औद्योगिक क्रान्ति: कारण, प्रभाव एवं लाभ [Industrial Revolution UPSC NCERT Notes]


औद्योगिक क्रान्ति –

साधारण अर्थों में क्रान्ति का अर्थ है-किसी स्थापित व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन । क्रान्तियाँ विभिन्न प्रकार की होती हैं; जैसे- धार्मिक क्रान्ति, आर्थिक क्रान्ति, सामाजिक क्रान्ति, राजनीतिक क्रान्ति और औद्योगिक क्रान्ति । वैज्ञानिक आविष्कारों के पूर्व विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ हाथों द्वारा बनायी जाती थीं किन्तु नयी-नयी मशीनों के आविष्कार के परिणामस्वरूप हाथ का स्थान मशीनों ने ले लिया और इस प्रकार अब मशीनों द्वारा वस्तुओं का प्रचुर उत्पादन होने लगा। दूसरे शब्दों में, “हाथों द्वारा बनायी गयी वस्तुओं के स्थान पर आधुनिक मशीनों के द्वारा व्यापक स्तर पर निर्माण की प्रक्रिया को औद्योगिक क्रान्ति का नाम दिया जाता है। “

औद्योगिक क्रान्ति को परिभाषित करते हुए कहा जा सकता है कि “उत्पादन के साधनों में आमूल-चूल परिवर्तन हो जाना ही औद्योगिक क्रान्ति है।”

औद्योगिक क्रान्ति से आशय उद्योगों की प्राचीन परम्परागत और धीमी गति को छोड़कर नये वैज्ञानिक तथा तीव्र गति से उत्पादन करने वाले यन्त्रों व मशीनों का प्रयोग किया जाना है। 18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में इंग्लैण्ड में परिवर्तन की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई। इस समय उत्पादन की तकनीक और संगठन में आश्चर्यजनक परिवर्तन हुए। ये परिवर्तन इतने प्रभावी और द्रुत गति से हुए कि इसे क्रान्ति कहा गया। औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप बड़े उद्योगों का सूत्रपात हुआ। इस क्रान्ति का प्रारम्भ सर्वप्रथम इंग्लैण्ड में हुआ।

इंग्लैण्ड में औद्योगिक क्रान्ति के कारण –

18वीं शताब्दी में औद्योगिक क्रान्ति के लिए इंग्लैण्ड की परिस्थितियाँ बहुत अनुकूल थीं। समुद्र पार के व्यापार के द्वारा, जिसमें दासों का व्यापार भी शामिल है, इंग्लैण्ड ने भरपूर लाभ कमाया । इस लाभ से उसे पर्याप्त पूँजी उपलब्ध हुई। अतः यूरोपीय देशों के व्यापार की होड़ में वह एक ऐसी शक्ति के रूप में उभरा, जिसका कोई प्रतिद्वन्द्वी नहीं था। इसके निम्न कारण थे-

  1. इंग्लैण्ड में खनिज सम्पदाओं, यथा-लोहे और कोयले के असीमित भण्डार थे।
  2. इंग्लैण्ड ने खोजी यात्राओं के द्वारा कई उपनिवेश स्थापित कर लिये थे और इन उपनिवेशों से सरलतापूर्वक कच्चा माल प्राप्त हो सकता था।
  3. इंग्लैण्ड को अपने उपनिवेशों से सस्ते श्रमिक मिल सकते थे तथा उन्हें कम मजदूरी देने के कारण इंग्लैण्ड को भारी लाभ हो सकता था।
  4. इंग्लैण्ड के वैज्ञानिकों के आविष्कारों ने औद्योगिक क्रान्ति को सरल बना दिया।
  5. इंग्लैण्ड के पूँजीपतियों के पास धन की कोई कमी नहीं थी। उन्होंने लाभ कमाने के लिए कई उद्योग-धन्धे स्थापित किये।
  6. इंग्लैण्ड में उत्पादित (आवश्यकता से अधिक) माल की खपत के लिए उपनिवेशों के बाजार सुलभ थे।

उपर्युक्त कारणों से इंग्लैण्ड में सर्वप्रथम क्रान्ति हुई, जिसके फलस्वरूप इंग्लैण्ड को उस समय ‘विश्व की उद्योगशाला’ कहा जाता था |

