सिंधु घाटी या हड़प्पा सभ्यता की खोज 1920-22 ई० में की गई थी, जब इसके डॉ बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थलों, रावी नदी के किनारे बसा हड़प्पा और सिंधु नदी के किनारे बसा मोहनजोदड़ो, की खुदाई की गई थी |
पुरातात्विक खोजों के आधार पर हड़प्पा सभ्यता को 2600 ईसा पूर्व से 1900 ईसा पूर्व के कालखंड के बेच माना गया है और यह विश्व के प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है |
इसे ‘सिंधु घाटी सभ्यता’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि प्रारंभ में इसकी जितनी भी बस्तियों की खोज हुई, वे सभी सिंधु नदी या इसकी सहयोगी नदियों के पास या इसके आसपास के मैदानों में स्थित थी |
सिंधु घाटी सभ्यता भारत की प्रथम नागरिक सभ्यता थी, जो विश्व की अन्य प्राचीन सभ्यताओं, जैसे मैसोपोटामिया और मिस्र की सभ्यताओं के समकालीन हैं |
हड़प्पा कालीन लोगों के जीवन और सभ्यता के संबंध में हमारी जानकारी सिर्फ पुरातात्विक खुदाइयों पर ही आधारित है, क्योंकि उस काल की लिपि को अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है |
हड़प्पा कालीन सभ्यता का विकास अचानक से नहीं हुआ बल्कि इसका विस्तार एवं विकास नवपाषाण युग की ग्रामीण सभ्यता से हुआ |
ऐसा विश्वास किया जाता है कि सिंधु नदी के उपजाऊ मैदानी क्षेत्रों से अधिकतम उपज लेने के लिए बेहतर तकनीकों के उपयोग के परिणामस्वारूप कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई होगी |
जिसके फलस्वरूप गैर कृषि वर्ग आबादी के लोगों और प्रशासकीय वर्ग इत्यादि वर्ग के लोगों के लिए खाद्य पदार्थ उपलब्ध हुए होंगे |
जिससे लोगों को दूर-दराज के प्रदेशों के साथ विनिमय और व्यापारिक सम्बन्ध बढ़ाने में सहायता मिली होगी | जिस कारण हड़प्पा सभ्यता के लोगों में समृद्धि आई होगी और वे शहर बसाने के योग्य बने होंगे |
2000 ईसा पूर्व के आसपास इस उपमहाद्वीप के विभिन्न भागों में अनेक प्रादेशिक सभ्यताओं का विकास हुआ और ये सभी पत्थर और तांबे के औजारों के उपयोग पर ही आधारित थी |
ये ताम्र पाषाणिक सभ्यताएँ, जो हड़प्पा सभ्यता के क्षेत्र से बाहर थी, अधिक समृद्ध और फली-फूली नही थीं | बुनियादी तौर पर ये सभ्यताएं ग्रामीण प्रकृति की थीं |
कालाक्रमानुसार इन सभ्यताओं के उद्भव और विकास का काल 2000 ईसा पूर्व से 700 ईसा पूर्व के आसपास माना गया है |
ये सभ्यताएँ पश्चिमी और मध्य भारत में मिली हैं और इन्हें गैर-हड़प्पा ताम्र पाषणिक सभ्यता के रूप में उल्लिखित किया गया है |
सिंधु घाटी सभ्यता का उद्भव और विकास –
पुरातात्विक अवशेषों से पता चलता हैं की हड़प्पा सभ्यता के लोग पहले छोटे-छोटे गाँवों में रहते थे |
समय बीतने के साथ-साथ छोटे कस्बे बने और कस्बों से हड़प्पा काल के दौरान पूर्ण विकशित शहरों का विकास हुआ |
वास्तव में हड़प्पा काल की सम्पूर्ण अवधि को तीन चरणों में विभाजित किया गया है –
प्रारम्भिक हड़प्पा काल (3500 ई. पू. से 2600 ई. पू.) – इस काल की विशेषता का उल्लेख मिलता है, इसके मिट्टी से बने ढांचों, प्रारंभिक व्यापार, कला और शिल्पों इत्यादि में मिलता है |
