हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन(HSRA) की स्थापना रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकुल्ला खान, सचिन्द्र नाथ बख्शी, सचिन्द्र नाथ सान्याल और जोगेश चन्द्र चटर्जी द्वारा सन् 1924 में कानपुर में की गयी थी|जिसे प्रारंभ में हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी और हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन(HRA) के नाम से जाना जाता था|
Table of Contents
पार्टी की स्थापना
जनवरी 1923 देशबंधु चितरंजन दास ने अपने जैसे ही लोगों के साथ मिलकर स्वराज पार्टी की स्थापना की|इस पार्टी को बाद में नवयुवकों ने मिलकर इस पार्टी का रिवोल्यूशनरी पार्टी के रूप में ऐलान कर दिया|सितम्बर 1923 में दिल्ली में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन से असंतुष्ट लोगों ने मिलकर यह फैसला लिया की वह भी अपनी गठित करेंगे |
इसके बाद में राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ ने अशफाकुल्ला खान, सचिन्द्र नाथ बख्शी, सचिन्द्र नाथ सान्याल और जोगेश चन्द्र चटर्जी के साथ मिलकर एक नयी पार्टी की स्थापना की|इस नवगठित पार्टी का नाम हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन(HRA) रखा गया|इस पार्टी का संविधान पीले रंग के कागजों पर लिखकर सभी सदस्यों के पास भेजा गया और इस पार्टी की प्रथम कार्यकारी बैठक 3 अक्टूबर 1924 को कानपुर में की गयी|
नाम | हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन(HSRA) या हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन(HRA) |
स्थापना कर्ता | रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकुल्ला खान, सचिन्द्र नाथ बख्शी, सचिन्द्र नाथ सान्याल और जोगेश चन्द्र चटर्जी |
स्थापना वर्ष | 1924 |
स्थापना स्थान | कानपुर |
पार्टी के विभाग | संगठन, प्रचार और सामरिक |
पार्टी के कार्य के लिए पैसों का स्रोत | डकैती एवं सरकारी लूट का माल |
क्रांतिकारी गतिविधियाँ | काकोरी कांड, जॉन पी. सॉन्डर्स की हत्या, केन्द्रीय विधान सभा में बमबारी |
प्रमुख सदस्य | रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकुल्ला खान, सचिन्द्र नाथ बख्शी, सचिन्द्र नाथ सान्याल, जोगेश चन्द्र चटर्जी, भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, बटुकेश्वर दत्त |
पार्टी का पुनर्गठन
हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना अक्टूबर1924 भारत के क्रांतिकारियों द्वारा कानपुर में की गयी थी|पार्टी का मुख्य उद्देश्य भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त करके संघीय संयुक्त गणराज्य भारत की स्थापना करना था|काकोरी कांड के बाद ब्रिटिश सरकार ने इस दल के चार प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया और फासी दे दी और अन्य 16 क्रांतिकारियों को उम्रकैद की सजा दे दी|इस कारण यह दल अलग-अलग टुकड़ों में बंट गया|
इस घटना के बाद में 8 व 9 सितम्बर को दिल्ली के फिरोज शाह कोटला मैदान में एक गुप्त सभा का आयोजन किया गया|इस सभा में भगत सिंह ने अपनी भारत नौजवान सभा के सभी सदस्यों की सभा का विलय हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन में कर दिया और सभी के काफी विचार और विमर्श के बाद इसे एक नया नाम हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन(HSRA) दिया|
पार्टी का उद्देश्य एवं विभाग
हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का उद्देश्य भारत को स्वतंत्र एवं प्रभुता संपन्न एक राष्ट्र घोषित करना था |जिसके लिए इस पार्टी ने कड़ी से कड़ी मेहनत की |इसने भारत की आजादी के लिए कई काकोरी कांड जैसी कई क्रन्तिकारी गतिविधियाँ की|
इस दल के प्रमुख तीन संगठन, प्रचार और सामरिक नामक विभाग बनाये गए|जिसमें संगठन का कार्य विजय कुमार सिन्हा, प्रचार का कार्य भगत सिंह और सामरिक विभाग का कार्य चंद्रशेखर आजाद को दिया गया|
पार्टी के लिए पैसों की व्यवस्था
पार्टी के सदस्यों को पार्टी के निर्वहन के लिए बहुत ही कड़ी मेहनत करनी पड़ती थी|जिसका प्रमुख कारण यह था की ब्रिटिश सरकार के दर से कोई भी इन्हें चंदा नहीं देता था और उस समय युवकों के घरों की भी स्थिति ठीक नहीं थी|इसको देखते हुए पार्टी के सदस्यों ने पार्टी के फण्ड को एकत्रित करने के लिए डकैती डालना प्रारंभ कर दिया|उन्होंने अपनी पार्टी के फण्ड के लिए पहली डकैती बमरौली में डाली जिसका नेतृत्व राम प्रसाद बिस्मिल ने किया|
क्रांतिकारी पत्रों का प्रकाशन
1 जनवरी 1925 में सान्याल जी ने एचआरए के लिए एक रिवोल्यूशनरी शीर्षक के नाम से एक घोषणा पत्र लिखा|जिसका प्रकाशन उत्तर भारत के सभी शहरों में किया गया|जिसमें ब्रिटिश सरकार से भारत को पूर्ण रूप से मुक्त करने और भारत को एक संयुक्त गणराज्य के रूप में स्थापित करने की घोषणा की गयी|इसके साथ ही इस पत्र में सभी के सार्वभौमिक मताधिकार और समाजवादी-उन्मुख उद्देश्य की मांग की|
इसमें गाँधी जी के कार्य करने के तरीको एवं नीतियों का स्वतंत्र रूप से विरोध किया|भारत के युवाओं को अपने इस संगठन में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया|अंग्रेजी पुलिस बंगाल में लिखी गयी भाषा को देखकर चकित रह गए और इनकी तलाश जारी कर दी|सचिन्द्र नाथ सान्याल,जो बड़ी मात्रा में इन पत्रों को बांटने के लिए निकले थे, उन्हें ब्रिटिश पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल में दाल दिया|
क्रन्तिकारी गतिविधियाँ
अपने जीवन काल में हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन ने बहुत-सी क्रन्तिकारी गतिविधियाँ की जिनमें काकोरी कांड बहुत ही विख्यात हुई|
काकोरी कांड
हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के दो प्रमुख नेताओं शचीन्द्रनाथ सान्याल और योगेशचन्द्र चटर्जी के गिरफ्तार होने के बाद पार्टी का पूर्ण उत्तरदायित्व रामप्रसाद बिस्मिल पर आ गया|पार्टी के कार्य करने के लिए धन की आवश्यकता तो थी ही परन्तु शचीन्द्रनाथ सान्याल और योगेशचन्द्र चटर्जी के गिरफ्तार हो जाने के बाद धन की आवश्यकता और बढ़ गई|जिसे देखते हुए उन्होंने 7 मार्च 1925 को बिचपुरी और 24 मई 1925 को द्वारकापुर में डकैती डालीपर वहाँ से उनको पर्याप्त धन प्राप्त न हो सका|जिसके कारण उन्होंने सरकारी खजाने को लूटने का निश्चय किया|
अन्ततोगत्वा राम प्रसाद बिस्मिल ने अपने घर में एक आपातकालीन सभा का आयोजन किया जिसमें उन्होंने सरकारी खजाना लूटने की रणनीत बनाई|अपनी इस रणनीति के अनुसार 9 अगस्त 1925 को लखनऊ जिले एके काकोरी रेलवे स्टेशन के आगे आठ डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेन्जर ट्रेन की चैन को खींच कर रोक लिया और उसमें रखा हुआ सारा सरकारी खजाना लूट लिया और सभी क्रन्तिकारी फरार हो गए|
