![जल परिवहन, बहुउद्देश्यीय नदी घाटी परियोजनाएँ, उद्देश्य एवं महत्त्व [UPSC NCERT Notes]](https://mlvvxpsmh4vh.i.optimole.com/w:150/h:150/q:mauto/rt:fill/g:ce/f:best/https://naraynum.com/wp-content/uploads/2023/11/Water-transport-multi-purpose-river-valley-projects-objectives-and-importance-2.jpg)
जल परिवहन (Water Transport) –
भारत में जल प्राचीन काल से परिवहन का महत्त्वपूर्ण साधन रहा है। रेल और सड़क परिवहन के पहले ही जल परिवहन का विकास हो चुका था। उत्तर भारत की गंगा, ब्रह्मपुत्र और दक्षिणी भारत की कृष्णा, कावेरी और गोदावरी नदियाँ जल परिवहन की मुख्य साधन रही हैं। रेल और सड़क परिवहन के कारण जल परिवहन का महत्त्व कुछ कम हो गया है क्योंकि ये सुरक्षित, सरन्त और तीव्रगामी होते हैं। जिन स्थानों पर रेल एवं सड़क का विकास नहीं हुआ है वहाँ ये सस्ते और सरल परिवहन साधन हैं। इसके द्वारा भारी सामानों को सस्ती दर में भेजा जाता है। केन्द्रीय अन्तर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण की स्थापना 1986 ई० में की गयी थी। इसका मुख्यालय कोलकाता में है |
भारत में 14,500 किमी लम्बा नौका मार्ग है। मुख्य नदियों में 3700 किमी यन्त्रचालित नावें हैं परन्तु अभी केवल 2000 मार्गी का ही प्रयोग हो पा रहा है। 4300 किमी नहर मार्ग हैं जिनमें 900 किमी मार्ग का ही प्रयोग हो रहा है। भारत में गंगा, ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियाँ कृष्णा, कावेरी, नर्मदा, ताप्ती और गोदावरी जल परिवहन के लिए सबसे उपयुक्त हैं।
प्रमुख राष्ट्रीय जलमार्ग –
क्र.सं. | एनडब्ल्यू नं. | नदी | मार्ग | लंबाई (किमी) | स्थान | स्थापना वर्ष |
---|---|---|---|---|---|---|
1. | एनडब्ल्यू – 1 | गंगा-भागीरथी-हुगली | प्रयागराज-हल्दिया | 1620 | उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल | 1986 |
2. | एनडब्ल्यू-2 | ब्रह्मपुत्र | सादिया-धुबरी | 891 | असम | 1988 |
3. | एनडब्ल्यू-3 | पश्चिमी तट नहर, चंपकारा नहर, और उद्योगमंडल नहर | कोट्टापुरम – कोल्लम | 205 | केरल | 1993 |
4. | एनडब्ल्यू-4 | कृष्णा और गोदावरी | काकीनाडा-पुडुचेरी नहरों का विस्तार, कालुवेल्ली टैंक, भद्राचलम-राजमुंदरी, वजीराबा-विजयवाड़ा | 1095 | आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और पुडुचेरी | 2008 |
5. | एनडब्ल्यू-10 | अम्बा नदी | 45 | महाराष्ट्र | ||
6. | एनडब्ल्यू – 83 | राजपुरी क्रीक | 31 | महाराष्ट्र | ||
7. | एनडब्ल्यू – 85 | रेवदंडा क्रीक – कुंडलिका नदी प्रणाली | 31 | महाराष्ट्र | ||
8. | एनडब्ल्यू-91 | शास्त्री नदी-जयगढ़ क्रीक प्रणाली | 52 | महाराष्ट्र | ||
9. | एनडब्ल्यू – 68 | मांडोवी – अरब सागर तक उसगांव पुल | 41 | गोवा | ||