परिपक्व हड़प्पा काल (2600 ई. पू. 1900 ई. पू.) – यह वह चरण है, जब हमें भट्ठे में पकी ईंटों से बने ढांचों वाले भली-भांति विकसित शहर, स्वदेशी और विदेशी व्यापार और विविध प्रकार के शिल्प देखने को मिले |
उत्तर हड़प्पा काल (1900 ई. पू. 1400 ई. पू.) – यह पतन का काल था, जिसके दौरान शहर उजड़ने लगे थे और व्यापार समाप्त हो गया था, जिससे धीरे-धीरे शहरीकरण की मुख्य विशिष्टताएँ लुप्त होती गई |
सिंधु घाटी सभ्यता का भौगोलिक विस्तार –
पुरातात्विक खुदाइयों से पता चला है कि यह सभ्यता भारत के विस्तृत क्षेत्र में फैली हुई थी |
जिसमें न सिर्फ भारत के आधुनिक राज्य, जैसे- राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, महाराष्ट्र, पश्चिमी उत्तर प्रदेश सम्मिलित थे, बल्कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान के कुछ भाग भी शामिल थे |
इस सभ्यता के कुछ प्रमुख स्थान – जम्मू और कश्मीर में मांडा, अफगानिस्तान में शाॅरतुलई, पश्चिम पंजाब (पाकिस्तान) में हड़प्पा, सिंध में मोहनजोदड़ो और चन्हुदड़ो, राजस्थान में कालीबंगन, गुजरात में लोथल और धौलावीरा, हरियाणा में बनवाली और राखीगढ़ी, महाराष्ट्र में दाइमाबाद, जबकि मकरान तट (पाकिस्तान-ईरान की सीमा के पास) पर स्थित सुतकागेन्दारे हड़प्पा सभ्यता सुदूर पश्चिमी छोर और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आलमगीर इसकी सुदूर पूर्वी सीमा है |
मोहनजोदड़ो इस सभ्यता का प्रमुख स्थल था और अधिकांश आबादी इसी क्षेत्र में स्थित थी |
इस स्थान पर मिट्टी की किस्म, वातावरण और रहन-सहन की पद्धति के परिप्रेक्ष्य में इस क्षेत्र की कुछ सामान्य विशेषताएँ थीं |
यहाँ पर भूमि समतल थी और सिंचाई और जल आपूर्ति के लिए मानसून और हिमालयी नदियों पर निर्भर थी |
यहाँ की भौगोलिक विशेषताएँ और कृषि पशुपालन सम्बन्धी अर्थव्यवस्था इस क्षेत्र के प्रमुख लक्षण थे |
हड़प्पा की शहरी आबादी के अतिरिक्त अनेक ऐसे स्थल थे, जहाँ पर पाषण युग के शिकारी-संग्रहकर्ता या घुमन्तु चरवाहों वाले प्रागैतिहासिक काल के समुदायों के लोग भी साथ-साथ रहते थे |
इस सभ्यता में कुछ स्थल बंदरगाहों या व्यापारिक स्थलों के रूप में काम में लाए जाते थे |
ध्यान देने योग्य यह बात है कि शहरीकारण को निर्धारित करने के प्रमुख कारक व्यापार, कर प्रणाली और लिपि इत्यादि होते हैं | शहरी सभ्यता कहलाए जाने के लिए हड़प्पा सभ्यता इन सभी मानकों पर खरी उतरती है |
सिंधु घाटी सभ्यता का भौगोलिक विस्तार
नगर योजना –
हड़प्पा सभ्यता की सबसे दिलचस्प विशिष्टता है, यहाँ की नगर योजना |
इसमें अत्यधिक समरूपता देखने में मिलती है, यद्यपि कहीं-कहीं पर इनमें प्रादेशिक रूप से विविधताएँ भी देखने को मिलती हैं |
इनमें नगरों, गलियों, मकानों के ढांचों, ईंटों के आकार और नालियों इत्यादि की योजना में एकरूपता दिखाई देती है |
लगभग सभी मुख्य स्थलों (हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, कालीबंगन और अन्य) को दो भागों में विभाजित किया गया है | जिसमें पश्चिम की ओर एक ऊँचे चबूतरे पर बना किला और आबादी के पूर्वी भाग में बना निचला नगर |