इस घटना के बाद में ब्रिटिश सरकार ने पूरे भारत के अनेक जगहों पर छापा मारा और 40 क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया|इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने इस दल के प्रमुख रामप्रसाद बिस्मिल व अन्य सभी साथी सदस्यों पर विरुद्ध सशस्त्र युद्ध छेड़ने, सरकारी खजाना लूटने व मुसाफिरों की हत्या करने का मुकदमा चलाया। 18 महीनों तक यह मुक़दमा चलने के बाद में राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ तथा रोशन सिंह को फाँसी सजा दी गयी|बाकी बचे हुए 16 क्रांतिकारियों को 4 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास की सजा दे दी|इस घटना ने हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन को नष्ट कर दिया|
जॉन पी. सॉन्डर्स की हत्या
जब साइमन कमीशन भारत आया और अपना 30 अक्टूबर 1928 को अपना लाहौर का दौरा किया, तो लाला लाजपत राय ने इस आयोग के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध किया|परन्तु ब्रिटिश पुलिस ने इसका जवाब एक हिंसक लाठी चार्ज के रूप में दिया|इस लाठी चार्ज में जेम्स स्कॉट नाम के एक पुलिस अधिकारी ने विशेष रूप से राय जी पर लाठियों का प्रहार किया|इससे वह बुरी तरह घायल हो गए और 17 नवम्बर 1928 को उनकी मृत्यु हो गई|जब इस मामले को ब्रिटिश संसद में प्रस्तुत किया गया तो ब्रिटिश सरकार ने किसी भी प्रकार ध्यान नहीं दिया|
ब्रिटिश सरकार के इस व्यावहार को देखते हुए हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन ने लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने का प्राण किया|इस कार्य को करने के लिए भगत सिंह ने शिवराम राजगुरु,जय गोपाल और चंद्रशेखर आजाद के साथ मिलकर योजना बनाई|परन्तु पूर्ण रूप से पहचान न होने के कारण उन्होंने जेम्स स्कॉट की जगह एक सहायक पुलिस अधीक्षक जॉन पी. सॉन्डर्स की हत्या कर दी|इसके बाद इनका समूह भागने में सफल हो गया परन्तु इनका पीछा कर रहे एक हेड कांस्टेबल चानन सिंह की हत्या, आजाद की कवरिंग फायर से हो गयी|
गलत पहचान के इस मामले ने सिंह और HSRA के उनके साथी सदस्यों को यह दावा करने से नहीं रोका कि प्रतिशोध लिया गया था। अगले दिन HSRA ने लाहौर में पोस्टर लगाकर हत्या को स्वीकार किया जिसमें लिखा था
जेपी सॉन्डर्स मर चुके हैं; लाला लाजपत राय का बदला लिया है। … इसमें भारत में ब्रिटिश सत्ता के एक एजेंट की मौत हो गई है। … इंसान के खून खराबे के लिए खेद है, लेकिन क्रांति की वेदी पर व्यक्तियों का बलिदान… अपरिहार्य है।
केन्द्रीय विधान सभा में बमबारी
जॉन पी. सॉन्डर्स की हत्या की हत्या करके भाग निकलने के बाद, HSRA की अगली बड़ी कार्यवाही दिल्ली में आयोजित केन्द्रीय विधान सभा पर बमबारी थी|जिसका मुख्य उद्देश्य यह था की अंग्रजो द्वारा किये जा रहे भारतीय जनता पर अत्याचारों को विश्व के सामने लाना|इसके लिए भगत सिंह ने बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर विधान सभा में खाली ट्रेजरी बेंचों पर बम फेंके जिससे की कोई भी सभा का सदस्य घायल न हो|इसके बाद उन्होंने भागने का कोई भी प्रयास नहीं किया और इंकलाब जिंदाबाद, वन्दे मातरम् और साम्राज्यवाद मुर्दाबाद के नारे लगाते हुए गिरफ्तारी दी|
असेम्बली बम केस और सांडर्स मर्डर केस की सुनवाई हुई और सिंह, सुखदेव और राजगुरु को उनके कार्यों के लिए 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी गई।
इन्हें भी पढ़े