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पृथ्वी का भूगर्भ और उसकी आन्तरिक संरचना

by mayank
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पृथ्वी का भूगर्भ और उसकी आन्तरिक संरचना
पृथ्वी का भूगर्भ और उसकी आन्तरिक संरचना (Image by pikisuperstar on Freepik)

पृथ्वी की आन्तरिक संरचना या भूगर्भ –

पृथ्वी के आन्तरिक भाग को प्रत्यक्ष रूप से देखना सम्भव नहीं है, क्योंकि यह बहुत ही बड़ा गोला है और इसके भूगर्भीय पदार्थों की बनावट गहराई बढ़ने के साथ-साथ बदलती जाती है | मनुष्य ने खनन् एवं वेधन प्रक्रियाओं के माध्यम से इसके कुछ ही किलोमीटर गहराई तक के भाग को प्रत्यक्ष रूप से देखा है | गहराई के साथ-साथ तापमान में तेजी से वृद्धि के कारण इसकी अधिक गहराइयों तक खनन् और वेधन का कार्य कर पाना संभव नहीं है | पृथ्वी के भूगर्भ में इतना अधिक तापमान है कि वेधन कार्य में प्रयोग किए जाने वाले किसी भी प्रकार के यंत्र को भी पिघला सकता है | अतः वेधन कार्य कम गहराइयों तक ही सीमित है | इसलिए पृथ्वी के गर्भ के विषय में प्रत्यक्ष जानकारी के मिलने में कठिनाइयाँ आती हैं | पृथ्वी के विशाल आकार और गहराई के साथ बढ़ते तापमान ने भूगर्भ की प्रत्यक्ष जानकारी की सीमाएँ निश्चित कर दी हैं |

पृथ्वी का भूगर्भ या आन्तरिक संरचना

पृथ्वी के भूगर्भ के जानकारी के स्रोत –

पृथ्वी की त्रिज्या 6,370 किमी है | पृथ्वी की आन्तरिक परिस्थितियों के कारण यह संभव नहीं है कि कोई पृथ्वी के केन्द्र तक पहुँचकर उसका निरीक्षण कर सके या वहाँ के पदार्थ का कुछ नमूना प्राप्त कर सके | यह आश्चर्य की बात है कि ऐसी परिस्थितियों में भी वैज्ञानिक हमें यह बताने में सक्षम हुए कि भूगर्भ की संरचना कैसी है और इतनी गहराई पर किस प्रकार के पदार्थ पाए जाते हैं ? पृथ्वी की आंतरिक संरचना के विषय में हमारी अधिकतर जानकारी परोक्ष रूप से प्राप्त अनुमानों पर आधारित है | तथापि इस जानकारी का कुछ भाग प्रत्यक्ष प्रेक्षणों और पदार्थ के विश्लेषण पर भी आधारित है | पृथ्वी के भूगर्भ के जानकारी के सस्रोतों को निम्न दो भागों में विभाजित किया गया है –

  1. प्रत्यक्ष स्रोत
  2. अप्रत्यक्ष स्रोत

प्रत्यक्ष स्रोत

पृथ्वी से सबसे आसानी से उपलब्ध ठोस धरातलीय चट्टानें है, अथवा वे चट्टानें है, जो हम खनन क्षेत्रों से प्राप्त करते हैं | दक्षिण आफ्रीका की सोने की खानें 3 से 4 किमी तक गहरी हैं | इससे अधिक गहराई में जा पाना असंभव है, क्योंकि उतनी गहराई पर तापमान बहुत अधिक होता है | खनन के अतिरिक्त वैज्ञानिक, विभिन्न परियोजनाओं के अंतर्गत पृथ्वी की आंतरिक स्थिति जानने के लिए पर्पटी में गहराई तक छानबीन कर रहे हैं | संसार भर के वैज्ञानिक दो मुख्य परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं | ये हैं गहरे समुद्र में प्रवेधन परियोजना (Deep Ocean Drilling Project) एवं समन्वित महासागरीय प्रवेधन परियोजना (Integrated Ocean Drilling Project) | आज तक सबसे गहरा प्रवेधन (Drill) आर्कटिक महासागर में कोला (Kola) क्षेत्र में 12 किमी की गहराई तक किया गया है | इन परियोजनाओं तथा बहुत सी अन्य गहरी खुदाई परियोजनाओं के अंतर्गत, विभिन्न गहराई से प्राप्त पदार्थों के के विश्लेषण से हमें पृथ्वी की आंतरिक संरचना से संबंधित असाधारण जानकारी प्राप्त हुई |

