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भारतीय भूगोल [UPSC Notes]

by mayank
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भारतीय भूगोल [UPSC Notes]
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भारतीय भूगोल –

भारत संसार के सबसे बड़े महाद्वीप एशिया के दक्षिण में स्थित है | इसके पूरब और पश्चिम में क्रमशः इंडोनेशिया, तथा अरब प्रायद्वीप पड़ते हैं, जिससे दक्षिणी भारत की स्थिति एशिया महाद्वीप में केन्द्रीय है | भारत के उत्तर में हिमालय एक रक्षक के रूप में खड़ा है | भारत के दक्षिण में हिन्द महासागर और इसके पूर्व में बंगाल की खाड़ी और पश्चिम में अरब सागर स्थित है |

भारत की स्थल-सीमा पश्चिमोत्तर में पाकिस्तान, अफगानिस्तान, उत्तर में चीन, नेपाल, और भूटान तथा उत्तर-पूर्वी सीमा पर म्यामांर (बर्मा) तथा बांग्लादेश स्थित है और भारत के दक्षिण में श्रीलंका स्थित है |

भारत की भौगोलिक स्थिति एवं आकार –

  • भारत का क्षेत्रफल 3287263 वर्ग किमी. है, जो विश्व का लगभग 2.4% है |
  • भारत 84′ उत्तरी अक्षांश से 376′ उत्तरी अक्षांश के मध्य है एवं भारत का देशान्तरीय विस्तार 687′ पूरब से 9725′ पूर्वी देशान्तर के मध्य है |
  • 8230′ पूर्वी देशान्तर रेखा भारत के मध्य से होकर गुजरती है और इसी रेखा से भारत का मानक समय निर्धारित किया जाता है |
  • कर्क रेखा (23°30′ उत्तर), जो भारत को लगभग दो बराबर भागों में विभाजित करती है, आठ राज्यों – गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और मिजोरम से होकर गुजरती है।
  • भारत की उत्तर-दक्षिण में लम्बाई 3214 किलोमीटर है |
  • भारत की पूरब-पश्चिम में लम्बाई 2933 किलोमीटर है |
  • भारत का क्षेत्रफल 3287263 वर्ग किमी. है, जो विश्व का लगभग 2.4% है |
  • भारत 84′ उत्तरी अक्षांश से 376′ उत्तरी अक्षांश के मध्य है एवं भारत का देशान्तरीय विस्तार 687′ पूरब से 9725′ पूर्वी देशान्तर के मध्य है |
  • 8230′ पूर्वी देशान्तर रेखा भारत के मध्य से होकर गुजरती है और इसी रेखा से भारत का मानक समय निर्धारित किया जाता है |
  • कर्क रेखा (23°30′ उत्तर), जो भारत को लगभग दो बराबर भागों में विभाजित करती है, आठ राज्यों – गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और मिजोरम से होकर गुजरती है।
  • भारत की उत्तर-दक्षिण में लम्बाई 3214 किलोमीटर है |
  • भारत की पूरब-पश्चिम में लम्बाई 2933 किलोमीटर है |

भारत के भौतिक भाग –

भारत विभिन्नताओं का देश है | धरातलीय भिन्नता के कारण यहाँ पर 43% भाग मैदानी व 29.3% पर्वतीय और 27.7% भाग पठारी है | भारत में भू-आकृतिक संरचना सभी जगह एक समान नहीं है | इन्ही भौतिक विभिन्नताओं के कारण भारत के भौतिक भू-भाग को निम्न भागों में विभाजित किया गया है –

  1. हिमालय का पर्वतीय प्रदेश
  2. उत्तर का विशाल मैदान
  3. दक्षिण का पठारी भाग
  4. समुद्र तटीय मैदान
  5. थार का मरुस्थल