10. | एनडब्ल्यू-111 | ज़ुआरी- संवोर्डेम ब्रिज से मार्मुगाओ बंदरगाह तक | 50 | गोवा | ||
11. | एनडब्ल्यू – 73 | नर्मदा नदी | 226 | गुजरात और महाराष्ट्र | ||
12. | एनडब्ल्यू – 100 | तापी नदी | 436 | गुजरात और महाराष्ट्र | ||
13. | एनडब्ल्यू – 97 (सुंदरबन जलमार्ग) | नामखाना से अथराबांकीखाल | भारत-बांग्लादेश प्रोटोकॉल मार्ग | 172 | पश्चिम बंगाल |
जल-विद्युत् परियोजना (Electricity Project in India) –
भारत में जल शक्ति का विशाल भण्डार है। इस दृष्टिकोण से भारत का विश्व में पाँचवाँ स्थान है। इसकी शुरुआत 1897 ई० में दार्जिलिंग में हुई जहाँ पहली बार 130 किलोवाट क्षमता का पहला जल-विद्युत् गृह बनाया गया। स्वतन्त्रता के बाद इस क्षेत्र में तेजी से प्रगति हुई। 1950-51 में विद्युत् का उत्पादन 2.5 अरब किलोवाट था जो 1970-71 में बढ़कर 25.2 अरब किलोवाट, 1980-81 में 46.5 अरब किलोवाट और 1990-91 में 71.7 अरब किलोवाट, 1994-95 में 76.4 अरब किलोवाट हो गया परन्तु 1995-96 में यह घटकर 73.5 अरब किलोवाट ही रह गया। लेकिन वर्ष 2000 में यह उत्पादन बढ़कर 80.55 अरब किलोवाट हो गया। 2011-12 में 128.43 अरब यूनिट जल-विद्युत् का उत्पादन हुआ। 31 नवम्बर, 2014 को अखिल भारतीय स्तर पर देश की संस्थापित जल विद्युत क्षमता 40,798.76 मेगावाट थी। पिछले 70 सालों में इस क्षेत्र में तेजी से वृद्धि हुई है फिर भी इसका केवल 1/4 भाग का ही प्रयोग किया जा सका है। भारत में जल-विद्युत् परियोजनाएँ निम्न हैं–
- पहली जल-विद्युत् परियोजना कर्नाटक राज्य में कावेरी नदी पर शिवसमुद्रम स्थान पर हैं।
- महाराष्ट्र राज्य के मुम्बई क्षेत्र में पश्चिमी घाट पर टाटा जलविद्युत् परियोजना है।
- दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य के पाइकारा नामक स्थान पर जल-विद्युत् परियोजना है।
- उत्तरी भारत में पहला जल-विद्युत केन्द्र हिमाचल प्रदेश के मण्डी नामक स्थान पर लगाया गया।
- पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जल विद्युत् की आपूर्ति के लिए गंगा नहर जल-विद्युत् ग्रिड प्रणाली की स्थापना की गय।
उपर्युक्त ‘जल-विद्युत् केन्द्रों से देश के अन्य भागों में अनेक बहुउद्देश्यीय परियोजनाएँ भी क्रियान्वित की गयी जिससे समस्त ‘भागों में जल-विद्युत् उपलब्ध करायी जा सके।
बहुउद्देश्यीय नदी घाटी परियोजनाएँ (Multi Purpose River- Valley Projects) –
बहुउद्देश्यीय परियोजना का मतलब ऐसी योजना से होता है जिसका निर्माण कई उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया जाय। इन परियोजनाओं के निर्माण का मुख्य उद्देश्य भारत का चौतरफा विकास करना है। इसके अन्तर्गत सिंचाई, जल-विद्युत्, बाढ़-नियन्त्रण, नौका वाहन और पारितन्त्र का संचरण करना है। भारतीय कृषि में क्रान्तिकारी परिवर्तन लाना इसका सबसे महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है। देश के बहुमुखी विकास में इन नदी घाटी योजनाओं का महत्त्वपूर्ण योगदान है। इसलिए पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इन्हें आधुनिक भारत के ‘तीर्थ और मन्दिर’ की संज्ञा दी है।
