विकसित एवं विकासशील देश :-
प्रकृति ने प्रत्येक देश-प्रदेश के विकास के लिए विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक संसाधन निःशुल्क प्रदान किये हैं परन्तु सभी स्थानों पर प्राकृतिक संसाधनों का वितरण समान नहीं है। इन्हीं प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर राष्ट्र की जनसंख्या अपने कल्याण के लिए सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को विकसित करने का प्रयास करती है। कुछ राष्ट्र आर्थिक विकास में बहुत प्रगति कर चुके हैं परन्तु कुछ राष्ट्र इसमें बहुत पिछड़ गये हैं और कुछ देश लगातार आर्थिक विकास के उच्च स्तर को प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील हैं। इसी के आधार पर देशों को विकसित, विकासशील और अविकसित देशों की श्रेणी में विभक्त किया जाता है।
विकास की इस प्रक्रिया में कुछ राष्ट्र अपने संसाधनों का उचित दोहन करके अपने आर्थिक स्तर को ऊँचा बनाते हैं जिसके कारण वे अन्य देशों की तुलना में राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टि से अग्रणी हो जाते हैं। आर्थिक विकास की प्रक्रिया सतत जारी रहने से वे अपने संसाधनों का पूर्ण उपयोग कर लेते हैं। इस प्रकार के उन्नतिशील देशों को बाद में विकसित देश कहा जाने लगता है। इस प्रकार के राष्ट्र जो आर्थिक विकास की प्रक्रिया में अपने उपलब्ध संसाधनों का पूर्ण उपयोग नहीं कर पाये बल्कि इस दिशा में प्रयत्नशील हैं, उन्हें विकासशील देशों के अन्तर्गत रखा जाता है। इस प्रकार समस्त विश्व को दो भागों में बाँटा जाता है- –
- विकसित देश (Developed Countries),
- विकासशील देश (Developing Countries)
पहले विकसित देश को उन्नत देश (Advanced Countries) और विकासशील देश को पिछड़ा देश (Backward Countries) कहा जाता था। 20 जनवरी, 1949 में संयुक्त राज्य अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति ट्रूमैन ने पिछड़े देशों के लिए अल्पविकसित (Under-developed) शब्द का प्रयोग किया। इसी आधार पर विकसित देशों को (Developed countries) और विकासशील देशों को developing countries कहा जाने लगा। इनके लिए अविकसित या अल्पविकसित देशों (Poor countries) या तृतीय विश्व (Third world) जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया। अब ऐसे पिछड़े देशों को विकासोन्मुख या विकासशील देश (Developing countries) कहा जाता है। यद्यपि विश्व के देशों को विकसित एवं विकासशील की श्रेणी में वर्गीकृत करना एक अत्यन्त कठिन कार्य है, फिर भी संयुक्त राष्ट्र संघ एवं विश्व बैंक ने अपने-अपने ढंग से विश्व के देशों का वर्गीकरण किया है।
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा प्रस्तुत विभाजन :-
संयुक्त राष्ट्र संघ ने प्रतिव्यक्ति आय तथा सकल राष्ट्रीय उत्पाद के आधार पर विश्व को दो भागों में बाँटा है-
विकसित देश :-
इसके अन्तर्गत वे देश शामिल हैं जिन्होंने अपने प्राकृतिक संसाधनों का अधिकतम एवं कुशलतम उपयोग कर कृषि, उद्योग, व्यापार, परिवहन आदि क्षेत्रों में उच्चस्तरीय दक्षता प्राप्त कर ली है। ये देश आर्थिक एवं तकनीकी दृष्टि से उन्नत हैं। इन देशों का सकल राष्ट्रीय उत्पाद और प्रतिव्यक्ति आय का स्तर बहुत ऊँचा है। इन देशों ने प्राविधिक, तकनीकी एवं वैज्ञानिक ढंग से अपना आर्थिक विकास कर लिया है। इसके अन्तर्गत औद्योगिक एवं पूँजी प्रधान देश शामिल किये जाते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, जापान, ब्रिटेन आदि विश्व के प्रमुख विकसित देश हैं। इनमें प्रति व्यक्ति आय क्रमश: 41480; 28390; 37180; 33940 डॉलर है।
विश्व के दस सर्वाधिक विकसित देश :-
मानव विकास के आधार पर वरीयता क्रम में विश्व के दस सर्वाधिक विकसित देश इस प्रकार हैं-
- कनाडा
- फ्रांस
- नार्वे
- संयुक्त राज्य अमेरिका
- आइसलैण्ड
- नीदरलैण्ड
- जापान