औद्योगिक क्रान्ति के कारण –

  1. उपनिवेशों की स्थापना – नवीन भौगोलिक खोजों के फलस्वरूप थोड़े समय में ही इंग्लैण्ड, फ्रांस, स्पेन और हालैण्ड आदि यूरोपीय देशों ने संसार के कोने-कोने में अपने उपनिवेश स्थापित कर लिये। साम्राज्यवादी शक्तियों को इन उपनिवेशों से कच्चा माल व सस्ते श्रमिक उपलब्ध हुए। साथ ही आवश्यकता से अधिक उत्पादन को बेचकर लाभ कमाने की मण्डी भी मिल गयी। लाभ कमाने की इस प्रवृत्ति के फलस्वरूप औद्योगिक क्रान्ति को बढ़ावा मिला।
  2. लाभ कमाने की इच्छा – यूरोप के देशों में औद्योगिकीकरण के फलस्वरूप व्यापारिक प्रतिस्पर्द्धा उत्पन्न हो गयी। फलत: सभी औद्योगिक देश अधिक उत्पादन करके अधिक-से-अधिक माल बेचकर अधिक लाभ कमाने का प्रयास करने लगे। इसलिए उन्होंने बड़ी-बड़ी मशीनों की स्थापना की। इससे भी औद्योगिक क्रान्ति को बल मिला।
  3. सस्ती दर पर कच्चे माल की प्राप्ति – औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप यूरोप के देशों में बड़े कारखानों द्वारा बड़े पैमाने के उत्पादन के लिए पहले कच्चा माल उपलब्ध नहीं था, किन्तु उपनिवेशों की स्थापना के बाद इन देशों को अपने उपनिवेशों से सस्ती दर पर कच्चा माल प्राप्त होने लगा। कच्चे माल का उपयोग करने के लिए भी बड़ी मशीनों की आवश्यकता औद्योगिक क्रान्ति को बढ़ावा मिला।
  4. इंग्लैण्ड की अनुकूल नीतियाँ – इंग्लैण्ड की सरकार ने उद्योग व व्यापार को प्रोत्साहित किया तथा उनके विकास के लिए अनुकूल कानून भी बनाये। इंग्लैण्ड यूरोपीय संघर्षो व युद्धों में उतना ही सम्मिलित हुआ, जितना उसके व्यापारिक हितों की पूर्ति के लिए आवश्यक था। 18वीं शताब्दी में जब यूरोप के देश युद्धों में फँसकर अपने जन-धन की हानि कर रहे थे, उस समय इंग्लैण्ड अपने उद्योगों के विकास व विस्तार में लगा हुआ था। इस प्रकार भी औद्योगिक क्रान्ति को बढ़ावा मिला।
  5. कृषि प्रणाली में परिवर्तन – यूरोप के देशों में (विशेषकर इंग्लैण्ड में) कृषि-प्रणाली में पर्याप्त परिवर्तन हो गया था। इस परिवर्तन के कारण कृषि कार्य बड़ी-बड़ी मशीनों से होने लगा था। इससे भी औद्योगिकीकरण का विकास हुआ।
  6. धन की प्रचुरता – कारखानों की स्थापना के लिए पर्याप्त धन की आवश्यकता होती है। इंग्लैण्ड व यूरोप में कृषि क्रान्ति के फलस्वरूप लोगों के पास काफी मात्रा में धन एकत्र था। अतएव बड़े कारखानों की स्थापना हेतु आवश्यक पूँजी के लिए किसी से सहयोग लेने की आवश्यकता नहीं थी। इसलिए यूरोप के पूँजीपतियों ने औद्योगिक क्रान्ति को और सबल बनाया।
  7. बौद्धिक क्रान्ति – पुनर्जागरण, भौगोलिक खोजों तथा धर्म-सुधार-आन्दोलन के कारण बौद्धिक विकास का युग प्रारम्भ हो गया। नवीन आविष्कारों से नये-नये यन्त्र बनाये गये। भाप की शक्ति का पता लग गया। भौतिक विज्ञान व रसायन विज्ञान में भी खोजें की गयीं। इन सबका प्रभाव औद्योगिक क्रान्ति पर पड़ा।
  8. व्यापार में वृद्धि – यूरोप के देशों में व्यापार लगातार बढ़ रहा था। व्यापारी पूर्वी देशों के साथ खूब व्यापार करने लगे। उपनिवेशों में अपना माल भेजने लगे। इससे उन्हें पर्याप्त लाभ होने लगा, अतः अधिक उत्पादन और अधिकाधिक माल बेचने की प्रवृत्ति लाभ कमाने के लिए बढ़ी। इससे औद्योगिक क्रान्ति को बढ़ावा मिला।
  9. यातायात एवं आवागमन की सुविधा – मोटर एवं इंजन के आविष्कार से यातायात में सुविधा हो गयी। कच्चा तथा पक्का माल एक स्थान से दूसरे स्थान को ले जाने की सुगमता से उद्योगों को प्रोत्साहन मिला, जिससे नयी अर्थव्यवस्था का प्रारम्भ हुआ।
  10. लोहे और कोयले की प्राप्ति – मशीनों के निर्माण के लिए लोहे और उन्हें चलाने के लिए कोयले की आवश्यकता पड़ती है। ये दोनों वस्तुएँ इंग्लैण्ड में पास-पास सुलभ थीं जिससे वहाँ के औद्योगिकीकरण में इनका बड़ा योगदान रहा, अतः औद्योगिक क्रान्ति में लोहे और कोयले की उपलब्धता भी महत्त्वपूर्ण कारण रही।
  11. सस्ते मजदूरों की उपलब्धता – कृषि प्रणाली में मजदूर बेकार होकर शहरों की ओर भागे और काम की तलाश में लग गये। विशेषकर इंग्लैण्ड में मजदूर बहुत सस्ते प्राप्त होने लगे, अतः सस्ते मजदूरों की उपलब्धता के कारण उद्योगों की स्थापना के क्षेत्र में बल मिला।