नदी घाटी परियोजना के उद्देश्य (Aims of River-Valley Project) –
बहुउद्देश्यीय नदी घाटी परियोजना के निम्न उद्देश्य हैं-
- बाढ़ पर नियन्त्रण के साथ ही मिट्टी का कटाव रोकना।
- सिंचाई के लिए नहरों का निर्माण करना।
- जलशक्ति का उत्पादन करना।
- जल परिवहन का विकास करना।
- सस्ती बिजली प्राप्त कर औद्योगिक विकास करना।
- जलाशयों में मत्स्य उद्योग को बढ़ावा देना।
- इनका उद्देश्य योजनाबद्ध तरीके से वृक्षारोपण करके वन का विस्तार करना।
- अकाल के समय जल सूखे क्षेत्रों में भेजना।
- शहरी लोगों के लिए शुद्ध पेयजल की व्यवस्था करना।
- पशुओं के लिए हरे चारे की व्यवस्था करना।
- दलदली भागों को सुखाकर उनको उपयोगी बनाना ।
- जलाशयों के निकट प्राकृतिक सौन्दर्य और मनोरंजन के साधनों का विकास करना।
- इनका उद्देश्य क्षेत्रीय नियोजन के द्वारा उपलब्ध संसाधनों का पूर्ण और समुचित उपयोग करके विकास करना ।
बहुउद्देश्यीय नदी घाटी परियोजना का महत्त्व (Importance of Multi Purpose River-Valley Project) –
बहुउद्देश्यीय नदी घाटी परियोजनाएँ भारत के आर्थिक विकास का सबसे बड़ा आधार स्तम्भ हैं। इनका निम्न महत्त्व है-
- नदियों पर बाँध बनाकर जल-विद्युत् का उत्पादन होता है। यह ऊर्जा का स्वच्छ, धुआँ रहित, प्रदूषणमुक्त साधन है।
- बाँध बनाकर जल की तीव्रता को रोका जाता है जिससे बाढ़ को रोका जा सके और मिट्टी का संरक्षण भी हो सके|
- नदियों पर बाँध बनाकर नहरें निकाली जाती हैं जिनमें वर्षा का जल एकत्र किया जाता है। इन बाँधों के जल का प्रयोग गर्मी में सिंचाई के लिए किया जाता है।
- परियोजना के तहत बने जलाशयों में मछलियाँ पाली जाती हैं।
- नदियों पर बाँध बनाकर पीने योग्य पानी की व्यवस्था की जाती है।
- उद्योगों के विकास के लिए सस्ती बिजली की आपूर्ति सुलभ की जाती है।
- बहुउद्देशीय परियोजनाओं के अन्तर्गत नदियों और नहरों में जल परिवहन का विकास किया जाता है।
- खाली पड़े स्थानों पर पार्क, उद्यान, बाग और बगीचों का निर्माण कर प्राकृतिक सौन्दर्य में वृद्धि की जाती है।
- जल संग्रहण क्षेत्र में योजनाबद्ध रूप में वृक्षारोपण किया जाता है जिससे पारितन्त्र का संरक्षण हो सके और वन्य जीवों को आश्रय मिल सके।
- परियोजनाओं की मदद से सर्वांगीण विकास करके जीवन स्तर को ऊँचा उठाया जाता है।
जल का प्रबन्धन –
