वाकाटक राजवंश वाकाटक राजवंश भारत पर राज्य करने वाला एक स्थानीय शक्ति राजवंश था | वाकाटक प्रायः सातवाहनों के बाद भारत में आये | इन्होने भारत के दक्कन पर ढाई शताब्दियों से भी अधिक समय तक राज्य किया | पुराणों में वाकाटकों का विन्ध्यक के नाम से उल्लेख मिलता है, जो कि उत्तर भारत के गुप्तों के समकालिक थे | वाकाटक राजवंश के ब्राह्मण विष्णुवृद्ध गोत्र से सम्बंधित थे | जिन्होंने बहुत से यज्ञ अनुष्ठान भी किये थे| वाकाटकों द्वारा तात्कालिक ब्राह्मणों को एक बड़ी संख्या में भूमि-अनुदान पत्र जारी…
Category: प्राचीन भारतीय इतिहास
ऋग्वैदिक संस्कृति क्या है? एवं इसके विविध पहलू क्या हैं?
ऋग्वैदिक संस्कृति के विविध पहलू क्या थे ? ऋग्वैदिक संस्कृति क्या है? इसका पता हमें ऋग्वैदिक संस्कृति के विविध के पहलुओं से पता चलता है|जिसके अंतर्गत उनका राजनीतिक जीवन, आर्थिक स्थिति, शासन एवं प्रशासन व्यवस्था, धर्म आदि आते हैं| जिनका विस्तृत विवरण निम्नवत है- ऋग्वैदिक आर्यों का राजनीतिक जीवन प्रारंभिक ऋग्वैदिक समाज एक चरवाहा अर्थव्यवस्था वाला अर्ध-खानाबदोश आदिवासी समाज था। जनजाति को जन कहा जाता था और आदिवासी प्रमुख को राजन, गोपति या गोपा (गायों का रक्षक) कहा जाता था और मुख्य रानी को महिषी कहा जाता था। राजन की मुख्य जिम्मेदारी जनों की…
संहिता क्या है एवं इसके कितने प्रकार?
संहिता क्या है? संहिता हिन्दू धर्म के सबसे पवित्र एव प्राचीन ग्रंथों का संकलन है|इसमें मंत्रों को एक संकलन के रूप में संग्रहित किया गया है|ये वैदिक साहित्य का पहला हिस्सा है जिसमें काव्य रूप में देवताओं की स्तुति के लिए मंत्रों का वर्णन किया गया है|इनकी भाषा संस्कृत है|चार वेद होने के कारण चार प्रकार की संहिताएँ है और प्रत्येक संहिता की अपनी अलग-अलग शाखा है|इस प्रकार वैदिक संहिता को चार निम्नलिखित भागों में विभजित किया गया है- इनका विभाजन वैदिक यज्ञों में में कार्य करने वाले चार ऋत्विजों…
ब्राह्मण ग्रन्थ क्या हैं एवं यह कितने प्रकार के हैं?
ब्राह्मण ग्रन्थ क्या हैं? मूल संहिता के भाष्यों के रूप में लिखे गये ग्रन्थों को ब्राह्मण ग्रन्थ कहते हैं। ये ग्रन्थ प्रायः गद्यात्मक हैं। “ब्रह्म” शब्द के “ मन्त्र” और “यज्ञ” दो प्रमुख अर्थ हैं। मन्त्रों और यज्ञों तथा इन दोनों की व्याख्या होने के कारण “ब्रह्म” शब्द से ” ब्राह्मण” शब्द निष्पन्न हुआ है। ब्राह्मण ग्रन्थों का प्रतिपाद्य विषय ब्राह्मण ग्रन्थों का प्रमुख प्रतिपाद्य विषय यज्ञ का विधि-विधान है। विषय की दृष्टि से ब्राह्मण ग्रन्थों के दो प्रमुख भाग हैं “ – विधि,” और अर्थवाद” । विधि- यज्ञ का…
वेद क्या हैं? परिचय, महत्त्व एवं प्रकार
वेद क्या हैं? वेद क्या हैं? इसका अर्थ वेद शब्द जो “ विद्” धातु से निष्पन्न है, से मिलता है| जिसका अर्थ है ज्ञान, विचार, सत्ता एवं लाभ। “ज्ञान” का ही दूसरा नाम वेद है। यह वह ज्ञान है जो ब्रह्माण्ड के विषय में सभी विचारों का स्रोत है, जो सदा अस्तित्व में रहता है और जो सभी कालों में मनुष्य को उपयोगी वस्तुओं की प्राप्ति और उसके उपयोग के उपाय बताता है। मनुष्य के जीवन को शुभ संस्कारों द्वारा सुसंस्कृत करने के लिए ऋषियों द्वारा अनुभूत ज्ञान वेदों में…
वेदांग क्या हैं एवं इसके प्रकार क्या हैं?