औद्योगिक क्रान्ति के आविष्कार –

  1. फ्लाइंग शटल – 1733 ई० में एक अंग्रेज आविष्कारक ‘जॉन के’ ने फ्लाइंग शटल नामक मशीन का आविष्कार किया। इस मशीन के द्वारा एक व्यक्ति कम समय में अधिक कपड़ा बुन सकता था। इस मशीन से जुलाहे सर्वाधिक लाभान्वित हुए।
  2. स्पिनिंग जैनी – 1764 ई० में जेम्स हरग्रीव्ज ने सूत कातने वाली मशीन (स्पिनिंग जैनी) बनायी। इस मशीन में आठ तकुवे लगे होते थे। इस मशीन से एक व्यक्ति आठ व्यक्तियों के बराबर सूत कातने में सक्षम हो गया।
  3. वाटरफ्रेम – 1769 ई० में रिचर्ड आर्क राइट ने वाटरफ्रेम नामक मशीन बनाने में सफलता प्राप्त की। स्पिनिंग जैनी मशीन द्वारा काता हुआ सूत कच्चा होता था और बुनाई करते समय बार-बार टूट जाता था, किन्तु वाटरफ्रेम में बेलन लगे होते थे और इससे पक्का सूत काता जाता था। यह मशीन पानी की शक्ति से चलती थी, इसलिए इस यन्त्र को वाटरफ्रेम की संज्ञा दी गयी।
  4. म्यूल – 1779 ई० में क्राम्पटन महोदय ने म्यूल (मसलिन ह्वील) नामक मशीन बनायी। यह मशीन बारीक और पक्का धागा तैयार करती थी। इस मशीन के निर्माण से अच्छा तथा महीन कपड़ा बनाने में सुविधा हो गयी।
  5. पावरलूम – 1785 ई० में एडमण्ड कार्टराइट ने भाप की शक्ति से चलने वाली पावरलूम नामक मशीन मशीन से कपड़ा बुनाई के कार्य में पर्याप्त तेजी आ गयी।
  6. रेल इंजन – 1814 ई० में जार्ज स्टीफेन्सन ने रेल इंजन का निर्माण किया।
  7. भाप-शक्ति – न्यू कॉमन (1712 ई०) व जेम्स वाट (1769 ई०) ने भाप-शक्ति का आविष्कार किया।
  8. कॉटन जिन (1793 ई० ) – यह कपास साफ करने वाली मशीन थी। 1793 ई० में एली हिटने नामक वैज्ञानिक ने इस मशीन को बनाया। यह मशीन प्रतिदिन 1000 पौण्ड कपास साफ कर सकती थी।
  9. स्टीमर – 1812 ई० में हेनरी बेल ने एक स्टीमर बनाया।
  10. सिलाई मशीन – 1846 ई० में एलिहास हो ने सिलाई की मशीन का आविष्कार किया।

इसी प्रकार परिवहन के साधन, पक्की सड़क के निर्माण की विधि, विद्युत तार, टेलीफोन आदि के आविष्कार हुए। वास्तव में औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप ये महत्त्वपूर्ण आविष्कार हुए।

औद्योगिक क्रान्ति के लाभ –

यूरोप की औद्योगिक क्रान्ति का लाभ न केवल यूरोप, वरन् सम्पूर्ण विश्व को प्राप्त हुआ। इस क्रान्ति से मनुष्य को चमत्कारिक लाभ हुए। जिन कार्यों को करने में असीमित श्रम और पर्याप्त समय लगता था, अब वे अल्पकाल में मामूली श्रम से ही पूरे हो जाते थे। औद्योगिक क्रान्ति से निम्न लाभ हुए जो इस प्रकार हैं –

