77भारत की गैर-हड़प्पाई ताम्र-पाषाणिक सभ्यताएँ (Image by wirestock on Freepik)
भारत के गैर-हड़प्पाई ताम्र-पाषाण समुदाय या सभ्यता –
भारत में गैर-हड़प्पाई ताम्र-पाषाण समुदायों या सभ्यताओं के महत्त्वपूर्ण स्थल और उनका विस्तार पश्चिमी भारत और दक्कन में मिलता है |
जिनमें राजस्थान के दक्षिण-पूर्व में स्थित बानस सभ्यता (2600 ई.पू.-1900ई.पू.), उदयपुर के निकट अहर और गिलुंड जैसे मुख्य स्थलों सहित, मालवा सभ्यता (1700ई.पू.-1400ई.पू.), पश्चिमी मध्य प्रदेश में नवदातोली जैसे मुख्य स्थल सहित जोर्वे सभ्यता (1400 ई.पू.-700 ई.पू.), महाराष्ट्र में पुणे के पास स्थित मुख्य स्थलों इनामगांव और चन्दौली सहित पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल में भी ताम्रपाषाण सभ्यताओं के प्रमाण मिले हैं |
यद्यपि गैर हड़प्पा सभ्यताएँ विभिन्न प्रदेशों में फलती-फूलती रहीं थी, परन्तु उनमें कुछ पहलुओं में बुनियादी समानताएं थी, जैसे उनके मिट्टी के घर, खेती और शिकार संबंधी गतिविधियाँ, चाक-पहिये पर बनाए गए मिट्टी के बर्तन इत्यादि |
इस ताम्र पाषणिक सभ्यताओं के लोग मिट्टी के बर्तनों में गेरुए रंग के बर्तन, काले और लाल रंग के बर्तन और इसके साथ विभिन्न प्रकार की कटोरियाँ, बेसिन, टोंटीदार जार जिनकी गर्दन संकरी थी और स्टैंड पर रखी तश्तरियां इत्यादि भी प्रयोग करते थे |
औजार, आवश्यक उपकरण एवं अन्य वस्तुएँ –
ताम्रपाषण सभ्यताओं की विशेषता है उनके द्वारा प्रयोग किए जाने वाले ताँबे और पत्थर से बने औजार |
पत्थर के औजार बनाने के लिए वे लोग, मकीक (कैलसेडनी), चकमक पत्थर (चर्ट) इत्यादि का उपयोग करते थे |
इन सभ्यताओं के लोगों द्वारा प्रयोग किये जाने वाले औजारों में गंडासा (फरसा), चाकू, हंसिया, त्रिकोण और संबल इत्यादि शामिल थे |
खेती में पत्ती की तरह के खुरपी जैसे औजार प्रयुक्त होते थे |
ताँबे से बनी चीजों में चपटी कुल्हाड़ियाँ, तीरों की नोकें, भाले, नेजों के सिरे, छेनियां, मछली के कांटे, तलवारे, फरसे, चूड़ियाँ, अंगूठियाँ, मनके इत्यादि उपयोग में लाए जाते थे |
जीवन यापन से संबंधित अर्थव्यवस्था –
इन बस्तियों के लोग कृषि और पशुपालन पर जीवन यापन करते थे |
इसके अतिरिक्त इन लोगों में मछली पकड़ना और शिकार भी प्रचलन में था |
इस सभ्यता की मुख्य फसलों में चावल, जौ, दालें, गेहूँ, ज्वार, सफ़ेद चने, मटर, हरे चने इत्यादि शामिल थे |
इस सभ्यता के प्रमुख भागों में उन्हीं क्षेत्रों में समूह रूप से विकास हुआ, जहां मुख्यतः काली मिट्टी बहुतायत में थी जो कपास उगाने के लिए भी उपयोगी है |
इस स्थलों से मिले पशुओं के कंकालों से संकेत मिलते हैं कि इस सभ्यताओं में घरेलू पशुपालन और जंगली पशु भी मौजूद थे |
घरों में पाले जाने वाले पशुओं में गाय, भैंस, भेड़ें. बकरी, कुत्ते, सूअर और घोड़े इत्यादि शामिल थे |
वन्यप्राणियों में काले हिरण, ऐटिलोप, नीलगाय, बारहसिंगा, सांभर, चीता, जंगली भैसा और एक सींग वाली भैस शामिल थी |
घर और निवास –
ताम्र पाषणिक सभ्यताएँ प्रायः ग्रामीण बस्तियां थीं |
ये लोग आयताकार और गोलाकार घरों में रहते थे जिनकी दीवारें कच्ची मिट्टी और छतें घास-फूस की होती थीं |
अधिकतर घर एक ही कमरे के घर थे, पंरतु कुछ घरों में दो या तीन कमरे थे |
इस घरों की फर्श आग से पकी ईंटों या मिट्टी तथा नदियों की बजरी से मिश्रित करके बनाई गई थी |