वेदांग क्या हैं एवं इनका विभाजन कालक्रम से वैदिक संस्कृत के स्थान पर लौकिक संस्कृत का प्रचलन होने पर, वैदिक मन्त्रों का उच्चारण करना तथा अर्थ समझना कठिन हो गया। यास्क ने कहा है कि वैदिक अर्थों को समझने में कठिनाई का अनुभव करने वाले लोगों ने निरुक्त तथा अन्य वेदांग की रचना की। वेदों के छ: अंग माने गए – इन्हें समझने वाला व्यक्ति ही वेदों का सही उच्चारण, अर्थबोध एवं यज्ञ कार्य कर सकता था। इन सभी शास्त्रों के ग्रन्थ लौकिक संस्कृत में लिखे गए, क्योंकि इनके विकास…
ऋग्वैदिक कालीन प्रमुख नदियाँ एवं उनके आधुनिक नाम
ऋग्वैदिक कालीन प्रमुख नदियाँ एवं उनके आधुनिक नाम क्रुमु (कुरुम),गोमती (गोमल), कुभा (काबुल) और सुवास्तु (स्वात) नामक नदियां पश्चिम किनारे में सिन्धु की सहायक नदी थीं। पूर्वी किनारे पर सिन्धु की सहायक नदियों में वितास्ता (झेलम) आस्किनी (चेनाब), परुष्णी (रावी), शतुद्र (सतलज), विपासा (व्यास) ऋग्वैदिक कालीन प्रमुख नदियाँ थी। प्रमुख नदियाँ एवं उनके प्राचीन नाम नदियाँ एवं उनके आधुनिक नाम क्रुमु कुर्रम कुम्भा काबुल वितस्ता झेलम अस्किनी चिनाब पुरूष्णी रावी शातुद्रि सतलज विपाशा व्यास सदानीरा गंडक दृशद्वती घग्घर गोमती गोमल सुवस्तु स्वात् सिन्धु सिन्ध ऋग्वैदिक कालीन प्रमुख नदियाँ एवं उनके…
सिन्धु घाटी सभ्यता के महत्त्वपूर्ण उत्खनन स्थल एवं उनकी तटीय स्थिति
नदी/ सागर तट खुदाई वर्ष जगह का नाम उत्खननकर्ता रावी नदी 1921 ई० हड़प्पा (मान्टगुमरी, पंजाब पाकिस्तान) दयाराम साहनी सिन्धु नदी 1922 ई० मोहनजोदड़ो (सिंध, पाकिस्तान) राखालदास बनर्जी सिन्धु नदी 1929 ई० आमरी एन० जी० मजूमदार सिन्धु नदी 1931 ई० चन्हूदड़ो (सिन्ध, पाकिस्तान) एन० जी० मजूमदार दाश्क नदी 1927 ई० सुताकांगेडोर (बलूचिस्तान-पाकिस्तान) सर ओरेल स्टीन हिंडन नदी 1952-55 ई० आलमगीरपुर (मेरठ-उत्तर प्रदेश) यज्ञदत्त शर्मा सतलज नदी 1950-55 ई० रोपड़ (पंजाब- मादर नदी तट) बी० बी० लाल,यज्ञदत्त शर्मा मादर नदी 1953 ई० रंगपुर (गुजरात-मादर नदी तट) माधोस्वरूप वत्स एवं रंगनाथ राव…
अशोक के शिलालेख एवं उनके विषय क्या थे?
अशोक के शिला लेख प्राचीन काल में राजा महाराजा विभिन्न शिलाओं पर अपने लेखों को लिखवाते थे, जिन्हें शिलालेख कहते हैं। अशोक के अभिलेखों में ब्राह्मी तथा खरोष्ठी लिपि प्रयोग की गई है। अशोक के शिलालेखों की लिपि ब्राह्मी एवं खरोष्ठी ही मुख्य रूप से है। इसके अतिरिक्त अशोक के कुछ शिलालेखों में (यूनानी) ग्रीक लिपि का भी प्रयोग मिलता है। अशोक के निम्नलिखित शिलालेख एवं उनके विषय है – अशोक के शिलालेख अशोक के शिला लेखों के विषय पहला शिला लेख पशुबलि निषेध किया गया| दूसरा शिला लेख मनुष्य एवं पशु चिकित्सा-व्यवस्था तथा…
प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत क्या है?
प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत- प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत जानकारी के वे साधन हैं जिनसे भारत के प्राचीन इतिहास के बारे जानकारी मिलती है, जिनके आधार पर इतिहास का निर्माण किया जाता है|इन्ही के आधार पर ऐतिहासिक घटनाओं का कालानुक्रम का निर्धारण किया जाता है| भारत के महान इतिहासकारों ने भारतीय इतिहास के स्रोतों को चार भागों में बाँटा है- भारतीय इतिहास के पुरातात्विक स्रोत– प्राचीन भारतीय इतिहास को जानने के लिए पुरातात्विक सामग्रियाँ सर्वाधिक प्रमाणिक है|इसके अंतर्गत प्राचीन अभिलेखों, मुद्राओं, स्मारक एवं भवन, मूर्तिकला, चित्रकला, एवं प्राचीन अवशेष…