खनिज (Mineral) :-
जो पदार्थ पृथ्वी के धरातल से खोदकर निकाले जाते हैं उन्हें ‘खनिज’ कहते हैं। प्राकृतिक संसाधनों में खनिज संसाधन (पदार्थों) का महत्त्वपूर्ण स्थान है। खनिज की अपनी विशेष रचना व भौतिक गुण होते हैं। देश के आर्थिक विकास और औद्योगिक विकास में खनिज की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। कुछ खनिज संसाधन पृथ्वी के ऊपरी भाग व कुछ सागर की तली से निकाले जाते हैं। सभ्यता की शुरुआत से ही मानव विभिन्न खनिजों का इस्तेमाल करता चला आ रहा है। पहले मनुष्य ने ताँबे और काँसे का प्रयोग करना सीखा जिसे कांस्य युग या ताम्र युग के नाम से जाना जाता है। बाद में लौह-अयस्क की खोज की गयी जिससे मजबूत और टिकाऊ सामान बनने लगे। वर्तमान समय में लोहे का सबसे अधिक प्रयोग होता है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में इसका प्रयोग होता है इसलिए वर्तमान युग को लौहयुग की संज्ञा दी गयी है।
भारत में सबसे अधिक खनिज दक्षिण के पठार के पूर्वोत्तर एवं पश्चिमोत्तर भाग में पाये जाते हैं। खनिज धातुओं की दृष्टि से छोटा नागपुर का पठार भारत का सबसे धनी प्रदेश है। यहाँ लौह-अयस्क (Iron ore), अभ्रक तथा मैंगनीज आदि औद्योगिक धातुएँ पायी जाती हैं। भारत में राजस्थान के मरुस्थलीय भागों में बालू की तहों में सीसा, जस्ता और ताँबा पाया जाता है। भारत खनिज की दृष्टि से अत्यन्त सम्पन्न देश है परन्तु इसका पूर्ण उपयोग नहीं हो पा रहा है।
खनिजों के प्रकार (Type of Minerals) भारत में दो प्रकार के खनिज पाये जाते हैं-
- धात्विक खनिज (Metallic Minerals) – जिन खनिजों से धातुओं की प्राप्ति होती है उन्हें धात्विक खनिज कहते हैं। धात्विक खनिज, जैसे-लोहा, ताँबा, सोना और चाँदी आदि ।
- अधात्विक खनिज (Non-metallic Minerals) – जिन खनिजों से धातुओं की प्राप्ति नहीं होती है उसे अधात्विक खनिज कहते हैं। इसमें इमारतें बनाने के पत्थर, खनिज रसायन एवं रत्न मुख्य हैं। जैसे-गन्धक, पोटाश, जिप्सम और ग्रेफाइट आदि हैं।
भारत में पाये जानेवाले कुछ मुख्य खनिजों का विवरण इस प्रकार है-
लौह-अयस्क (Iron-ore) :-
भारत में लौह-अयस्क का विशाल भण्डार पाया जाता है। इसे औद्योगिक सभ्यता का मूलाधार कहते हैं। इसीलिए वर्तमान युग को लौह युग भी कहते हैं। लौह-अयस्क हमें खानों से अशुद्ध रूप में मिलता है। लौह-अयस्क के भण्डारों की दृष्टि से भारत विश्व का सबसे सम्पन्न राष्ट्र है। एक अनुमान के अनुसार भारत में 1,757 अरब टन लौह-अयस्क के सुरक्षित भण्डार विद्यमान हैं, परन्तु भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग ने 23 अरब टन लौह-अयस्क के सुरक्षित भण्डारों का पता लगाया है। भारतीय लौह-अयस्क में 64% से अधिक शुद्ध धातु पायी जाती है। भारत में उत्तम कोटि का लोहा बनाया जाता है जिसकी माँग विदेशों में भी है। भारत में लौह- अयस्क, मैग्नेटाइट, हेमेटाइट, लिमोनाइट तथा लैटेराइट के रूप में पाया जाता है।