  1. नवीन आविष्कारों के फलस्वरूप नवीन तकनीकी का विकास हुआ जिससे उत्पादन क्षमता बढ़ गयी।
  2. यातायात के साधनों का तेजी से विकास हुआ तथा मानव के लिए अब यातायात सरल और सुविधाजनक हो गया।
  3. नागरिक जीवन निरन्तर सुख-सुविधापूर्ण होता चला गया।
  4. कृषि में नवीन उपकरणों के प्रयोग से एक तरफ श्रम की बचत हुई तो दूसरी तरफ खाद्यान्नों का उत्पादन बहुत अधिक बढ़ गया।
  5. औद्योगिक क्रान्ति से अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि हुई। लोगों के लिए विदेशी व्यापार सुविधाजनक हो गया।
  6. औद्योगिक साधनों के लिए विज्ञान के क्षेत्र में निरन्तर खोजें जारी रहीं, जिससे कई नयी प्रौद्योगिकी की खोजें हुई।

इस प्रकार औद्योगिक क्रान्ति सम्पूर्ण संसार के लिए लाभकारी सिद्ध हुई।

औद्योगिक क्रान्ति का प्रभाव –

यूरोपीय महाद्वीप के विभिन्न देशों पर औद्योगिक क्रान्ति का प्रभाव पड़ा। औद्योगिक क्रान्ति ने यूरोप के सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक जीवन को प्रभावित किया।

आर्थिक प्रभाव –

यूरोप के लोगों के जीवन का मुख्य आधार कृषि कार्य था । लोग खेती करके अपना जीवन बिताते थे, किन्तु औद्योगिक क्रान्ति ने कृषि को उन्नति प्रदान की तथा सम्पूर्ण यूरोप औद्योगिक क्षेत्र बन गया। नवीन आविष्कारों के फलस्वरूप बड़े-बड़े कारखाने स्थापित हुए। अब धनी लोग पूँजीपति बनते चले गये और इस प्रकार पूँजीवादी व्यवस्था अथवा पूँजीवाद का जन्म हुआ। औद्योगिक क्रान्ति से निम्न आर्थिक प्रभाव पड़े-

  1. विशाल कारखानों की स्थापना से उत्पादन बड़े पैमाने पर होने लगा।
  2. राष्ट्रीय आय में वृद्धि हुई।
  3. समाज में लोगों के रहन-सहन का दर्जा ऊँचा होने लगा।
  4. आयात तथा संचार के साधनों में वृद्धि हुई।
  5. बड़े-बड़े नगरों की स्थापना हुई।
  6. जनसंख्या में वृद्धि हुई।
  7. बैंकिंग सुविधाओं का विकास हुआ।

सामाजिक प्रभाव –

औद्योगिक क्रान्ति से समाज में वर्ग-भेद का उदय हो गया। पूँजीपति के रूप में एक नया वर्ग अस्तित्व में आया। धीरे-धीरे पूँजीपतियों ने उत्पादन के साधनों पर अपना नियन्त्रण स्थापित कर लिया और अब मजदूर पूर्णतया पूँजीपतियों की दया पर आश्रित हो गये। धनी वर्ग का जीवन विलासी हो गया। वे सुन्दर तथा भव्य महलों में रहने लगे और दूसरी तरफ सर्वहारा वर्ग भूख से तड़पने लगा। परिणामस्वरूप दोनों में असमानता बढ़ी और आपस में तीव्र मतभेद हो गया-

  1. समाज दो वर्गों में विभाजित हो गया-पूँजीपति तथा श्रमिक।
  2. छोटे किसानों का अन्त होने लगा।
  3. पूँजीपति वर्ग का जीवन विलासितापूर्ण होने लगा।
  4. समाज का नैतिक पतन प्रारम्भ हो गया।
  5. बड़े उद्योगों की स्थापना से गृह व्यवसाय प्रणाली समाप्त होने लगी।

साथ ही औद्योगिक क्रान्ति के कारण नगरों की संख्या बढ़ने लगी और जनसंख्या में भी वृद्धि हुई। बढ़ती हुई जनसंख्या और नगरीकरण के कारण मजदूर वर्ग के रहने के लिए आदर्श आवास सुलभ नहीं हो पाये। चारों तरफ गन्दगी और अस्वास्थ्यकारी वातावरण पैदा हो गया। कारखानों में सीलन और गन्दगी का मजदूरों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ा और वे रोगग्रस्त होने लगे। कारखानों में काम करते समय घायल मजदूरों को कोई क्षतिपूर्ति भी नहीं दी जाती थी। समाज की बहुसंख्यक जनता पूँजीपतियों के शोषण का शिकार बन गयी।