जल प्रबन्धन का तात्पर्य उपलब्ध जल संसाधनों का उचित विदोहन और उपयोग करना है। प्राचीन समय में जल का उपयोग केवल सिचाई के लिए किया जाता था परन्तु वर्तमान समय में इसका व्यापक उपयोग होता है। जब तक किसी भी साधन के उपयोग की उचित व्यवस्था या प्रबन्ध नहीं किया जाता है तब तक आपूर्ति अनिश्चित और अनियमित रहती हैं। जल का उपयोग सिंचाई, पीने, शक्ति, उत्पादन और मत्स्य पालन के लिए किया जाता है। किसी स्थान पर जल की कितनी मात्रा है, उस स्थान पर जल का उपयोग कितना है, इन सब चीजों का निर्धारण करना ही जल प्रबन्धन कहलाता है। जल प्रबन्धन के द्वारा हम जल का अधिकतम उपयोग कर सकते हैं।
भारत की प्रमुख बहुउद्देश्यीय नदी घाटी परियोजनाएँ (Main Multi Purpose River-Valley Projects of India) –
क्र.सं. | परियोजना | नदी | राज्य |
---|---|---|---|
1. | भाखड़ा-नांगल | सतलुज | पंजाब, हरियाणा, हिमांचल प्रदेश |
2. | दामोदर घाटी | दामोदर | पश्चिम बंगाल, झारखण्ड |
3. | हीराकुंड | महानदी | ओडिशा |
4. | कोसी | कोसी | बिहार |
5. | रिहन्द | रिहन्द | उत्तर प्रदेश |
6. | चम्बल | चम्बल | मध्य प्रदेश, राजस्थान |
7. | तुंगभद्रा | तुंगभद्रा | आन्ध्र प्रदेश |
8. | व्यास | व्यास | पंजाब, हरियाणा, राजस्थान |
9. | माही | माही | गुजरात |
10. | नर्मदा घाटी | नर्मदा | मध्य प्रदेश, गुजरात |
11. | मयूराक्षी | मयूराक्षी | पश्चिम बंगाल |
12. | मचकुंड | मचकुंड | आंध्रप्रदेश, ओडिशा |
13. | गंडक | गंडक | बिहार, उत्तर प्रदेश |
14. | नागार्जुन सागर | कृष्णा | आंध्रप्रदेश |
15. | टिहरी बाँध परियोजना | भागीरथी | उत्तराखंड |
1. दामोदर घाटी परियोजना (Damodar Valley Project) –
दामोदर घाटी परियोजना का निर्माण दामोदर नदी पर अमेरिका के टैनेसी घाटी परियोजना के अनुसार हुआ है। दामोदर नदी छोटा नागपुर के पठार की पहाड़ियों से निकलकर झारखण्ड में तथा पश्चिमी बंगाल में प्रवाहित होने के बाद हुगली नदी में मिल जाती है। दामोदर नदी में आनेवाली भयंकर बाढ़ के कारण इसे ‘बंगाल का शोक’ कहते हैं। बाढ़ के कारण अपार धन-जन की हानि होती है। 18,000 वर्ग किमी पर इसका प्रभाव पड़ता है। इसलिए सन् 1948 में दामोदर घाटी निगम की स्थापना की गयी। इस परियोजना के निर्माण पर ₹ 110 करोड़ की लागत आयी। यह परियोजना विश्व में दूसरे नम्बर की है।
इस परियोजना के अन्तर्गत उसकी सहायक नदियाँ कोनार, मैथान, तिलैया, पंचेतहिल, बाल पहाड़ी, बोकारो, बर्मों और दुर्गापुर स्थान पर 8 बाँध बनाये गये हैं। बोकारो, दुर्गापुर और चन्द्रपुरा में 3 तापीय विद्युत् गृह बनाये गये हैं। इन बाँधों से 2500 किमी लम्बी दो नहरें निकाली गयी हैं जिनसे 7.5 लाख हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई की जाती है। इस परियोजना द्वारा 1,187 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है। यह परियोजना छोटा नागपुर पठार के उजाड़ और वीरान क्षेत्र के लिए वरदान सिद्ध हुई है।