1. हिमालय का पर्वतीय प्रदेश –

  • हिमालय का पर्वतीय प्रदेश धनुषाकार आकृति में भारत के उत्तर-पश्चिम तथा उत्तर-पूर्व दिशा में स्थित है जिसे हिमालय कहते हैं |
  • इसकी श्रेणियाँ पश्चिम से पूर्व की ओर 2414 किमी लम्भी हैं जो तलवार के आकार में फैली हैं |
  • इसकी चौड़ाई 240 किमी से 380 किमी तक फैली है |
  • हिमालय पर्वत की स्थिति बंगाल एवं उत्तर प्रदेश की सीमा पर खड़े ढाल के रूप में है |
  • संसार की सबसे ऊँची चोटी ‘माउन्ट एवरेस्ट’ इसी पर्वत श्रेणी पर स्थित है, जो मैदानी भाग से स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ती है |
  • हिमालय कोई एक विशेष पर्वतमाला नहीं है बल्कि यह तीन समानान्तर पर्वतमालाओं का नाम है |
  • इन्ही श्रेणियों के आधार पर हिमालय को निम्न तीन भागों में बाँटा गया है-
    1. महान हिमालय
    2. मध्य हिमालय
    3. शिवालिक श्रेणी
1. महान हिमालय –
  • यह हिमालय की सबसे ऊँची पर्वत शृंखला है, जो पश्चिम से पूर्व तक फैली हुई है |
  • इसकी औसत ऊंचाई लगभग 6000 मीटर है |
  • संसार की सबसे ऊँची चोटी माउन्ट एवरेस्ट इसी पर्वत शृंखला का भाग है जिसकी ऊंचाई 8848 मीटर है |
  • इस पर्वत शृंखला की अन्य महत्वपूर्ण चोटियाँ – गाडविन आस्टिन, कंचनजंघा, धौलागिरि, नंगा पर्वत, नंदादेवी, गौरीशंकर और गंगोत्री हैं |
  • कंचनजंघा पर्वत चोटी सिक्किम में स्थित है जिसकी ऊंचाई 8598 मीटर है |
  • पश्चिम में कराकोरम पर्वत पर सियाचिन ग्लेशियर व कारगिल हैं, जो भारत और पाकिस्तान के मध्य सबसे बड़ा विवादित मुद्दा है |
  • कराकोरम एक उच्च पर्वत श्रेणी है जिसमें संसार की दूसरी तथा भारत की सबसे ऊँची पर्वत चोटी गाडविन आस्टिन है जिसे K-2 के नाम भी जाना जाता है |
  • इसकी समुद्रतल से ऊंचाई 8611 मीटर है |
  • उत्तर भारत में बहने वाली सतत वाहिनी नदियाँ इन्हीं पर्वत मालाओं से निकलती हैं |
  • इनमें गंगा, जमुना, ब्रह्मपुत्र और सतलज मुख्य नदियाँ हैं |
  • कराकोरम पर्वतमाला में दो प्रमुख दर्रे शिपकी लाॅ और जोजिला स्थित है जिनकी सहायता से चीन में प्रवेश किया जा सकता है |
2. मध्य हिमालय –
  • यह पर्वत शृंखला महान हिमालय के दक्षिण में उसके समानान्तर फैली हुई है |
  • इस पर्वत शृंखला की औसतन ऊंचाई 3650 मीटर से 5000 मीटर के मध्य है तथा चौड़ाई 80 किमी से लेकर 100 किमी तक है |
  • यह पर्वत श्रेणी अधिक चौड़ी है |
  • इस भाग में नदियाँ ‘V’ आकार की घाटियों में बहती हैं |
  • भारत की प्रसिद्ध कश्मीर घाटी इसी भाग में स्थित है |
  • भारत के प्रसिद्ध नगर जैसे- शिमला, मसूरी, नैनीताल, प्रसिद्ध तीर्थ केदारनाथ, बद्रीनाथ आदि इसी भाग में आते है |
  • इन भागों में ऊँचे चीड़ और देवदार के वृक्ष अधिक संख्या में पाये जाते हैं |
  • इस भाग में घास के मैदानों को कश्मीर में मर्ग, उत्तरांचल में बुग्याज एवं पयार के नाम से जाना जाता है |
3. शिवालिक श्रेणी –
  • इस पर्वतमाला की प्रधान श्रेणी शिवालिक की पहाड़ियाँ हैं, जो 900 से 1300 मीटर तक ऊँची हैं |
  • यह पर्वत शृंखला मैदान से धीरे-धीरे उठकर चौरस रूप में लघु हिमालय के चरणों तक विस्तृत है, जहाँ दून के मैदान पाये जाते हैं |
  • इन पहाड़ियों की चौड़ाई सब जगह एक-सी नहीं है और प्रत्येक 15 किमी से 50 किमी के मध्य में बदलती रहती है |
  • शिवालिक की पहाड़ियों के नीचे भावर का क्षेत्र पहाड़ी के समानान्तर फैला हुआ है | भावर का मतलब उस क्षेत्र से है जहाँ नदियों का पानी कंकड़, पत्थर के नीचे से होकर बहता है |
  • इन क्षेत्रों के बाद तराई भाग आता है, जहाँ पर भावर का जल पुनः दिखने लगता है |
  • इन क्षेत्रों में घने वन मिलते हैं |

