर्मनी ने सोचा था कि एक-दो मास में वह मित्र राष्ट्रों को पराजित कर देगा किन्तु ऐसा नहीं हो सका। युद्ध चार वर्षों तक चलता रहा जिससे जर्मनी के साधनों में कमी आ गयी और उसे पराजय स्वीकार करनी पड़ी।
- संयुक्त राज्य अमेरिका के सम्मिलित हो जाने से मित्र राष्ट्रों को बल मिला और जर्मनी की पराजय सुनिश्चित हो गयी।
- इंग्लैण्ड की नाविक शक्ति विश्व में सर्वश्रेष्ठ थी। उनके जंगी जहाजों के समक्ष जर्मनी के जहाज कुछ भी नहीं थे, अतः अंग्रेजों के जहाजों ने जर्मनी के जहाजों को चारों ओर से घेर लिया।
- मित्र राष्ट्रों के पास जर्मनी की अपेक्षा जन-धन की शक्ति अधिक थी, जिसके कारण जर्मनी की पराजय हुई।
- जर्मनी के सेनापति और राजनीतिज्ञ मित्र राष्ट्रों की शक्ति का सही अनुमान नहीं कर सके थे।
- रूस की साम्यवादी क्रान्ति का प्रभाव भी इस युद्ध पर पड़ा क्योंकि 1917 ई० की क्रान्ति से रूस ने इस युद्ध से अपने को अलग कर लिया।
उपर्युक्त कारणों से जर्मनी की पराजय हुई।
प्रथम विश्वयुद्ध के परिणाम –
प्रथम विश्वयुद्ध उस समय का मानवता के इतिहास का सबसे अधिक विनाशकारी एवं भयंकर युद्ध था। इस युद्ध ने विश्व पर कई अमिट प्रभाव छोड़े। इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-
- जन-धन की हानि – इस महायुद्ध में जन-धन की अभूतपूर्व हानि हुई। भीषण नरसंहार से मानवता कलंकित हो गयी। इस युद्ध में मित्र राष्ट्रों के 50 लाख से अधिक व्यक्ति मारे गये तथा एक करोड़ के लगभग घायल हुए या अपंग हो गये। इसी प्रकार जर्मनी और उसके सहयोगी देशों के लगभग 80 लाख लोग मारे गये और लगभग 60 लाख लोग गम्भीर रूप से घायल हुए। इस युद्ध में शामिल सभी देशों को धन की भारी क्षति उठानी पड़ी। यूरोप के लगभग सभी देश अमेरिका के कर्जदार हो गये। धन की भारी हानि एवं विनाश से यूरोपीय देशों की अर्थव्यवस्था चरमरा गयी। जन-धन की हानि के फलस्वरूप यूरोप में श्रमिकों और पूँजी दोनों का अभाव हो गया। यूरोप की अर्थव्यवस्था तो चौपट हुई ही साथ ही सम्पूर्ण विश्व आर्थिक मन्दी का शिकार हो गया।
- निरंकुश राजतन्त्र का अन्त- प्रथम विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी, आस्ट्रिया-हंगरी, रूस, टर्की आदि देशों में निरंकुश राजशाही का अन्त हो गया।
- गणतन्त्रीय शासन की स्थापना – प्रथम विश्वयुद्ध के फलस्वरूप जर्मनी, फिनलैण्ड, आस्ट्रिया, पोलैण्ड, टर्की, यूक्रेन, यूगोस्लाविया आदि राज्यों में गणतन्त्र की स्थापना हुई।
- तानाशाही प्रवृत्ति – प्रथम विश्वयुद्ध के कारण ही यूरोप में तानाशाही की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिला। फलत: रूस में साम्यवाद, जर्मनी में नाजीवाद और इटली में फासीवाद की स्थापना हुई।
- नये राज्यों की स्थापना – यूरोप में प्रथम विश्वयुद्ध के बाद आत्मनिर्णय के आधार पर 8 नये राज्यों का निर्माण हुआ।
- एशिया और अफ्रीका में स्वाधीनता आन्दोलन – प्रथम विश्वयुद्ध की घटनाओं ने सारे संसार को प्रभावित किया। विश्व में दो ध्रुवीय व्यवस्था का जन्म हुआ। अमेरिका विश्व मंच पर एक शक्तिशाली देश बनकर उभरा तो दूसरी तरफ सोवियत रूस भी एक महाशक्ति के रूप में प्रतिष्ठित हुआ। सोवियत रूस ने स्वाधीनता आन्दोलनों को समर्थन देने की घोषणा की, जिससे एशिया और अफ्रीका में पहले से चल रहे स्वतन्त्रता आन्दोलनों की शक्ति बढ़ गयी।
- सामाजिक परिणाम – युद्ध-काल में अनिवार्य सैनिक सेवा लागू होने के कारण सभी देशों के बहुत से नागरिक सेना में भर्ती हो गये। प्रथम विश्वयुद्ध में सैनिकों के भारी संख्या में हताहत होने से महिलाएँ घर की चहारदीवारी से निकलकर सामाजिक जीवन में अग्रसर हुईं। इससे महिलाओं की स्वतन्त्रता में वृद्धि हुई।
- शान्ति के प्रयास (‘लीग ऑफ नेशन्स’ की स्थापना) – प्रथम विश्वयुद्ध के महा विनाशकारी परिनाम को देखकर संसार के सभी देश भयभीत हो गए | सभी देश अंतर्राष्ट्रीय शान्ति की स्थापना के लिए तथा भविष्य में इस प्रकार के प्रचण्ड युद्ध की विभीषिका से बचने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था की स्थापना हेतु सहमत हो गए | अतः अमेरिका के राष्ट्रपति वुडरो विल्सन के प्रयासों से ‘लीग ऑफ नेशन्स'(League of Nations) नामक एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था की स्थापना हुई |
- पेरिस का शान्ति-सम्मलेन – जनवरी, 1919 और जून, 1919 ई० के बीच विजेता शक्तियों का एक सम्मलेन पेरिस में आयोजित हुआ | यद्यपि इस शान्ति सम्मेलन में दुनिया के 27 देश भाग ले रहे थे किन्तु शान्ति-सन्धियों की शर्तें केवल तीन बड़े देश – फ्रांस, ब्रिटेन और अमेरिका ही तय कर रहे थे | इस शान्ति-सम्मलेन में मित्र राष्ट्रों के 80 प्रतिनिधि शामिल हुए जिनमें अमेरिकी राष्ट्रपति वुडरो विल्सन, ब्रिटेन के प्रधान मंत्री लायड जार्ज और फ्रांस के मंत्री जार्ज क्लीमेन्सो एवं इटली के ओरलैण्डो व जापान के सेओन्जी प्रमुख थे | सम्मलेन में पराजित देशों को कोई प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया तथा रूस को भी समेलन से बाहर रखा गया | 18 जनवरी, 1919 ई० को सम्मलेन की कार्यवाही प्रारंभ हुई | फ्रांस के प्रधान मंत्री एवं इस सम्मलेन के अध्यक्ष क्लीमेन्सो के अड़ियल रवैये के कारण जापान और इटली सम्मलेन से बाहर हो गए |