अर्थवाद – अर्थवाद में निन्दा एवं प्रशंसा का सन्निवेश रहता है, जिसमें याग निषिद्ध वस्तुओं की निन्दा तथा यागोपयोगी वस्तुओं की प्रशंसा होती है। अर्थवाद वैदिक मन्त्रों की पुष्टि करते हैं । ब्राह्मणग्रन्थों की यह विशेषता रही है कि इनमें यज्ञों के विधि-विधान और अर्थवाद को समझने के लिए रोचक आख्यानों का आश्रय लिया गया है। वैदिक शब्दों के अर्थ स्पष्ट करने के लिए भी ब्राह्मण ग्रन्थों में व्युत्पत्तियाँ दी गई हैं।