किले में बड़े-बड़े ढांचे बने हुए हैं जो शायद शासकीय या धार्मिक अनुष्ठानों के केन्द्रों के रूप में कार्य करते होंगे |
इन शहरों में सड़कों का ढांचा इस प्रकार बना था कि ये एक-दूसरे मार्ग को समकोण पर कटते हुए निकलते थे |
इनका शहर अनेक रिहायशी खंडों में बंटा होता था जो मुख्य मार्ग की छोटी गलियों द्वारा जोड़ा गया था |
घरों के द्वार मुख्य मार्गों पर न होकर इन संकरी गलियों में खुलते थे |
इन शहरों में अधिकांश मकान भट्ठी में पकी ईंटों से बने थे |
इन शहरों के बड़े घरों में कई कमरे होते थे, जिनमें चौकोर आंगन, अपने निजी कुएं, रसोई घर और स्नानागार के चबूतरे आदि बने होते थे |
घरों के आकार में अंतर से ये सांकेत मिलता है कि धनी लोग बड़े घरों में रहते थे और एक कमरे के घरों में संभवतः समाज के निर्धन वर्ग के लोग रहते होंगे |
हड़प्पा काल के लोगों की जल निकासी व्यवस्था बहुत व्यवस्थित और विकसित थी |
हर घर में नालियां थीं, जो गली की नाली से जाकर मिलती थीं |
ये नालियां ईंटों से बने नरमोखों (मैनहोल्स) पर पत्थर की सिल्लियों से ढकी होती थी (जिन्हें सफाई के लिए हटाया जा सकता था) जिन्हें नियमित अंतराल पर गलियों के किनारे बनाया जाता था |
इससे पता चलता है कि उन लोगों को सफाई विज्ञान की अच्छी जानकारी थी |
मोहनजोदड़ो का ‘विशाल स्नानागार’ –
मोहन जोदड़ो का ‘विशाल स्नानागार’ एक बहुत ही प्रमुख स्थल है |
इसके चारों ओर बरामदे बने हैं और उत्तरी और दक्षिणी, दोनों छोरों पर सीढियां बनी हुई हैं |
स्नानागार के फर्श पर बिटूमन कोयले का पलस्तर किया गया था जिससे पानी का रिसाव न हो |
स्नानागार के चारों तरफ किनारे पर कुछ कमरे बने हुए थे, जो शायद कपड़े बदलने के काम में आते होंगे |
विद्वानों के अनुसार मोहनजोदड़ो का यह विशाल स्नानागार धार्मिक क्रियाओं के लिए स्नान के लिए उपयोग में लाया जाता था |
‘विशाल स्नानागार’ के पश्चिम की ओर अन्य भंडार के लिए एक कोठार स्थित थी | जिसमें अन्न भंडारण के लिए ईंटों से बने कई चौकोर खंड बने थे |
इनमें ईंटों से बने गोल चबूतरों की पंक्तियाँ हैं, जो शायद अन्न की कुटाई के लिए उपयोग में लाए जाते होंगे |
मोहनजोदड़ो का ‘विशाल स्नानागार’
आर्थिक क्रिया कलाप –
1. कृषि –
हड़प्पा सभ्यता की समृद्धि इसकी फली-फूली विकसित आर्थिक गतिविधियों पर आधारित थी, जैसे कृषि, शिल्प और व्यापार|
सिंधु नदी की उपजाऊ कछार भूमि ने यहाँ की अत्यधिक कृषि उपज में अपना अत्यधिक योगदान दिया है |
इससे हड़प्पा के लोगों को आन्तरिक और बाह्य दोनों स्तरों पर उद्योगों को विकसित करने में भी सहायता मिली |
कृषि के साथ-साथ पशु-पालन हड़प्पा सभ्यता की अर्थव्यवस्था का आधार था |
हड़प्पा, मोहनजोदड़ो और लोथल जैसे स्थानों पर मिले कोठार, अन्न भंडारण के काम में लिए जाते थे |
कृषि के कार्यों में प्रयुक्त औजारों के संबंध में हमारे कोई भी स्पष्ट साक्ष्य नहीं हैं, फिर भी कालीबंगन के एक खेत में हल चलाने या जुताई के कुछ चिन्ह देखने को मिले हैं | इससे यह संकेत मिलता है कि इस सभ्यता में हल से खेती होती थी |
अपने खेतों की सिचाई के लिए ये लोग कुओं से पानी निकाल कर और नदियों के पानी का नहरों के जरिये रुख मोड़कर सिंचाई की जाती थी |