2. उत्तर का विशाल मैदान –

  • भारत में हिमालय के दक्षिण में उत्तर का विशाल मैदान फैला हुआ है |
  • तराई के दक्षिण से, दक्षिण पठार के उत्तर तक और पाकिस्तान की सीमा से गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी के डेल्टा तक इस मैदान का विस्तार है |
  • यह मैदान संसार का सबसे बड़ा मैदान है, जिसकी ऊँचाई लगभग 200 मीटर है |
  • इस मैदान की लम्बाई 2400 किमी तथा चौड़ाई 240 किमी से 320 किमी के मध्य है |
  • इसका विस्तार भारत के लगभग में से 1/4 भाग में है |
  • इस मैदान से सतलज, रावी, व्यास, चिनाब, झेलम, यमुना, गंगा, घाघरा, गोमती, गंडक, कोसी, ब्रह्मपुत्र आदि नदियाँ प्रवाहित होती हैं |
  • इस मैदान का निर्माण इन्हीं दादियों द्वारा संचित मिट्टी से हुआ है |
  • उत्तर के इस विशाल मैदान को निम्न पांच भागों में विभाजित किया गया है –
    1. गंगा का उपरी मैदान
    2. गंगा का मध्यवर्ती मैदान
    3. गंगा का निचला मैदान
    4. सतलज का मैदान
    5. ब्रह्मपुत्र का मैदान
1. गंगा का उपरी मैदान –
  • यह मैदान क्षेत्र पश्चिम में यमुना से लेकर पूर्व में गंगा-यमुना के संगम स्थल इलाहाबाद तक विस्तृत है |
  • यह दिल्ली से उत्तर प्रदेश राज्य के इलाहाबाद तक फैला है |
  • इन क्षेत्रों में नदियाँ उपजाऊ मैदान का निर्माण करती हैं |
  • इसको गंगा-यमुना का दोआब कहते हैं |
2. गंगा का मध्यवर्ती मैदान –
  • यह क्षेत्र इलाहाबाद से लेकर पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा बिहार थ विस्तृत है |
  • इस क्षेत्र के अंर्तगत घाघरा, गंडक, कोसी,सोन बड़ियाँ आती हैं |
  • इन के क्षेत्रों में औसतन 150 सेमी तक वर्षा होती है |
  • इन क्षेत्रों में कभी-कभी इतनी वर्षा होती है जिससे बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाति है और कभी भयंकर सूखा भी पड़ जाता है |
3. गंगा का निचला मैदान –
  • यह क्षेत्र पश्चिमी बंगाल में स्थित है |
  • इस मैदान का पूर्वी भाग बंगाल तक फैला है |
  • इस मैदान का ढाल उत्तर से दक्षिण को है |
  • इस मैदान के दक्षिण में गंगा विस्तृत डेल्टा का निर्माण करती है जिससे यह मैदान अत्यंत उपजाऊ है |
  • यहाँ पर चावल व जूट की खेती बड़े पैमाने पर होती है |
4. सतलज का मैदान –
  • यह क्षेत्र सतलज और यमुना नदी कर ब्र्र्च में फैला है |
  • हरियाणा और पंजाब राज्य इसी मैदान के अन्दर आते हैं |
  • इस क्षेत्र के भाग की मिट्टी अत्यन्त उपजाऊ है जहाँ गेहूँ की खेती होती है |
  • इस मैदान का दक्षिणी भाग रेतीला व कम उपजाऊ है |
5. ब्रह्मपुत्र का मैदान –
  • इस क्षेत्र का विस्तार असम राज्य में है |
  • उत्तरी व दक्षिणी भाग पहाड़ी भागों से घिरे होने तथा बाढ़ से बनी दलदली भूमि के कारण इस क्षेत्र के थोड़े से ही भाग पर खेती होती है |
  • यहाँ पर वर्षा की मात्रा 200 सेमी है |
  • यहाँ पर मुख्य रूप से चावल, चाय और जूट की खेती की जाति है |