दामोदर घाटी के ऊपरी भाग में वन लगाकर भू-क्षरण नियन्त्रित किया गया है। नहर के कारण पश्चिमी बंगाल और झारखण्ड से कोयला और अभ्रक नावों द्वारा कारखानों तक पहुँचाया जाता है। बोकारो, सिन्दरी, दुर्गापुर, कोडरमा के औद्योगिक केन्द्रों पर इस परियोजना के द्वारा सस्ती जलविद्युत् भेजी जाती है।
2. भाखड़ा नांगल परियोजना (Bhakhra Nangal Project) –
इस परियोजना का निर्माण पंजाब राज्य के रोपण जिले में हुआ है। इसके अन्तर्गत सतलज नदी पर भाखड़ा नामक स्थान पर बाँध बनाया गया है। यह भारत की सबसे बड़ी परियोजना है। भाखड़ा बाँध विश्व का दूसरा सबसे ऊँचा बाँध है। इसकी ऊँचाई 226 मीटर, नदी तल पर लम्बाई 338 मीटर, ऊपर की चोटी 518 मीटर है। इस बाँध के पीछे गोविन्द वल्लभ सागर नामक विशाल जलाशय (हिमाचल प्रदेश) है।
भाखड़ा से 13 किमी नीचे नांगल स्थान पर नांगल बाँध बनाया गया है जो 29 मीटर ऊँचा, 315 मीटर लम्बा है। इसकी सहायता से नदी के जल स्तर को 15 मीटर ऊँचा उठाया गया है। इस बाँध पर 28 निकास द्वार हैं। भाखड़ा बाँध से 5 नहरें निकाली गयी हैं-
- भाखड़ा की मुख्य नहर,
- सरहिन्द नहर,
- विस्त दोआब नहर,
- नरवाना शाखा नहर तथा
- नांगल जल विद्युत् नहर ।
इस परियोजना द्वारा 3 विद्युत् गृह बनाये गये हैं, दो गंगूवाल और कोटला में, तीसरा रोपड़ में। इन विद्युत गृहों से 1,200 मेगावाट बिजली पैदा की जाती है। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान के दिल्ली के शहरों एवं गाँवों को इस परियोजना से बिजली प्राप्त होती। है। भाखड़ा बाँध से 1.100 किमी लम्बी नहर निकाली गयी हैं। इससे 27 लाख हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई होती है। इसका सबसे ज्यादा फायदा राजस्थान को हुआ। इसी नहर के कारण पंजाब व हरियाणा राज्य में चावल, गेहूँ, गन्ना व तिलहन की खेती में वृद्धि हुई है। इस परियोजना से राजस्थान, दिल्ली, पंजाब और हरियाणा के उद्योगों को विद्युत् प्राप्त होती है। यह परियोजना भारत के बहुमुखी विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
3. हीराकुण्ड परियोजना (Hirakund Project) –
यह ओडिशा राज्य की महत्त्वपूर्ण नदी घाटी परियोजना है। यह महानदी से 14 किमी ऊपर हीराकुण्ड नामक स्थान पर बनायी गयी है। इसका मुख्य उद्देश्य महानदी में प्रतिवर्ष आनेवाली भयंकर बाढ़ को रोकना है। इसके अन्तर्गत हीराकुण्ड, टिकरपारा और नाराज नामक स्थानों पर तीन बाँध बनाये गये हैं। यह विश्व का सबसे लम्बा बाँध है। यह 61 मीटर ऊँचा और 4,801 मीटर लम्बा है। इसके अन्तर्गत तीन नहरें – बरगढ़, सेसब और सम्बलपुर में निकाली गयी हैं और तीन विद्युत्-गृह बनाये गये हैं। इसके द्वारा 3 लाख 55 हजार किलोवाट विद्युत् का उत्पादन होता है।