भारत में लौह-अयस्क का उपयोग (Uses of Iron-ore in India) :-
- भारत में लौह-अयस्क का उपयोग इस्पात बनाने के लिए किया जाता है।
- मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ के लौह-अयस्क का उपयोग भिलाई व विशाखापट्टनम के संयन्त्रों में किया जाता है।
- ओडिशा, क्योंझर व झारखण्ड के सिंहभूम का लौह-अयस्क, टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी, जमशेदपुर, बोकारो, कुल्टी, हीरापुर, बर्नपुर, आसनसोल, दुर्गापुर के इस्पात संयन्त्रों में प्रयुक्त होता है।
- कर्नाटक राज्य के लौह-अयस्क का उपयोग सलेम व भद्रावती के इस्पात कारखानों में किया जाता है।
- कर्नाटक के कुद्रेमुख लौह-अयस्क को विदेशों को निर्यात कर दिया जाता है।
भारत में लौह अयस्क उत्पादक क्षेत्र :-
- गोवा – लौह अयस्क के उत्पादन में इस राज्य का तीसरा स्थान है। यहाँ से देश का 18.0% लौह-अयस्क प्राप्त होता है। पिरना अदोल, पालओल्डा कुडनेम पिसरूलेम तथा कुडनेयम सुरला नामक स्थानों पर लौह-अयस्क की खानें स्थित हैं।
- छत्तीसगढ़ – मध्य प्रदेश से अलग बने इस नये राज्य में लौह-अयस्क के प्रचुर भण्डार पाये जाते हैं। यहाँ के राजहरा, पहाड़ियों, बस्तर, रायगढ़, सरगुजा, बिलासपुर आदि क्षेत्रों में लौह-अयस्क के भण्डार हैं।
- मध्य प्रदेश – मध्य प्रदेश के जबलपुर व माण्डला और बालाघाट में लौह-अयस्क के भण्डार पाये जाते हैं।
- कर्नाटक – लौह-अयस्क के उत्पादन में इस राज्य का दूसरा स्थान है। यहाँ से 19.7% लौह-अयस्क निकाला जाता है। यहाँ के बल्लारि, होसपेट, केमानगुण्डी तथा चिक्कमंगलुरू लौह-अयस्क के क्षेत्र हैं।
- झारखण्ड – यहाँ हेमेटाइट व मैग्नेटाइट प्रकार के लोहे के विशाल भण्डार पाये जाते हैं। यहाँ सिंहभूम जिले, नोआमण्डी, गुआ, सासगुडा, पनसिराबुरु, बुदाबुरु, नोरबुरु मुख्य उत्पादक क्षेत्र हैं। डाल्टनगंज के उत्तर-पश्चिम में लोहे की खानें हैं।
- ओडिशा – भारत में लौह-अयस्क उत्पादन में ओडिशा का प्रथम स्थान है। सुन्दरगढ़, मयूरभंज तथा क्योंझर में लौह- अयस्क उत्पादन की प्रमुख खानें हैं।
- महाराष्ट्र – यहाँ से देश का 2% लौह-अयस्क प्राप्त होता है। चन्द्रपुर, लोहारा, रत्नागिरि एवं पीपलगांव प्रमुख लौह-अयस्क उत्पादक क्षेत्र हैं।
उत्पादन एवं व्यापार :-
विश्व में लोहा उत्पादक देशों में भारत का सातवाँ स्थान है। 1950-51 में यहाँ 50 लाख टन लौह-अयस्क का उत्पादन हुआ था जो 2002-03 में बढ़कर 969.62 हजार टन हो गया। 2006-2007 में 1876.96 हजार टन, 2007-2008 में 2064.52 हजार टन एवं 2010-2011 में लोहे का उत्पादन 2975.460 हजार टन हुआ। मिनरल ईयर बुक 2011 के अनुसार 2011-12 में देश में लौह अयस्क का उत्पादन 167.3 मिलियन टन था। इसके उत्पादन में और वृद्धि होने की आशा है। भारत के मार्मागोवा, विशाखापट्टनम, पारादीप एवं कोलकाता बन्दरगाहों से विदेशों को लौह-अयस्क भेजा जाता है। निर्यात मुख्य रूप से जापान, रूमानिया, जर्मनी, इटली, यूगोस्लाविया, पोलैण्ड, बेल्जियम तथा हंगरी आदि देशों को किया जाता है।