3. दक्षिण का पठारी भाग –

  • भू-रचना की दृष्टि से पठारी भाग का निर्माण सबसे पहले हुआ था |
  • यहाँ की शैलें गोण्डवानालैण्ड की शैलों से सम्बन्धित है |
  • दक्षिण के पठार की शैलें प्राचीन और कठोर हैं |
  • इसका आकार त्रिभुजाकार है |
  • इसका शीर्ष नीलगिरि के दक्षिण तथा आधार विध्यांचल पर्वत में है जो मालवा से लेकर बिहार की सीमा तक फैला है |
  • इन पठारी भागों में जगह-जगह ऊँची-नीची पहाड़ियाँ मिलती हैं जिनकी समुद्र तल से ऊँचाई लगभग 600 मीटर है |
  • दक्षिण का पठारी भाग खनिज की दृष्टि से सम्पन्न है | यहाँ पर मुख्य रूप से कोयला, मैंगनीज, लोहा, सोना, अभ्रक और चूना पाया जाता है |
  • नर्मदा इस पठारी क्षेत्र की मुख्य नदी है जो इस क्षेत्र को निम्न दो भागों में विभाजित करती है –
    1. छोटा नागपुर व मालवा का पठार
    2. दक्षिण का मुख्य पठार
1. छोटा नागपुर व मालवा का पठार –
  • नर्मदा नदी से उत्तर की ओर मालवा का पठार तथा उत्तर-पूर्व का भाग छोटा नागपुर का पठार कहलाता है |
  • इसके अन्तर्गत विन्ध्यांचल, अरावली और पारसनाथ की पहाड़ियाँ शामिल हैं |
  • इस पठारी भाग का ढाल उत्तर-पूर्व की तरफ है | इसलिए विन्ध्याचल से निकलने वाली चम्बल, बेतवा व फेन नदियाँ उत्तर-पूर्व की दिशा में बहती हुई यमुना नदी में मिल जाती हैं |
  • इस पठारी भाग पर कोयले व लोहे की खानें मिलती हैं |
2. दक्षिण का मुख्य पठार –
  • यह पठार नर्मदा के दक्षिण भाग में त्रिभुजाकार में फैला है |
  • इसके पश्चिमी भाग में पश्चिमी घाट और पर्व में पूर्वी घाट पर्वत स्थित है | ये दोनों भुजाएँ नीलगिरि पर्वत पर आपस में मिलती हैं |
  • दक्षिण के पठार की सभी नदियाँ पश्चिम से पूरब की ओर बहती हैं परन्तु नर्मदा और ताप्ती नदियाँ पूर्व से पश्चिम की ओर बहती हैं क्योंकि ये नदियाँ विभ्रंश घाटी से होकर बहती हैं और अरब सागर में जाकर गिर जाति हैं |
  • दक्षिण के पठारी प्रदेश का उत्तरी भाग लावा की काली मिट्टी से बना है जो कपास की खेती के लिए उपयुक्त है |