राजनीतिक प्रभाव –

पूँजीपतियों ने अपने औद्योगिक हितों की पूर्ति के लिए राजनीति में हस्तक्षेप करना प्रारम्भ कर दिया। वे धन के बल पर संसद् में पहुँचने लगे तथा उन्होंने अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए मजदूरों के हितों की उपेक्षा करनी आरम्भ कर दी। कालान्तर में ‘सर्वहारा’ वर्ग के लोगों ने पूँजीपतियों के अत्याचारों व शोषण के विरुद्ध आवाज बुलन्द की। श्रमिकों ने आन्दोलन प्रारम्भ कर दिये, जिससे विवश होकर सरकार को फैक्ट्री एक्ट बनाने पड़े और मजदूरों को सुविधाएँ भी प्रदान करनी पड़ीं। प्रजातन्त्र यद्यपि इंग्लैण्ड के शासन की नीति थी, फिर भी श्रमिकों के आन्दोलनों के फलस्वरूप यूरोपीय देशों में लोकतन्त्रात्मक व्यवस्था शीघ्रता से स्थापित हो सकी।

इसी प्रकार औद्योगिक क्रान्ति के अन्य बहुत-से प्रभाव पड़े। उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई और आवश्यकता से अधिक वस्तुओं की खपत के लिए नये बाजारों की आवश्यकता ने उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद को जन्म दिया। मजदूर संघों का संगठन होने लगा। कला, साहित्य तथा विज्ञान के क्षेत्र में अनेक आविष्कार हुए। मानव सभ्यता का द्रुत गति से विकास होने लगा।

औद्योगिक क्रान्ति का प्रसार –

सम्पूर्ण संसार में सबसे पहले औद्योगिक क्रान्ति का आरम्भ इंग्लैण्ड से हुआ किन्तु यह औद्योगिक क्रान्ति इंग्लैण्ड तक ही सीमित न रही, वरन् शीघ्र ही सम्पूर्ण यूरोप में फैल गयी।

अमेरिका में औद्योगिक क्रान्ति – अमेरिका के पूँजीपतियों ने शीघ्र ही बड़े-बड़े कारखानों तथा मिलों की स्थापना की। इंग्लैण्ड की तकनीकी सहायता से अमेरिका में बड़े पैमाने पर औद्योगिकीकरण प्रारम्भ हो गया। स्वतन्त्रता के पश्चात् अमेरिका में अभूतपूर्व औद्योगिक विकास हुआ। अमेरिका के वैज्ञानिकों ने अनेक नये आविष्कार किये, जिसके फलस्वरूप औद्योगिकीकरण की दौड़ में अमेरिका काफी आगे निकल गया। अब अमेरिका अपने द्वारा निर्मित विभिन्न प्रकार के उपकरणों का निर्यातक देश बन गया।

फ्रांस में औद्योगिक क्रान्ति – 1830 ई० से 1848 ई० के बीच फ्रांस में द्रुतगति से औद्योगिक विकास हुआ। नेपोलियन बोनापार्ट के बाद फ्रांस में पुनः राजतन्त्र स्थापित हुआ। फ्रांस के राजा लुई फिलिप ने फ्रांस के उद्योगपतियों व उद्योगों को प्रोत्साहित किया। फिलिप के प्रयास से देश में औद्योगिक विकास की गति तेज हुई। रेलों का विस्तार हुआ तथा विदेशों से विभिन्न प्रकार की मशीनों का आयात किया गया। इस प्रकार फ्रांस की गाड़ी उद्योग की पटरी पर तेजी से दौड़ने लगी।

जर्मनी और इटली में औद्योगिक क्रान्ति – जर्मनी की राजनीतिक व्यवस्था छिन्न-भिन्न थी। फलतः वहाँ औद्योगिक विकास विलम्ब से हुआ। बिस्मार्क द्वारा 1870 ई० में जर्मनी के एकीकरण के बाद वहाँ भी औद्योगिक विकास तीव्र गति से हुआ। संसार में छापेखाने के विकास का श्रेय जर्मनी को ही है। कालान्तर में जर्मनी में मशीनों के निर्माण के उद्योग में विशेष प्रगति हुई। इटली में भी उद्योगपतियों व पूँजीपतियों ने नये उद्योगों की स्थापना में विशेष रुचि ली। इटली में यातायात के साधनों के निर्माण से उद्योग विशेष रूप से विकसित हुआ।