इस सभ्यता में मुख्य फसलों में गेहूँ, जौ, तिल, सरसों, मटर, और राई इत्यादि शामिल थी |
लोथल और रंगपुर में मिट्टी के बर्तनों में चावल की भूसी के बचे हुए कणों से वहाँ चावल की बड़ी मात्रा में खेती के साक्ष्य भी मिले हैं |
कपास यहाँ की एक अन्य प्रमुख फसल थी |
अनाजों के अतिरिक्त मछली और पशुओं का मांस भी हड़प्पा के लोगों के आहार का हिस्सा था |
2. उद्योग और शिल्प –
हड़प्पा सभ्यता के लोग लोहे के अतिरिक्त अन्य लगभग सभी प्रकार की धातुओं से परिचित थे |
वे सोने व चाँदी की वस्तुएँ बनाते थे, जिनमें सोने की वस्तुओं में मोती, बाजूबंद, सुइयां और अन्य गहने शामिल थे |
यहाँ से बड़ी मात्रा में चाँदी के गहने, तश्तरियां इत्यादि प्राप्त हुई हैं | जिससे यह पता चलता है कि इस सभ्यता में लोग सोने से ज्यादा चाँदी का प्रयोग करते थे |
इस सभ्यता में तांबे के औजारों और अस्त्र-शस्त्र का प्रयोग करते थे, जिनमें सामान्य औजारों में कुल्हाड़ी, आरी, छैनी, चाकू, भाले की नोकें और तीरों के शीर्ष इत्यादि शामिल हैं |
हड़प्पा सभ्यता के लोगों द्वारा बनाए गए शस्त्र ज्यादातर सुरक्षात्मक प्रकृति के थे, क्योंकि इस सभ्यता से तलवार जैसे शस्त्रों के मिलने के कोई भी प्रमाण नहीं मिले हैं |
इस सभ्यता में ताँबा, राजस्थान में खेतड़ी नामक स्थान से, सोना हिमालयी नदियों की तराई और दक्षिण भारत से और चाँदी मैसोपोटामिया से आती थी |
इस सभ्यता में कांसे का भी उपयोग किया जाता था परन्तु बहुत ही सीमित स्तर पर |
इस संबंध में सबसे प्रसिद्ध नमूना मोहनजोदड़ो से मिली कांसे से बनी नृत्यांगना की मूर्ति है |
यह मूर्ति एक नग्न नारी की है, जिसका एक हाथ नितम्ब पर है और दूसरा नृत्य की मुद्रा में हवा में झूल रहा है |
चन्हुदड़ों और लोथल में मोती बनाने वाली दुकानों के भी साक्ष्य मिले हैं | जिससे यह पता चलता है कि इस सभ्यता के लोगों को बहुमूल्य पत्थरों और रत्नों से मोती (जैसे- गोमेद और काॅर्नेलियन) बनाने की कला का ज्ञान था |
इसके अतिरिक्त हाथी की दांतों की नक्काशी, मोतियों, बाजूबंद और अन्य सजावटी सामानों पर मीनाकारी का कार्य भी प्रचलन में था |
हड़प्पा काल की कलाकृतियों में से एक प्रसिद्ध कलात्मक मूर्ति है, मोहनजोदड़ो में मिली दाढ़ी वाले पुरुष की पत्थर से बनी एक मूर्ति |
इसकी आंखें अधमुंदी हैं जैसे कि ये ध्यान मगन मुद्रा में है और इसके बाएँ कंधे पर कशीदाकारी दुशाला है |
हड़प्पा के अनेक स्थलों से पुरुषों और महिलाओं की बहुत बड़ी संख्या में मिट्टी की मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं |
महिलाओं की मूर्तियों की संख्या पुरुषों की मूर्तियों से अधिक है और ऐसा माना जाता है कि ये मातृदेवी की पूजा के संबंध में प्रत्यक्ष प्रमाण हैं |
इसके अतिरिक्त पकी मिट्टी की बनी बैलगाड़ियाँ, पक्षियों, बंदरों, कुत्तों, भेड़ों, पालतू पशुओं, कूबड़-सहित और कूबड़-रहित बैलों के अनेक प्रकार के मूर्तियों के नमूने प्राप्त हुए हैं |
मिट्टी के बर्तन बनाना भी हड़प्पा काल के लोगों का एक प्रमुख उद्योग था |
