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चौरी-चौरा कांड का परिचय

भारत के इतिहास में चौरी-चौरा कांड के नाम से प्रसिद्ध घटना 4 फ़रवरी1922 को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के पास में चौरी-चौरा नामक स्थान पर घटित हुई |1अगस्त 1920 औपचारिक से महात्मा गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन की शुरुआत कर दी थी|जिसमें भारत के बहुत से प्रदर्शनकारी भाग ले रहे थे|जिसको देखते हुए ब्रिटिश सरकार के आदेश पर ब्रिटिश सेना प्रदर्शनकारियों के एक बड़े समूह पर गोलियाँ चलाई|

जिसमे बहुत से प्रदर्शनकरी घायल हो गए और कुछ की तो वहीं पर मौत हो गयी|जिसका जवाब देने के लिए प्रदर्शनकारियों ने एक पुलिस थाने पर हमला करके उसमें आग लगा दी|जिस कारण उस थाने में कार्य करने वाले 22 पुलिसकर्मी और 3 आम नागरिकों की जान चली गयी |

इसके परिणाम स्वारूप गाँधी जी ने 12 फ़रवरी 1922 को राष्ट्रीय स्तर पर असहयोग आन्दोलन को रोक दिया |गांधी के फैसले के बाद भी ब्रिटिश सरकार नहीं मानी और 19 गिरफ्तार प्रदर्शनकारियों को ब्रिटिश अधिकारीयों द्वारा मौत की सजा और 14 को आजीवन कारावास की सजा सुना दी |

चौरी-चौरा कांड की घटना

इस घटना के 2 दिन पहले, 2 फ़रवरी 1922 को भगवान अहीर नामक सेवानिवृत्त ब्रिटिश सैनिक असहयोग आन्दोलन में भाग ले रहे प्रदर्शनकारियों का नेतृत्व कर रहे थे |जिसका मुख्य उद्देश्य गौरी बाजार में उच्च खाद्य कीमतों और शराब की हो रही बिक्री का विरोध करना था | इस प्रदर्शन को रोकने के लिए स्थानीय दरोगा गुप्तेश्वर सिंह और पुलिस अधिकारीयों ने प्रदर्शनकारियों को पीटा| कई नेताओं को जेल में बंद भी कर दिया|

जिसके विरोध में 4 फ़रवरी 1922 को लगभग 2000 से 2500 तक प्रदर्शनकारियों ने चौरी-चौरा की बाजार में मार्च करना प्रारंभ किया|स्थिति को नियंत्रित करने के लिए एक पुलिस की टुकड़ी भेजी|प्रदर्शनकारियों को गरने और तितर-बितर करने के लिए गुप्तेश्वर सिंह ने अपने 13 पुलिसकर्मियों को हवा में गोली फायर करने का आदेश दिया|इससे प्रदर्शनकरी भड़क गए और पुलिस पर पथराव शुरू कर दिया |

इस बिगडती हुई स्थिति को नियंत्रित करने के लिए सब-इंस्पेक्टर पृथ्वी पाल ने प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया|जिसमें तीन लोग मारे गए और कई घायल हो गए|इससे प्रदर्शनकारियों में गुस्सा और तेज हो गया और इसके विरोध में ४ फ़रवरी 1922 को चौरी-चौरा के एक पुलिस थाने में आग लगा दी|जिसमे 22 पुलिसकर्मी और 3 आम नागरिकों की जान चली गयी|

चौरी-चौरा कांड के परिणाम

पुलिसकर्मियों की हत्या के जवाब में ब्रिटिश अधिकारीयों ने चौरी-चौरा और उसके आस-पास के क्षेत्र में मार्सल लॉ घोषित कर दिया। कई छापे मरे गए और बहुत से लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया|

इससे महात्मा गाँधी ने महसूस किया कि उन्होंने अहिंसा के महत्व पर पर्याप्त जोर दिए बिना और लोगों को हमले के सामने संयम बरतने के लिए पर्याप्त प्रशिक्षण दिए बिना ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार के खिलाफ विद्रोह करने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करने में बहुत जल्दबाजी की थी। उन्होंने फैसला किया कि भारतीय लोग तैयार नहीं थे और स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए जो आवश्यक था वह करने के लिए अभी तक तैयार नहीं थे। गांधी को भी गिरफ्तार किया गया था और छह साल के कारावास की सजा सुनाई गई थी, लेकिन बाद में उनके खराब स्वास्थ्य के आधार पर फरवरी 1924 में रिहा कर दिया गया था।

12 फरवरी 1922 को महात्मा गाँधी ने  चौरी चौरा त्रासदी के प्रत्यक्ष परिणाम के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर असहयोग आंदोलन को रोक दिया।

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