- फिनलैण्ड
- न्यूजीलैण्ड
- स्वीडेन ।
विकासशील देश :-
वे देश जो किन्हीं कारणों से अभी आर्थिक विकास का उच्च स्तर प्राप्त नहीं कर सके, परन्तु इस दिशा में लगातार प्रयत्नशील हैं, विकासशील देशों की श्रेणी में आते हैं। इन देशों में कृषि, उद्योग, व्यापार एवं तकनीकी विकास के क्षेत्र में वांछित प्रगति नहीं हो सकी है परन्तु वे धीरे-धीरे आर्थिक एवं औद्योगिक क्षेत्र में उन्नति कर आर्थिक विकास की ओर अग्रसर हो रहे हैं। जनसंख्या की अधिकता और न्यून उत्पादकता के कारण इन देशों के निवासियों को जीवन-निर्वाह करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इन देशों में प्रति व्यक्ति आय बहुत कम होती है। इनमें प्रति व्यक्ति आय भारत में 150, बांग्लादेश में 90, चीन में 45, पाकिस्तान में 190 तथा दक्षिणी-पूर्वी एशियायी देशों में 850 से 1,800 डालर के मध्य है।
विश्व के दस सर्वाधिक विकासशील देश :-
मानव विकास के आधार पर वरीयता क्रम में विश्व के दस सर्वाधिक विकासशील देश निम्नवत् हैं :
- हांगकांग (वर्तमान में चीन का अंग)
- साइप्रस
- बारबाडोस
- सिंगापुर
- बहामा
- एण्टीगुआ एवं बरमूडा
- चिली
- दक्षिणी कोरिया
- कोस्टारिका
- अर्जेण्टाइना ।
विश्व बैंक द्वारा प्रतिपादित वर्गीकरण :-
विश्व बैंक ने 1981 में प्रकाशित अपनी ‘विश्व विकास रिपोर्ट’ में निम्न तथ्यों के आधार पर विभिन्न देशों को विकसित एवं विकासशील की श्रेणी में बाँटा है-
- प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय उत्पादन (GNP)
- सकल घरेलू उत्पादन (GDP) में कृषि, उद्योग और सेवाओं का प्रतिशत अनुपात ।
- जनसंख्या का आयु वर्ग संरचना में 1 वर्ष से 14 वर्ष तक और 60 वर्ष से अधिक आयु की जनसंख्या प्रतिशत अनुपात ।
- कुल जनसंख्या में नगरीय जनसंख्या का प्रतिशत ।
- जीवन प्रत्याशा या औसत जीवन अवधि ।
- तकनीकी, प्रौद्योगिकी एवं संचार व्यवस्था का स्तर।
- विदेशी व्यापार का प्रति व्यक्ति मूल्य ।
- प्रतिदिन प्रति व्यक्ति भोजन में उपलब्ध कैलोरी की मात्रा।
- प्रति हजार जनसंख्या के पीछे मोटर कारों, टेलीविजन सेट्स, टेलीफोन सेवाओं की उपलब्धता।
- इस्पात, अखबारी कागज, ऊर्जा, विद्युत्, उर्वरक आदि का प्रति व्यक्ति उपभोग ।
इन तथ्यों के आधार पर विश्व के लगभग 216 राष्ट्रों में से 41 को विकसित और 175 को विकासशील देशों की श्रेणी में रखा गया हैं। विकसित राष्ट्रों में उत्तरी अमेरिका महाद्वीप के कनाडा एवं संयुक्त राज्य अमेरिका सहित तीन देश, एशिया में जापान एवं इजराइल, अफ्रीका में दक्षिणी अफ्रीका गणतन्त्र तथा यूरेशिया में रूस शामिल हैं।
विश्व बैंक के अनुसार जिन देशों की प्रति व्यक्ति आय 370 से 400 डालर के बीच होती है उन देशों को विकासशील देशों की श्रेणी में रखा जाता है। इन देशों में जनसंख्या की आजीविका का साधन कृषि है। इन देशों की 75% जनसंख्या गाँवों में निवास करती है। इन देशों में बाल श्रमिकों की संख्या अधिक पायी जाती है।
विकासशील देशों का विभाजन :-
विकासशील देशों को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-
- निम्न आय वर्ग के विकासशील देश- इस वर्ग के अन्तर्गत दक्षिणी एशियायी देश, सार्क देश, जैसे-भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, चीन, श्रीलंका, नेपाल, मालदीव, इण्डोनेशिया और अफ्रीकी देशों को शामिल किया जाता है।
- मध्यम आय वर्ग के विकासशील देश- इस आय वर्ग के अन्तर्गत अफ्रीका के देश जैसे- मिस्र, कीनिया, नाइजीरिया तथा एशिया का मलेशिया और दक्षिणी अफ्रीका के ब्राजील जैसे देशों को शामिल किया जाता है।
विकसित देशों की विशेषताएँ :-
विकसित देशों की प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं-
- उच्च राष्ट्रीय आय – इन देशों में राष्ट्रीय आय का स्तर ऊँचा होता है। विश्व की समस्त राष्ट्रीय आय का 3/4 भाग विकसित राष्ट्रों से ही प्राप्त होता है।