हीराकुण्ड बाँध बन जाने से महानदी में आनेवाली बाढ़ पर काफी नियन्त्रण पा लिया गया है जिससे मिट्टी का अपरदन भी कम हो गया है। इनके कारण कमाण्ड क्षेत्र में पड़नेवाला अकाल खत्म हो गया है। इससे उत्पन्न जलविद्युत का उपयोग उद्योग-धन्धों में किया जा रहा है। इस परियोजना से राउरकेला का लोहा इस्पात, हीराकुण्ड का ऐलुमिनियम कारखाना, राजभंगपुर का सीमेण्ट उद्योग, बृजराज नगर का कागज व सूती वस्त्र उद्योग विकसित हो गया है। इस परियोजना से उड़ीसा के महानदी डेल्टा का बहुमुखी विकास हुआ है, इसलिए इसे उड़ीसा का ‘नया तीर्थ’ कहकर पुकारते हैं।
4. रिहन्द बाँध परियोजना (Rihand Dam Project) –
यह उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी परियोजना है। यह परियोजना 1954 में बनना आरंभ हुई और 1962 ई० में इसने कार्य आरंभ किया। सोनभद्र जिले में पिपरी नामक स्थान पर सोन की सहायक नदी रिहन्द पर रिहन्द बाँध बनाया गया। यह 934.21 मीटर लम्बा और 91.44 मीटर ऊँचा है। रिहन्द बाँध के पीछे बने जलाशय का क्षेत्रफल 466 वर्ग किमी और क्षमता 10,608 लाख घनमीटर की है। इसकी सफाई के लिए 4 सुरंगें बनायी गयी हैं तथा बाढ़ का जल निकालने के लिए 13 फाटक लगाये गये हैं।
इस परियोजना के अन्तर्गत ओबरा नामक स्थान पर ही 300 मेगावाट (50 मेगावाट क्षमता की 6 इकाईयां) क्षमता का जलविद्युत् शक्तिगृह बनाया गया है। उत्तर प्रदेश के उद्योग के विकास के लिए इन क्षेत्रों को सस्ती जलविद्युत प्राप्त की जाती है। मुगलसराय व पटना के मध्य रेलगाड़ी चलाने में भी इस जलविद्युत शक्ति का प्रयोग होता है। सोन नदी के प्रवाह को कम करके मिट्टी के कटाव को रोका गया है। रिहन्द परियोजना से उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार का बहुमुखी विकास हुआ है। रिहन्द बाँध के पीछे ‘गोविन्द वल्लभ सागर’ नामक एक कृत्रिम झील बनाई गई है जो भारत की सबसे बड़ी कृत्रिम झील है।
5. तुंगभद्रा परियोजना (Tungbhadra Project) –
यह कर्नाटक और आन्ध्र प्रदेश राज्य सरकारों की सम्मिलित परियोजना है। कृष्णा की सहायक तुंगभद्रा नदी पर कर्नाटक राज्य के बेल्लारी जिले में मल्लापुरम नामक स्थान के निकट 1956 ई० में 2441 मीटर लम्बा और 50 मीटर ऊँचा बाँध बनाकर पम्पासागर जलाशय बनाया गया है। इस जलाशय से 3 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जा रही है। ये नहरें कर्नाटक के बेल्लारी व रायचूर तथा आन्ध्र प्रदेश के कर्नूल, कडप्पा तथा अनन्तपुर जिलों में सिंचाई की सुविधा प्रदान कर रही हैं।
तुंगभद्रा परियोजना से मुनीराबाद, हम्पी तथा हास्पेट में तीन विद्युत् गृह बनाये गये हैं जिनसे 108 मेगावाट विद्युत् पैदा की जाती है। इस विद्युत् का प्रयोग सिंचाई तथा उद्योग-धन्धों में होता है। इससे खाद्यान्न एवं व्यापारिक फसलों का उत्पादन बढ़ा है। इस परियोजना के कारण कर्नाटक एवं आन्ध्र प्रदेश का आर्थिक विकास हुआ है।