4. समुद्र-तटीय मैदान –

प्रायद्वीपीय भारत के किनारे-किनारे पश्चिम में कच्छ के रण से लेकर पूर्व में सुंदरवन के डेल्टा तक एक संकरे तटीय मैदान का विस्तार पाया जाता है | इसका निर्माण नदियों और नहरों द्वारा एकत्र किये गये जलोढ़ अवसादों से हुआ है | इस मैदान को निम्न डॉ भागों में बाँटा जा सकता है –

  1. पश्चिम तटीय मैदान
  2. पूर्वी तटीय मैदान
1. पश्चिमी तटीय मैदान –
  • यह मैदानी क्षेत्र पश्चिमी घाट तथा अरब सागर के मध्य खम्भात की खाड़ी से लेकर दक्षिण में कुमारी अन्तरीप तक फैला है |
  • इसकी चौड़ाई 65 किमी से 50 किमी के मध्य है |
  • इस मैदानों से होकर अनेक तीव्रगामी नदियाँ पूर्व से पश्चिम दिशा में बहती हैं |
  • यह मैदानी भाग अत्यन्त उपजाऊ है और यहाँ पर चावल, जूट, नारियल, गन्ना, रबड़, तम्बाकू आदि फसलें उत्पन्न की जाती हैं |
  • तीव्रगामी नदियों के कारण यहाँ जल विद्युत् का पर्याप्त विकास हुआ है |
  • इस मैदान का उत्तरी भाग गुजरात का मैदान , मध्य भाग कोंकण तट तथा दक्षिणी भाग मालाबार तट कहा जाता है |
2. पूर्वी तटीय मैदान –
  • यह मैदान पूर्वीघाट तथा बंगाल की खाड़ी के मध्य गंगा के मुहाने से लेकर दक्षिण में कुमारी अन्तरीप तक फैला है |
  • इस मैदान की चौड़ाई कहीं पर 450 किमी है तो कहीं पर 750 किमी है |
  • इस मैदान के उत्तरी भाग को उत्कल तट, मध्य भाग को आन्ध्र तट तथा तमिलनाडु के तटीय भाग को कारोमण्डल तट कहते हैं |
  • बनावट के आधार पर इस मैदान को पुनः दो भागों में विभाजित किया गया है –
    1. निम्न तटीय मैदान –
      • इसके अंतर्गत महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी आदि नदियों के डेल्टाई भाग आते हैं |
      • इस भाग में बारीक कॉप मिट्टी पाई जाती है |
      • इस समुद्र तटीय भाग में बालू के टीलों का विस्तार क्रम से है |
      • इन टीलों से पीछे जल एकत्र हो जाने से चिल्का एवं कालीकट जैसे लैगून झीलों का निर्माण हो गया है |
    2. उच्च तटीय मैदान –
      • निम्न मैदान के पश्चिम में नदियों की ऊपरी घाटी द्वारा निर्मित उच्चतटीय मैदान का विस्तार |
      • इन मैदानों में जलोढ़ मिट्टी के बीच कहीं-कहीं पर चट्टानें भी मिलती हैं |
      • यहाँ पर चावल, रबड़, नारियल, तम्बाकू तथा मसलों की खेती की जाती है |

5. थार का मरुस्थल –

  • भारत की उत्तर-पश्चिम में स्थित थर का मरुस्थल पाकिस्तान की सीमा पर स्थित है |
  • इस प्रदेश का विस्तार पश्चिमी राजस्थान, हरियाणा, पंजाब व उत्तरी गुजरात राज्यों में है |
  • इसकी लम्बाई 644 किमी और चौड़ाई 161 किमी है |
  • शुष्क जलवायु और अनुपजाऊ मिट्टी के कारण इस क्षेत्र का आर्थिक विकास नहीं हुआ है |
  • यहाँ पर बहनेवाली नदी लूनी मौसमी नदी है |
  • यहाँ पर खारे जल की कई झीलें पायी जाति हैं | जैसे – सांभर, कुचामन और डीडवाना | इन झीलों से नमक बनाया जाता है |

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