ज्वालामुखी उद्गार प्रत्यक्ष जानकारी का एक अन्य स्रोत है | जब कभी भी ज्वालामुखी उद्गार से लावा पृथ्वी की सतह पर आता है, यह प्रयोगशाला अन्वेषण के लिए उपलब्ध होता है | यद्यपि इस बात का निश्चय कर पाना कठिन होता है कि यह लावा पृथ्वी की कितनी गहराई से निकला होगा |

अप्रत्यक्ष स्रोत –

पदार्थ के गुणधर्म के विश्लेषण से पृथ्वी के आंतरिक भाग की अप्रत्यक्ष जानकारी प्राप्त होती है | खनन क्रिया से हमें पता चलता है कि पृथ्वी के धरातल में गहराई बढ़ने के साथ-साथ पदार्थ का घनत्व भी बढ़ता है | तापमान, दबाव व घनत्व में इस परिवर्तन की दर को आँका जा सकता है | पृथ्वी की कुल मोटाई को ध्यान में रखते हुए, वैज्ञानिकों ने विभिन्न गहराइयों पर पदार्थ के तापमान, दबाव एवं घनत्व के मान को अनुमानित किया है |

पृथ्वी की आंतरिक जानकारी का दूसरा अप्रत्यक्ष स्रोत उल्काएँ हैं, जो कभी-कभी धरती तक पहुँचती हैं | हाँलाकि, हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि उल्काओं के विश्लेषण के लिए प्राप्त पदार्थ पृथ्वी के आंतरिक भाग से प्राप्त नहीं होते हैं | परन्तु उल्काओं से प्राप्त पदार्थ और उनकी संरचना पृथ्वी से मिलती-जुलती है | ये वैसे ही पदार्थ के बने ठोस पिंड हैं, जिनसे हमारा ग्रह बना है | अतः पृथ्वी की आंतरिक जानकारी के लिए उल्काओं का अध्ययन एक अन्य महत्वपूर्ण स्रोत है |

अन्य अप्रत्यक्ष स्रोतों में गुरुत्वाकर्षण, चुम्बकीय क्षेत्र, भूकंप संबंधी क्रियाएँ शामिल हैं | पृथ्वी के धरातल पर विभिन्न अक्षांशों पर गुरुत्वाकर्षण बल एक समान नहीं होता है | यह ध्रुवों पर अधिक और भूमध्य रेखा पर कम होता है | पृथ्वी के केन्द्र से दूरी के कारण गुरुत्वाकर्षण बल ध्रुवों पर अधिक और भूमध्य रेखा पर कम होता है | गुरुत्व का मान पदार्थ के द्रव्यमान के अनुसार भी बदलता है | पृथ्वी के भीतर पदार्थों का असमान वितरण भी बदलता है | अलग-अलग स्थानों पर गुरुत्वाकर्षण की भिन्नता अनेक अन्य कारकों से भी प्रभावित होती है | इस भिन्नता को गुरुत्व विसंगति (Gravity anomaly) कहा जाता है | गुरुत्व विसंगति हमें भूपर्पटी में पदार्थ के द्रव्यमान के वितरण की जानकारी देती है | चुम्बकीय सर्वेक्षण भी भूपर्पटी में चुंबकीय पदार्थ के वितरण की जानकारी देते हैं | भूकंपीय गतिविधियाँ भी पृथ्वी की आंतरिक जानकारी का एक महत्वपूर्ण स्रोत है |

पृथ्वी की आन्तरिक संरचना –

पृथ्वी की आन्तरिक संरचना को इसकी आन्तरिक परतों की मोटाइयों के आधार पर वर्गीकृत किया गया है, जो निम्नलिखित हैं –

  1. भूपर्पटी (Crust)
  2. मैंटल (Mantle)
  3. क्रोड (Core)
  1. भूपर्पटी (Crust) – यह ठोस पृथ्वी का सबसे बहरी भाग है | यह बहुत ही भंगुर भाग है जिसमें जल्दी टूटने की प्रवृत्ति पाई जाती है | भूपर्पटी की मोटाई महाद्वीपों व महासागरों के नीचे अलग-अलग है | महासागरों में भूपर्पटी की मोटाई महाद्वीपों की तुलना में कम है | महासागरों के नीचे इसकी औसत मोटाई 5 किमी. है, जबकि महाद्वीपों के नीचे यह 30 किमी तक है | मुख्य पर्वतीय शृंखलाओं के क्षेत्र में यह मोटाई और भी अधिक है | हिमालय पर्वत श्रेणियों के नीचे भूपर्पटी की मोटाई लगभग 70 किमी तक है |
  1. मैंटल (Mantle) – भूगर्भ में पर्पटी के नीचे का भाग मैंटल कहलाता है | यह मोहो असांतत्य (Discontinuity) से आरम्भ होकर 2900 किमी की गहराई तक पाया जाता है | मेंटल का ऊपरी भाग दुर्बलतामंडल (Asthenosphere) कहा जाता है | इसका विस्तार 400 किमी तक आँका गया है | ज्वालामुखी उदगार के दौरान जो लावा धरातल तक पहुँचता है, उसका मुख्य स्रोत यही है | भूपर्पटी एवं मैंटल का ऊपरी भाग मिलकर स्थलमंडल (Lithoshere) कहलाते हैं | इसकी मोटाई 10 से 200 किमी के बीच पाई जाती है | निचले मैंटल का विस्तार दुर्बलतामंडल के समाप्त हो जाने के बाद तक है | यह ठोस अवस्था में है |
  1. क्रोड (Core) – क्रोड व मैंटल की सीमा 2900 किमी की गहराई पर है | बाह्य क्रोड (Outer core) तरल अवस्था में है जबकि आंतरिक क्रोड (Inner core) ठोस अवस्था में है | क्रोड भारी पदार्थों मुख्यतः निकिल व लोहे का बना है | इसलिए इस निफे परत के नाम से भी जाना जाता है |