ये मुख्य रूप से चाक-पहिये पर बनाए जाते थे और इन पर लाल रंग करने के बाद काले रंग से सजावट की जाती थी |
चित्रकारी के नमूनों में अलग-अलग मोटाई की आड़ी लकीरें, पत्तों के नमूने, पाम और पीपल के पेड़, पक्षी, मछलियाँ और पशु इत्यादि के चित्र भी मिट्टी के बर्तनों पर बनाए गए हैं |
हड़प्पा काल के लोग विभिन्न प्रकार की मुहरें बनाते थे |
विभिन्न स्थानों से लगभग डॉ हजार से भी अधिक मुहरें प्राप्त हुई हैं |
उह मुहरें आमतौर पर चौकोर आकार में थी और सेलखड़ी से बनी थीं |
इन मुहरों पर अनेक पशुओं के चित्र थे और इसके अतिरिक्त उन मुहरों पर हड़प्पा काल की लिपि से कुछ चिन्ह भी बने हुए हैं पंरतु अभी तक इस लिपि को पढ़ा नहीं जा सका है |
सबसे प्रसिद्ध मुहर वह है, जिस पर सींगों वाले एक पुरुष-देव का चित्र बना हुआ है |
3. व्यापार –
हड़प्पा सभ्यता के लोगों की नगरीय अर्थव्यवस्था की एक महत्वपूर्ण विशेषता थी, उनका आंतरिक (देश के अन्दर) और बाह्य (विदेशों में) दोनों तरह का व्यापारिक तंत्र जाल|
नगर की आबादी अपने खाद्यों और अन्य जरूरी चीजों के लिए अपने आसपास के गाँवों पर निर्भर थी |
इसलिए ग्रामीण-नगरों के परस्पर संबंध स्थापित हुए होंगें |
इसी प्रकार शहरों के शिल्पकारों को अपनी चीजों को बेचने के लिए बाजारों की जरुरत थी |
इससे शहरों के बीच परस्पर संबंध स्थापित हुए होंगे |
व्यापरियों ने विदेशी भू-भागों, विशेष रूप से मेसोपोटामिया के साथ व्यापारिक संबंध स्थापित किए, जहाँ इन चीजों की स्त्याधिक मांग थी |
ध्यान देनेबात है कि शिल्पकारों को अपनी चीजें बनाने के लिए अनेक प्रकार की धातुओं और बहुमूल्य रत्नों की जरुरत पड़ती थी, पान्तु स्थानीय रूप से उपलब्ध न होने के कारण इन चीजों को बहार से मंगवाना पड़ता था |
अपने उद्गम स्थल से दूर इस कच्चे माल की दूसरे स्थानों पर उपस्थिति से स्वाभाविक रूप में ये संकेत मिलता है कि ये वस्तुएँ निश्चित तौर पर उन स्थानों पर वस्तुओं के विनिमय की प्रक्रिया के माध्यम से ही वहाँ पहुंची होंगी |
इस प्रकार राजस्थान में तांबे की बहुतायत होने के कारण हड़प्पा के लोग यहाँ खेतड़ी स्थित तांबे की खानों से मुख्यतः ताँबा प्राप्त करते थे |
कर्नाटका में कोलार स्थित सोने की खानों और हिमालयी नदियों के तराई के क्षेत्रों से संभवतः सोने की पूर्ति होती होगी और चाँदी का स्रोत शायद राजस्थान की ज्वार स्थित खाने रही होंगी |
ऐसा विश्वास किया जाता है कि चाँदी संभवतः हड़प्पा की वस्तुओं के विनिमय के बदले में मेसोपोटामिया से भी प्राप्त की जाति थी |
मोती बनाने के लिए प्रयुक्त किए जाने वाले बहुमूल्य रत्न नील वैदूर्य मणि का स्रोत अफगानिस्तान के उत्तर-पूर्व में बदकशान खानों में स्थित था |
फिरोजा और हरिताश्म शायद मध्य एसिया से लाए जाते थे |
गोमेद, स्फटिक और कार्नेलियन की आपूर्ति पश्चिम भारत से होती थी और सीप-शंख इत्यादि गुजरात और इसके आसपास के तटीय क्षेत्रों से आते होंगे |
हड़प्पा के लोग मैसोपोटामिया के साथ विदेश-व्यापार भी करते थे, जो मुख्य रूप से फारस की खाड़ी में स्थित ओमान और बहरीन के जरिये होता था |