अभ्रक (Mica) :-
अभ्रक उत्पादन में भारत विश्व में प्रथम स्थान पर है। अभ्रक शीट के उत्पादन एवं भण्डारण में भारत का विश्व में प्रथम स्थान है। यह आग्नेय और रूपान्तरित चट्टानों से निकाला जाता है। यह पारदर्शी, पतला व चमकदार होता है। यह काला व सफेद रंग में पाया जाता है। भारत को अभ्रक के उत्पादन में विश्व में लगभग एकाधिकार प्राप्त है। विश्व का 75 से 80 प्रतिशत अभ्रक भारत में ही निकाला जाता है।
भारत में अभ्रक का उपयोग :-
भारत में अभ्रक का निम्न प्रकार से उपयोग होता है-
- ताप व विद्युत् का प्रतिरोधी होने के कारण विद्युत् के उपकरणों में उसका बहुतायत से प्रयोग किया जाता है |
- अभ्रक का उपयोग रबड़ व प्लास्टिक उद्योग में होता है।
- यह पारदर्शक तथा चमकीला होता है। इससे वार्निश और पेन्ट बनाया जाता है।
- अभ्रक का उपयोग बेतार के तार तथा सैन्य उपकरण बनाने में किया जाता है।
भारत में अभ्रक उत्पादन के प्रमुख क्षेत्र :-
- झारखण्ड – यह अभ्रक उत्पादक का प्रमुख राज्य है। झारखण्ड की अभ्रक पेटी कोडरमा, हजारीबाग, गिरिडीह जिलों में केन्द्रित है।
- बिहार – अभ्रक उत्पादन में बिहार राज्य के गया, मुंगेर व भागलपुर प्रमुख जिले आते हैं।
- आन्ध्र प्रदेश – यह भारत का प्रथम अभ्रक उत्पादक राज्य है। यहाँ से 33% अभ्रक उत्पन्न किया जाता है। नेल्लोर, गुन्टूर, रायचुर प्रमुख अभ्रक उत्पादक जिले हैं।
- राजस्थान – अभ्रक उत्पादन में इस राज्य का तीसरा स्थान है। यहाँ पर देश का 15% अभ्रक उत्पन्न किया जाता है। इस राज्य की अभ्रक पेटी जयपुर, टोंक, अजमेर, भीलवाड़ा तथा उदयपुर जिलों में 320 किमी लम्बी तथा 95 किमी चौड़ी है।
- अन्य क्षेत्र – भारत में तमिलनाडु राज्य के तिरुनेलवेली, मध्य प्रदेश के होशंगाबाद, झाबुआ, मन्दसौर, बालाघाट और छिन्दवाड़ा हैं। ओडिशा के गंजाम तथा कटक, केरल के एर्नाकुलम तथा प० बंगाल में मिदनापुर मुख्य क्षेत्र हैं।
उत्पादन एवं व्यापार :-
अभ्रक उत्पादन में भारत का स्थान प्रथम है परन्तु पिछले कुछ वर्षों में अभ्रक उत्पादन में गिरावट आयी है। सन् 1950-51 में देश में 10 हजार टन अभ्रक उत्पन्न हुआ। 1990-91 में यह बढ़कर 40.6 हजार टन हो गया। सन् 2010-11 में इसका उत्पादन 1293 टन ही रह गया। मिनरल ईयर बुक 2012 के अनुसार भारत में 1807 हजार टन अभ्रक उत्पादित हुआ।
अभ्रक निर्यातक देशों में भारत का स्थान प्रथम है। यहाँ से 80% अभ्रक का निर्यात किया जाता है। भारत ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान तथा जर्मनी को अभ्रक निर्यात करता है।
मैंगनीज (Manganese) :-
मँगनीज बहुत उपयोगी मिश्र धातु है। इसके विभिन्न उपयोग के कारण ही इसे ‘बहुमुखी प्रतिभा वाला खनिज’ कहा जाता है। मँगनीज अयस्क के भण्डारण में भारत का विश्व में तीसरा स्थान है व उत्पादन में पाँचवा स्थान है। इण्डियन मिनरल ईयर बुक-2012 के अनुसार, देश में मँगनीज अयस्क का भण्डार 430 मिलियन टन है।