6. नागार्जुन सागर परियोजना (Nagarjuna Sagar Project) –
दक्षिणी भारत की यह सबसे मुख्य परियोजना है। यह तेलंगाना के नलगोंडा जिले में कृष्णा नदी पर बनायी गयी है। बौद्ध विद्वान् नागार्जुन के नाम पर इस सागर का नाम नागार्जुन सागर रखा गया। यह बाँध 1,450 मीटर लम्बा है। इसके दोनों तटों पर 3,414 मीटर लम्बे तटबन्ध बनाये गये हैं और दोनों तरफ से 383 किमी लम्बी नहरें निकाली गयी है। इस बाँध के पीछे एक झील बनायी गयी है। इसके पहले वहाँ पर वास्तुकला का सुन्दर मन्दिर था जिसे सुरक्षित स्थान पर हटा दिया गया। नागार्जुन बांध से निकलनेवाली नहरों से 8.7 लाख हेक्टेयर भूमि पर मिचाई की सुविधा है। इस परियोजना द्वारा उत्पन्न जलविद्युत से आन्ध्र प्रदेश के औद्योगिक केन्द्रों के विकास में सहायता मिली है। वन क्षेत्र का विस्तार किया गया है और मत्स्य पालन उद्योग को बढ़ाया गया है। तेलंगाना व सीमान्ध्र (आन्ध्र प्रदेश) का आधुनिक स्तरीय विकास इसी नदी घाटी परियोजना से हुआ है।
7. इंदिरा गाँधी नहर परियोजना (Indira Gandhi Canal Project) –
यह परियोजना 2 नवम्बर, 1984 तक राजस्थान नहर परियोजना के नाम से जानी जाती थी। 31 अक्टूबर, 1984 को तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गाँधी की मृत्यु के पश्चात् उनकी याद में इस परियोजना का नाम इंदिरा गाँधी नहर परियोजना कर दिया गया। इंदिरा गाँधी नहर का निर्माण धरातलीय विविधता और जलवायु की अतिशयता वाले रेगिस्तानी क्षेत्र में हिमालय का जल लाने का एक साहसिक मानवीय प्रयास है। एशिया की सबसे बड़ी मानव निर्मित इस नहर परियोजना जिसे ‘मरू गंगा’ और ‘मरुस्थल की जीवन रेखा’ के रूप में भी जाना जाता है, ने इस रेगिस्तानी क्षेत्र में आर्थिक समृद्धि के द्वार खोले हैं।
परियोजना का सूत्रपात – 31 मार्च, 1958 को तत्कालीन केन्द्रीय गृह मन्त्री श्री गोविन्द बल्लभ पंत ने इस महान परियोजना की आधारशिला रखी। इस प्रकार राजस्थान के रेगिस्तान के एक बड़े भाग को हरा-भरा बनाने का कार्य 1958 में प्रारम्भ हुआ।
नहर का उद्गम स्थल – इंदिरा गाँधी नहर का उदगम पंजाब में फिरोजपुर के निकट सतलज-व्यास नदियों के संगम पर स्थित ‘हरिके चैराज’ से है। मुख्य नहर की लम्बाई 649 किलोमीटर अथवा 1,458.200 आर० डी० है। नहर के प्रारम्भिक भाग 204 किलोमीटर (इसे फीडर नहर कहते हैं) की प्रथम 169 किमी लम्बाई पंजाब में, 14 किमी हरियाणा में एवं शेष 21 किमी राजस्थान में है। राजस्थान में यह नहर हनुमानगढ़ जिले की टीबी तहसील में खरा गांव के निकट प्रवेश करती है। निकास स्थल पर मुख्य नहर के तल की चौड़ाई 40 मीटर है। इसमें बहने वाले पानी की गहराई 6.4 मीटर तथा इसकी जल प्रवाह क्षमता 523 घन मीटर प्रति सेकण्ड (18,500 क्यूसेक्स) है।