हड़प्पा के क्षेत्रों से प्राप्त मोतियों, मुहरों, पांसे की गोटियों जैसी कलाकृतियों इत्यादि की उपस्थिति से इसकी पुष्टि होती है |
यद्यपि उन क्षेत्रो की कलाकृतियाँ हड़प्पा से स्थलों से बहुत ही कम प्राप्त हुई हैं, पंरतु पश्चिमी एशिया या पारसी मूल की एक मुहर लोथल में प्राप्त हुई है, जिससे इस संबंध की पुष्टि होती है |
सूसा, उर और मैसोपोटामिया के नगरों में लगभग दो दर्जन हड़प्पा की मुहरे प्राप्त हुई हैं |
मुहरों के अतिरिक्त हड़प्पा मूल की कलाकृतियाँ भी मिली है, जिनमें मिट्टी के बर्तन, उत्कीर्ण कार्य किए गए कार्नेलियन के मोती और पांसे भी शामिल हैं |
मैसोपोटामिया से मिले शिलालेखों से हमें हड़प्पा के साथ मैसोपोटामिया से संपर्क के संबंध में हमें बहुमूल्य सूचना मिलती है |
इन शिलालेखों से दिलमून, मगन और मेलुलूह से साथ व्यापार के संकेत भी मिलते हैं |
सामाजिक विशिष्टताएँ –
ऐसा लगता हड़प्पा सभ्यता के लोगों का समाज मातृ सत्तात्मक था |
इस मत का आधार, मातृ देवी की लोकप्रियता, पंजाब और सिंध प्रदेशों में बड़ी संख्या में प्राप्त पक्की मिट्टी की बनी मूर्तियाँ हैं |
हड़प्पा के समाज में विविध व्यवसायों से जुड़े लोग शामिल थे, इनमें पुजारी, योद्धा, किसान, व्यापारी, और कारीगर इत्यादि आते थे |
हड़प्पा और लोथल जैसे स्थानों पर मिले मकानों के ढांचो से पता चलता है कि विभिन्न वर्गों के लोगों द्वारा आवास के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार के भवनों का प्रयोग किया जाता था |
वास्तव में यह कहा जा सकता है कि जो लोग बड़े घरों में रहते थे, वे धनी वर्ग से थे और जो छोटे घरों में रहते थे वह मजदूर या निर्धन वर्ग से संबंधित थे |
हड़प्पा काल के लोगों की वेशभूषा का ज्ञान उस काल की पक्की मिट्टी और पत्थर की बनी महिलाओं की मूर्तियों से प्राप्त होता है |
पुरुषों को अधिकतर जिस पहनावे में दर्शाया गया है, उसमें नीचे के आधे भाग में चरों ओर एक धोती सी बंधी है, जिसका एक सिरा बाएं कंधे और दाएं बाजू के नीचे है |
हड़प्पा सभ्यता के लोगों को सजने संवरने का शौक था |
विभिन्न स्थानों से प्राप्त पुरुषों और महिलाओं की मूर्तियों से बाल संवारने के प्रमाण मिलते हैं |
धार्मिक विश्वास एवं रीतियाँ –
हड़प्पा सभ्यता के लोगों के धर्म को आम तौर पर जीवोपासक यानी पेड़ व पत्थरों के उपासक के रूप में जाना गया है |
हड़प्पा के विभिन्न स्थलों पर मिली पकी मिट्टी की असंख्य मूर्तियों को मातृदेवी की उपासना के साथ जोड़कर देखा जाता है |
इनमें से अधिकांश मूर्तियों में महिलाओं ने चौड़ी-सी करधनी, बाघ की खल का कपड़ा और गले में हार फन रखा है |
कुछ मूर्तियों में महिला को गोद में एक शिशु लिए दर्शाया गया है तो एक मूर्ति में एक महिला के गर्भ से एक पौधा उगता हुआ दर्शाया गया है |
दूसरी मूर्ति शायद भू-देवी की प्रतीक है |
एक मुहर पर बनी एक आकृति से, जिसमें एक पुरुष के सिर पर भैंसे के सींग वाला मुकुट है, जौ यौगिक मुद्रा में बैठा है, से हड़प्पावासियों का पुरुष देवता में आस्था का साक्ष्य मिलता है |
एक अन्य मुहर में एक सींगों वाले देवता की आकृति है, जिसके बाल हवा में उड़ते हुए हैं और वह नग्न है और पीपल के पेड़ की शाखाओं के बीच खड़ा है, एक उपासक घुटनों के बल उसके समक्ष बैठा है |