मैंगनीज का उपयोग :-
मैंगनीज अयस्क का निम्न प्रकार से उपयोग किया जाता है-
- इसका उपयोग मिश्र धातु बनाने में किया जाता है।
- भारत में मैंगनीज का 95% भाग इस्पात निर्माण में लौह धातुओं को कठोर और टिकाऊ बनाने के लिए किया जाता है।
- मैंगनीज का प्रयोग सूखी बैटरियाँ, वार्निश, ब्लीचिंग पाउडर व ऑक्सीजन तथा क्लोरीन गैस बनाने के लिए किया जाता है।
- इसका उपयोग चीनी मिट्टी के बर्तनों पर पॉलिश के लिए किया जाता है।
- मैंगनीज का प्रयोग अब विद्युत् उपकरण, काँच उद्योग, गैस बनाने और वायुयान के निर्माण में भी होता है।
भारत में मैंगनीज का वितरण (Distribution of Manganese In India) :-
- ओडिशा – भारत का 1/3 भाग मैंगनीज ओडिशा में पाया जाता है। यहाँ देश का 40.4% संचित भण्डार है । सुन्दरगढ़ कोरापुट, मयूरभंज, क्योंझर तथा बोलानगिरि जिले में मैंगनीज अयस्क का उत्पादन होता है।
- मध्य प्रदेश – यहाँ के बालाघाट, छिन्दवाड़ा, जबलपुर, धार, झाबुआ, इन्दौर, सिवनी, माण्डला आदि जिलों में मैंगनीज का भण्डार देश के कुल भण्डार का 16.49% होता है।
- छत्तीसगढ़ – यहाँ के बस्तर व बिलासपुर में मैंगनीज उत्पन्न होता है।
- कर्नाटक – यहाँ देश का 11.0% मैंगनीज उत्पन्न किया जाता है। यहाँ के बेल्लारि, धारवाड़, बेलगाव, शिवमोग्गा व चिक्कमंगलुरू जिले में मैंगनीज का उत्पादन होता है।
- महाराष्ट्र – यह मैंगनीज उत्पादन की दृष्टि से भारत में तीसरे स्थान पर है। यहाँ 21.0% मैंगनीज उत्पन्न होता है। यहाँ के नागपुर भण्डारा और रत्नागिरि मुख्य मैंगनीज उत्पादक जिले हैं।
- आन्ध्र प्रदेश – इस राज्य का मैंगनीज उत्पादन में पाँचवाँ स्थान है। यहाँ के विशाखापट्टनम, कुडप्पा, श्रीकाकुलम, गुन्टूर एवं विजयनगर मुख्य जिले हैं। यहाँ देश के कुल मैंगनीज उत्पादन का 6.0% उत्पादन किया जाता है।
- अन्य क्षेत्र – (1) गुजरात के पंचमहल और बड़ोदरा, (2) झारखण्ड के सिंहभूम, धनबाद और हजारीबाग, (3) राजस्थान में उदयपुर, बाँसवाड़ा तथा पाली एवं (4) गोवा में परनेज तथा बारटेक मुख्य जिले हैं।
उत्पादन और व्यापार :-
सन् 1950-51 में देश में 14 लाख टन मैंगनीज का उत्पादन हुआ जो 1996-97 में बढ़कर 18.3 लाख टन हो गया। सन् 2009- 10 में यह उत्पादन 1330.93 हजार टन हो गया।
भारत का 1/3 भाग मँगनीज विदेशों को भेज दिया जाता है। फ्रांस, जर्मनी, बेल्जियम, पोलैण्ड, ग्रेटब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका व जापान आदि देशों को इसका निर्यात किया जाता है।
बॉक्साइट (Bauxite) :-
बॉक्साइट का रंग मिट्टी जैसा होता है। यह बहुउपयोगी धातु है। यह लाल व पीले रंग की लौह भस्म के साथ मिश्रित रूप में पायी जाती है। यह अत्यन्त हल्की होती है। इसीलिए इसमें उच्च विद्युत् एवं तापीय संचालकता, गलाने की सुविधा तथा ताप को परिवर्तित करने का गुण पाया जाता है। भारत में 328 करोड़ टन बॉक्साइट के भण्डार होने का अनुमान लगाया गया है। जो विश्व के समस्त बॉक्साइट भण्डार का 7% है अर्थात् संचित भण्डार की दृष्टि से भारत का विश्व में चौथा स्थान है।