भूगर्भ का तापमान, दबाव एवं घनत्व –

तापमान –

गहरी खानों और गहरे कूपों से जानकारी मिलती है कि पृथ्वी के भीतर गहराई बढ़ने के साथ तापमान बढ़ता है | यह बात ज्वालामुखी के उद्गारों में पृथ्वी के अन्दर से निकले अत्यंत गर्म लावा से भी सिध्द होती है कि भूगर्भ की ओर तापमान बढ़ता जाता है | विभिन्न प्रमाणों से स्पष्ट होता है कि भूगर्भ में धरातल से केन्द्र की ओर तापमान बढ़ने की दर एक समान नहीं है | कहीं पर यह तेज और कहीं पर यह धीमी है | प्रारंभ में तापमान बढ़ने की औसत सर प्रत्येक 32 मीटर की गहराई पर 1 सेल्सियस है | तापमान की इस स्थिर वृद्धि के आधार पर 10 किमी की गहराई में तापमान धरातल की अपेक्षा 300 से अधिक होना चाहिए | तापमान की इस वृद्धि दर के अनुसार भूगर्भ के सभी पदार्थ पिघली हुई अवस्था में होने चाहिए | परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है | चट्टानें जितनी अधिक गहराई में होंगी उनके पिघलने का तापमान बिंदु भी उतना ही ऊंचा होगा | उदाहरण के लिये बैसाल्टी लावा शैल धरातल पर 1250° से. पर पिघलती है परन्तु वही शैल भूगर्भ में 32 किलोमीटर की गहराई पर 1400° से. तापमान पर पिघलेगी । भूकम्प की तरंगों के व्यवहार से भी यह बात सिद्ध होती है । उनसे इस बात की भी पुष्टि होती है कि भूगर्भ में तापमान के बदलने के साथ पदार्थों की संरचना में भी परिवर्तन आता है। भूगर्भ के ऊपरी 100 किलोमीटर में तापमान के बढ़ने की दर 12° से. प्रति किलोमीटर है, अगले 300 किलोमीटर में यह वृद्धि दर 20° से. प्रति किलोमीटर है और इसके बाद यह वृद्धि – दर केवल 10° से. प्रति किलोमीटर रह जाती है। इससे स्पष्ट होता है कि धरातल के नीचे तापमान के बढ़ने की दर पृथ्वी के केन्द्र की ओर घटती जाती है। इस गणना के अनुसार पृथ्वी के केन्द्र का तापमान लगभग 4000° से 5000° से. के बीच है । भूगर्भ में इतना ऊँचा तापमान उच्च दाब के फलस्वरूप हुई रासायनिक प्रक्रियाओं और रेडियोधर्मी तत्वों के विखंडन के कारण ही संभव है।

दबाव –

भूगर्भ में ऊपरी परतों के बहुत अधिक भार के कारण पृथ्वी के सतह से केन्द्र की ओर जाने पर दबाव भी निरन्तर बढ़ता जाता है। पृथ्वी के केन्द्र पर अत्यधिक दबाव है। यह दबाव समुद्र तल पर वायुमंडल के दाब से 30-40 लाख गुना अधिक है। केन्द्र पर उच्च तापमान होने के कारण यहां पाये जाने वाले पदार्थों को द्रव रूप में होना स्वाभाविक है, परन्तु इस ऊपरी भारी दबाव के कारण यह द्रव रूप ठोस का आचरण करता है । सम्भवतः इसका स्वरूप प्लास्टिक नुमा है ।

घनत्व –

पृथ्वी के केन्द्र की ओर निरन्तर दबाव के बढ़ने और भारी पदार्थों के होने के कारण उसकी परतों का घनत्व भी बढ़ता जाता है । अतः सबसे गहरे भागों में अत्यधिक घनत्व वाले पदार्थों का होना स्वाभाविक है।

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