इससे हड़प्पावासियों के द्वारा की जाने वाली पेड़ों की उपासना का पता चलता है |
इसके अतिरिक्त हड़प्पा वासी पशुओं की उपसना भी करते थे |
दफन के रीति-रिवाज और इनसे संबंधित धार्मिक कर्मकांड किसी भी सभ्यता के धर्म का बहुत ही महत्त्वपूर्ण पहलु होते हैं |
इस सभ्यता में मृत शवों को प्रायः उत्तर-दक्षिण दिशा में लिटाया जाता था, जिसमें सिर उत्तर की ओर और पांव दक्षिण की ओर होते थे |
मृतकों को अलग-अलग संख्या में, उनके साथ मिट्टी के बर्तन रखकर दफनाया जाता था |
कुछ कब्रों में शवों के साथ चूड़ियाँ, मोती, तांबे के दर्पण इत्यादि जैसी वस्तुएँ रखकर दफनाया जाता है |
हड़प्पा सभ्यता की लिपि –
हड़प्पा सभ्यता के लोग शिक्षित थे |
हड़प्पा की मुद्राओं पर अनेक प्रकार की चिन्ह या आकृतियाँ बनी हुई हैं |
हाल ही में किये गए हड़प्पा सभ्यता की लिपि के अध्ययन से यह संकेत मिले हैं कि इस सभ्यता की लिपि में लगभग 400 चिन्ह हैं और इस लिपि को दाईं से बाईं ओर लिखा जाता है |
परन्तु अभी तक इस लिपि को आज तक पढ़ा नहीं जा सका है |
ऐसा माना जाता है कि की इस सभ्यता के लोग प्रायः अपने भावों को सीधे व्यक्त करने के लिए किसी भावचित्र या चित्राकृति चिन्ह या अक्षरों का प्रयोग करते थे |
हड़प्पा सभ्यता का पतन –
हड़प्पा सभ्यता 1900 ई.पू. तक फलती-फूलती रही |
इस सभ्यता के बाद की अवधि को नगरी सभ्यता के बाद के चरण के रूप में जाना जाता है |
इस काल में नगर-योजना, लेखन कला, माप-तोलों में एकरूपता, मिट्टी के बर्तनों में समानता इत्यादि जैसे मुख्य लक्षण धीरे-धीरे लुप्त होने लगे थे |
हड़प्पा सभ्यता के पतन के संबंध में विद्वानों के अनेक मत हैं जिनमें से कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैं –
कुछ विद्वानों का मानना है कि बाढ़ और भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाएँ इस सभ्यता के पतन का कारण बनी | ऐसा विश्चास किया जाता है कि भूकंप के परिणामस्वरूप सिंधु नदी के निचले मैदानी, बाढ़ वाले क्षेत्रों का स्तर ऊंचा उठ गया होगा | जिसके कारण समुद्र की तरफ जाने को नदी के तल मार्ग में रुकावट आ गई होगी, जिससे मोहनजोदड़ो नगर डूब गया होगा |
कुछ विद्वानों के अनुसार घग्गर-हाकरा नदी के मार्ग में परिवर्तन आने के कारण शुष्क बंजर धरती बढ़ती गई होगी, जिसकी वजह से इस सभ्यता का पतन हुआ होगा |
पतन के कारणों में, आर्यों के आक्रमण के सिद्धांत का भी उल्लेख मिलता है, लेकिन आंकड़ों के आलोचनात्मक व गंभीर विश्लेषण के आधार पर अब इस मत को पूरी तरह नकार दिया गया है |
इस प्रकार कोई भी एक अकेला ऐसा कारण नहीं है, जिससे सम्पूर्ण सभ्यता के विनाश का पता लग सके | ज्यादा से ज्यादा इनसे सिर्फ कुछ विशिष्ट स्थलों या क्षेत्रों के नष्ट होने के संबंध में ही पता चलता है | अतः प्रत्येक सिद्धांत की आलोचना हुई | फिर भी, पुरातात्विक साक्ष्यों के संकेतों के आधार पर यह पता चलता है कि हड़प्पा सभ्यता का पतन अचानक नहीं हुआ, बल्कि धीरे-धीरे हुआ और अंत में ये सभ्यता अन्य सभ्यताओं में घुलती-मिलती चली गई |