बॉक्साइट का उपयोग :-
बॉक्साइट का निम्न उपयोग होता है-
- बॉक्साइट धातु का उपयोग ऐलुमिनियम बनाने में किया जाता है।
- इसका उपयोग चीनी मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए किया जाता है।
- मिट्टी का तेल साफ करने, सीमेण्ट तथा रासायनिक पदार्थ बनाने में इसका उपयोग किया जाता है।
- यह अत्यन्त लचीली होती है इसलिए इसको किसी भी रूप में ढाला जा सकता है।
- इसका प्रयोग ताँबे के स्थान पर किया जाता है।
- बॉक्साइट के प्रयोग से बिजली के केबिल, तार, वायुयान के इंजन और रेल डिब्बे बनाये जाते हैं।
- इसकी विशिष्ट मिश्र धातु से बर्तन बनाये जाते हैं। इसके मैल से सीमेण्ट बनता है।
- ऐलुमिनियम उद्योग बॉक्साइट धातु की ही देन है।
भारत में बॉक्साइट का वितरण :-
- झारखण्ड – इस राज्य की राजधानी में राँची, पलामू (पार क्षेत्र) जिलों में बॉक्साइट के विशाल भण्डार हैं। राँची जिले में लोहरदगा के निकट बॉक्साइट की खानें पायी जाती हैं।
- छत्तीसगढ़ – इस राज्य में बॉक्साइट के प्रचुर भण्डार हैं। यहाँ के बिलासपुर, दुर्ग, सरगुजा तथा रायगढ़ जिलों में बॉक्साइट उत्पन्न होता है।
- मध्य प्रदेश – यहाँ कटनी, शहडोल, जबलपुर, माण्डला आदि जिलों में बॉक्साइट उत्पन्न होता है।
- महाराष्ट्र – बॉक्साइट के उत्पादन में इस राज्य का तीसरा स्थान है। कोल्हापुर, थाना, कोलाबा, रत्नागिरि, पुणे, सतारा मुख्य बॉक्साइट उत्पादक जिले हैं।
- गुजरात – यहाँ पर बॉक्साइट का संचित भण्डार 5 करोड़ टन है। भावनगर, नवीनगर, पोरबन्दर, जाफराबाद, बोतवा, महुआ, जूनागढ़, अमरेली बॉक्साइट उत्पादक जिले हैं।
- तमिलनाडु – सलेम जिले में शिवराय एवं कोटली पहाड़ियाँ, पलानी एवं कोडाइकनाल पहाड़ियाँ एवं कोयम्बटूर जिले में कोलेगलाई पहाड़ियों में बॉक्साइट की खानें हैं। यहाँ 3 करोड़ टन बॉक्साइट के भण्डार हैं।
- कर्नाटक – यहाँ 1.6 करोड़ टन बॉक्साइट के भण्डार हैं। यहाँ बेलगाव जिले में बॉक्साइट उत्पन्न होता है।
- अन्य क्षेत्र – (1) उत्तर प्रदेश, (2) ओडिशा, (3) जम्मू-कश्मीर तथा (4) गोवा में भी बॉक्साइट मिलता है।
उत्पादन एवं व्यापार :-
स्वतन्त्रता के बाद इस क्षेत्र में तीव्र वृद्धि हुई। 1950-51 में 68 हजार टन बॉक्साइट उत्पन्न हुआ जो 2009-10 में 432.12 हजार टन हो गया। पिछले 65 वर्षों में इसके उत्पादन में सौ गुनी से ज्यादा वृद्धि हुई है। भारतीय मिनरल ईयर बुक-2010 के अनुसार देश के कुल बॉक्साइट उत्पादन में ओडिशा का स्थान 37.0%, आन्ध्र प्रदेश 24.0% गुजरात 13.0% तथा छत्तीसगढ़ 8.0% है। 90% बॉक्साइट की देश में ही खपत हो जाती है, जबकि शेष 10% बॉक्साइट जर्मनी को निर्यात किया जाता है।
ताँबा (Copper) :-