महत्त्व व लाभ – पूर्ण विकसित होने पर परियोजना द्वारा हनुमानगढ़, बीकानेर, चुरू, जोधपुर, बाड़मेर और जैसलमेर जिलों की लगभग 18.72 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होगी। सिंचाई के लिए बनने वाली खेतों की नालियों की लम्बाई 64 हजार किलोमीटर होगी। इससे प्रतिवर्ष लगभग 40 लाख टन खाद्यान्न एवं चारा तथा 2 लाख टन कपास, अन्य फसलें दालें, तिलहन, फल, सब्जियों, बरसीम, आदि का भी उत्पादन होने लगेगा। लगभग 30 लाख व्यक्तियों को रोजगार उपलब्ध हो सकेगा। इनके अतिरिक्त अन्य लाभ होंगे- पेय जल की समस्या का निराकरण, मरुस्थल के प्रसार पर रोक, पशुपालन, मुर्गीपालन एवं बागवानी के उत्तम अवसर तथा इस पिछड़े हुए मरुस्थलीय क्षेत्र का बहुमुखी विकास आदि। अब तेजी व्यावसायिक का विकास सामाजिक वानिकी महर व सड़कों के किनारे एवं सीमावर्ती भागों में वन क्षेत्र एवं अभ्यारण्यों के विकास से सारे क्षेत्र में पर्यावरण में पूरी तरह सुधार व संतुलन प्राप्त हो सकेगा। इस परियोजना के द्वारा 2010-15 तक 523 किलोमीटर लम्बे तथा 48 किलोमीटर चौड़े लगभग 28,000 वर्ग किलोमीटर में विस्तृत वनस्पतिविहीन बंजर तथा पिछड़े क्षेत्र का स्वरूप ही बदल जायेगा।
7. टिहरी बाँध परियोजना (Tehri Dam Project) –
टिहरी बांध विश्व का पाँचवां तथा एशिया का सबसे बड़ा बाँध है। टिहरी उत्तराखण्ड का लगभग 186 वर्ष पुराना शहर है। इस शहर के समीप टिहरी बाँध बनाया गया है। टिहरी बाँध का निर्माण भागीरथी व भिलंगना नदियों के संगम स्थल से नीचे हुआ है। इसका मुख्य उद्देश्य उक्त दोनों नदियों के संगम स्थल से नीचे हुआ है। इसका मुख्य उद्देश्य उक्त दोनों नदियों में आने वाली बाढ़ के जल को संचय करके सिंचाई कार्यों व विद्युत उत्पादन में उपयोग करना है। सन् 1972 में योजना आयोग ने टिहरी बाँध परियोजना को स्वीकृति दी थी। 1978 में सिंचाई विभाग द्वारा बाँध का निर्माण कार्य शुरू किया गया। बाँध निर्माण की धीमी गति को देखते हुए वर्ष 1989 में टिहरी जल बाँध निगम बनाकर इस निगम को निर्माण कार्य सौंपा गया। बाँध का निर्माण कार्य पूरा होने पर 2,400 मेगावाट विद्युत उत्पादन तथा 2.7 लाख हेक्टेयर में सिंचाई सुविधा उपलब्ध होने की सम्भावना है। लाँध के जल से दिल्ली तथा उ० प्र० के लगभग 70 लाख लोगों को पेयजल उपलब्ध कराया जा रहा है। टिहरी बाँध की लागत ₹6,500 करोड़ है। बाँध की ऊँचाई 261 मीटर है, जिसमें 45 वर्ग किलोमीटर जल भराव होगा। टिहरी बाँध बनने पर लगभग एक लाख आबादी प्रभावित हुई है, पुनर्वास पर लगभग ₹582 करोड़ व्यय किया गया है। 30 जुलाई, 2006 को केन्द्र सरकार द्वारा 2400 मेगावाट की टिहरी बाँध परियोजना के 1000 मेगावाट के पहले चरण का लोकार्पण किया गया।