मूल संहिता के भाष्यों के रूप में लिखे गये ग्रन्थों को ब्राह्मण ग्रन्थ कहते हैं। ये ग्रन्थ प्रायः गद्यात्मक हैं। “ब्रह्म” शब्द के “ मन्त्र” और “यज्ञ” दो प्रमुख अर्थ हैं। मन्त्रों और यज्ञों तथा इन दोनों की व्याख्या होने के कारण “ब्रह्म” शब्द से ” ब्राह्मण” शब्द निष्पन्न हुआ है।

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