ताँबा एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण धातु है। भारत में इसका उपयोग प्राचीन काल से ही होता रहा है। लोहे की खोज के पहले भारत में ताँबा का विकास हो चुका था। ताँबा भूगर्भ में आग्नेय तथा कायान्तरित शैलों की परतों से प्राप्त होता है। प्रारम्भिक अवस्था में यह अयस्क के रूप में प्राप्त होता है और उपयोग के पहले इसे शोधित करना पड़ता है। भारत में 1.55 बिलियन टन ताँबे के सुरक्षित भण्डार होने का अनुमान लगाया गया है।
ताँबे का उपयोग :-
ताँबे का निम्न प्रकार से उपयोग होता है-
- भारत में प्राचीनकाल में ताँबे की मूर्ति, सिक्के और बर्तन बनाये जाते थे।
- विद्युत् और ताप का सुचालक होने के कारण इससे बिजली के उपकरण बनाये जाते हैं।
- बिजली के तार तथा मशीनी उपकरण का निर्माण ताँबे की धातु से ही होता है।
- वर्तमान समय में विद्युत् के तार, टेलीफोन एवं दूरसंचार के तार, बल्ब, मोटर, इंजन, रेडियो, घड़ी, टेलीविजन तथा मिश्र धातु बनाने में इसका प्रयोग होता है।
भारत में ताँबा अयस्क उत्पादन क्षेत्र :-
- राजस्थान – इसका स्थान तीसरा है। यहाँ के झुंझुनू व अलवर ताँबा अयस्क उत्पादन के प्रमुख जिले हैं। यहाँ पर हिन्दुस्तान कॉपर कारपोरेशन द्वारा ताँबा खनन का कार्य होता है।
- मध्य प्रदेश – ताँबा उत्पादन व भण्डारण दोनों ही दृष्टि से मध्य प्रदेश दूसरे स्थान पर है। यहाँ पर 20% ताँबा उत्पन्न किया जाता है। यहाँ पर बालाघाट जिले में स्थित भताघखण्ड ताँबा पेटी प्रमुख ताँबा अयस्क का उत्पादन क्षेत्र है।
- झारखण्ड – ताँबा उत्पादन व भण्डारण दोनों ही दृष्टि से यह भारत में प्रथम स्थान पर है। यहाँ पर भारत का 25% ताँबा उत्पन्न किया जाता है। सिंहभूम जिले में राखा, मोसाबनी, रामा, धोबनी, सुरदा, राजदहा तथा पाथरांगारा मुख्य ताँबा उत्पादक क्षेत्र हैं। झारखण्ड, मध्य प्रदेश व राजस्थान भारत का 97% ताँबा उत्पन्न करते हैं।
- अन्य क्षेत्र – (1) कर्नाटक, (2) हिमाचल प्रदेश (3) महाराष्ट्र (4) सीमान्ध्र तथा (5) तेलंगाना मुख्य ताँबा उत्पादक राज्य हैं।
उत्पादन एवं व्यापार :-
ताँबा अयस्क के उत्पादन में भारत विश्व में आठवें स्थान पर है। 1980-81 में भारत में लगभग 20 लाख टन ताँबा का उत्पादन हुआ था जो 1990-91 में बढ़कर 52.5 टन हो गया तथा 2011-12 में यह उत्पादन 330.25 हजार टन हो गया। भारत में ताँबे की खपत अधिक है इसलिए अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए रूस, संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और कनाडा से भारत ताँबा आयात करता है।
सोना (Gold) :-
सोना एक बहुमूल्यवान खनिज पदार्थ है। यह अशुद्ध रूप में चाँदी के साथ मिश्रित अवस्था में तथा कभी-कभी विशुद्ध रूप में आग्नेय व रूपान्तरित शैलों से भी प्राप्त होता है। कभी-कभी कुछ सोना नदियों की रेतों से भी निकाला जाता है। भारत में विश्व का केवल 0.78% सोना पाया जाता है। देश में स्वर्ण का पहला परिशोधन कारखाना निजी क्षेत्र में महाराष्ट्र के धुले जिले में शिरपुर में स्थापित (2001) किया गया। जबकि ‘सोहना’ (हरियाणा में) में एक गोल्ड रिफाइनरी की स्थापना की जा रही है।
सोने का उपयोग :-
सोने का निम्न उपयोग है-
- भारत में सोने का उपयोग आभूषण बनाने के लिए किया जाता है।
- सोना प्रत्येक व्यक्ति के आकर्षण का केन्द्र है।
- इसका प्रयोग सिक्का, पेन की निवें, चश्मों के फ्रेम, भस्म तथा औषधि बनाने के लिए किया जाता है।
- भारत में मुद्रा की छपाई सोने की उपलब्धता को ध्यान में रखकर की जाती हैं।
सोना- उत्पादक क्षेत्र :-
- कर्नाटक – कर्नाटक राज्य सोने का प्रमुख उत्पादक है। यहाँ से भारत का 98% सोना प्राप्त किया जाता है। यहाँ पर कोलार व हट्टी की खानों से सोना निकाला जाता है। ये खानें अत्यधिक गहरी हैं। इसलिए इसकी खुदाई में सरकार को बहुत पैसा खर्च करना पड़ता है।
- आन्ध्र प्रदेश – यह राज्य भारत में सोना उत्पादन करनेवाला दूसरा राज्य है। यहाँ अनन्तपुर, चितूर, कर्नूल तथा पूर्वी गोदावरी जिलों से सीमित मात्रा में ही सोना प्राप्त होता है।
- अन्य क्षेत्र – (1) तमिलनाडु, (2) केरल (3) बिहार, (4) ओडिशा, (5) राजस्थान एवं (6) उत्तर प्रदेश में भी कुछ स्थानों पर नदी की घाटियों में सोना पाया जाता है।
उत्पादन एवं व्यापार :-
सोने के उत्पादन व भण्डार दोनों ही दृष्टि से भारत अत्यन्त पिछड़ा है। 1960-61 में देश में 4,870 किलोग्राम सोने का उत्पादन हुआ था। इसके बाद इसका उत्पादन घटता गया। 1990-91 में यह 2,041 किलोग्राम हो गया। 2009-10 में 264.19 किलोग्राम हो गया। सोने के मूल्य में निरन्तर वृद्धि होती जा रही है। भारत में सोने की खपत अधिक होने के कारण विदेशों से इसका आयात करना पड़ता है। भारत में सोने की खुदाई का कार्य दो कम्पनियाँ करती हैं:
- भारत गोल्ड माइन्स लिमिटेड ।
- हट्टी गोल्ड माइन्स लिमिटेड ।
खनिज संसाधनों का संरक्षण (Conservation of Mineral Resources) :-
भारत में पाये जानेवाले धात्विक और अधात्विक खनिजों का संरक्षण करना अत्यन्त जरूरी है।
- भारत की भविष्य में आनेवाली घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति इन्हीं खनिजों से सम्भव है इसलिए खनिजों को अयस्क के रूप में निर्यात न करके संशोधित रूप में निर्यात करना चाहिए।
- लोहा, ताँबा, सोना, बॉक्साइट आदि खनिजों के छोटे-छोटे टुकड़ों को इकट्ठा करके उनका पुनः प्रयोग करना।
- खनन की तकनीक में सुधार करना जिससे खनन के समय खनिजों की बर्बादी कम हो ।
- कम खनिज पदार्थों के स्थान पर अधिक मात्रा में पाये जानेवाले खनिजों को इस्तेमाल करना, जैसे ताँबे के तार के स्थान पर एल्युमिनियम के तार का प्रयोग करना।
- लोहे में लगनेवाले जंग को वैज्ञानिक विधियों (पेन्ट या ग्रीस) से लगाकर लोहे की सुरक्षा करना जिससे यह अधिक समय तक सुरक्षित रह सके।
खनिजों के संरक्षण के लिए इनके वैकल्पिक पदार्थ की खोज, धातुओं का पुनर्चक्रण और नये खनिज क्षेत्रों की खोज की जानी चाहिए।