- प्रति व्यक्ति उच्च आय- इन देशों में प्रति व्यक्ति आय का स्तर भी ऊँचा होता है। विकसित देशों में प्रति व्यक्ति आय 23,000 डॉलर से भी अधिक है, जबकि भारत में यह 530 डॉलर ही है।
- उच्च जीवन-स्तर – विकसित देशों में लोगों के रहन-सहन का स्तर काफी ऊँचा है। इन देशों में शिक्षा, रोजगार एवं स्वास्थ्य सुविधाओं की उचित व्यवस्था है।
- सीमित जनसंख्या- इन देशों में समस्त विश्व की केवल 1/4 जनसंख्या ही निवास करती है। इनमें जनसंख्या वृद्धि दर बहुत कम है।
- तकनीकी विकास – इन देशों में नवीनतम तकनीकों के प्रयोग द्वारा उपलब्ध संसाधनों का कुशलतम प्रयोग किया जाता है। फ्रांस, जर्मनी एवं ग्रेट ब्रिटेन इसके उत्तम उदाहरण हैं।
- नारी की उत्तम दशा- इन देशों में नारियों को पुरुषों के समान ही अधिकार प्राप्त हैं, इसलिए यहाँ की नारी भी पुरुषों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर राष्ट्र के निर्माण में सहयोग देती है।
- कृषि का यन्त्रीकरण – विकसित देशों में आधुनिक एवं उन्नत तकनीक के प्रयोग द्वारा कृषि के उत्पादन में भारी वृद्धि की गयी है। इन देशों में पशुपालन एवं दुग्ध उद्योग भी उन्नत अवस्था में हैं।
- उच्चस्तरीय औद्योगिकीकरण- इन देशों का पूर्ण औद्योगिकीकरण हो गया है जिसके कारण आयात-निर्यात द्वारा ये देश अधिक मात्रा में विदेशी मुद्रा अर्जित करते हैं।
- व्यापारिक कृषि का विकास- इन देशों में व्यापारिक स्तर पर फल एवं सब्जियों का उत्पादन किया जाता है। इनका उत्पादन बड़े-बड़े देशों के निकटवर्ती भागों में होता है जिसे ट्रक द्वारा नगरों में पहुँचाया जाता है। इसे ट्रक फार्मिंग भी कहते हैं।
- यातायात एवं संचार व्यवस्था – विकसित देशों में यातायात एवं संचार की व्यवस्था उन्नत है। इन साधनों ने इन देशों के आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
- रोजगार के अवसर – इन देशों में बेरोजगारी की समस्या नहीं है क्योंकि यहाँ रोजगार के अवसरों की अधिकता है।
- उच्च नगरीयकरण – विकसित देशों में नगरीयकरण की गति बहुत तीव्र है। विकसित देशों की अधिकतर जनसंख्या नगरों में ही निवास करती है।
- कार्यशील जनसंख्या – विकसित देशों में अधिकतर लोग कुछ न कुछ कार्य करते हैं।
विकासशील देशों की विशेषताएँ :-
विकासशील देशों की प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं-
- जनसंख्या की अधिकता – विकासशील देशों में समस्त विश्व की लगभग 3/4 जनसंख्या निवास करती हैं। इस कारण ये देश जनाधिक्य की समस्या से ग्रस्त हैं। इन देशों में मृत्यु दर कम तथा जन्म दर अधिक पायी जाती है। इस कारण जनसंख्या की समस्या तथा उसके कारण उत्पन्न अन्य अनेक समस्याओं ने यहाँ विकराल रूप ले लिया है।
- प्रति व्यक्ति निम्न आय – इन देशों में प्रति व्यक्ति आय और राष्ट्रीय आय बहुत कम हैं। भारत में प्रति व्यक्ति आय 310 डालर है।
- कृषि की अधिकता – विकासशील देशों में जनसंख्या की आजीविका का मुख्य साधन कृषि है। यहाँ की लगभग 60% जनसंख्या कृषि कार्य में संलग्न है। इन देशों में कृषि के पुराने एवं परम्परागत तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है जिसके कारण कृषि की उत्पादक क्षमता भी अत्यन्त कम है।
- पूँजी की कमी- इन देशों में न्यून उत्पादकता के कारण बचत कम हो पाती है जिसके कारण पूँजी का अभाव हमेशा बना रहता है। पूँजी की कमी के कारण ही व्यापार, उद्योग, परिवहन के साधन और अन्य आधारभूत सुविधाओं के विकास में बाधा पड़ती है।
- नवीन तकनीक का अभाव- इन देशों में शिक्षा एवं विज्ञान की जानकारी का स्तर नीचा होने के कारण ये देश नवीन तकनीक के विकास की दृष्टि से पिछड़े हुए हैं। नवीन तकनीकी साधनों की कमी के कारण यहाँ पर उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का समुचित उपयोग नहीं हो पा रहा है।
- निम्न स्तरीय औद्योगिक विकास – विकासशील देशों में समुचित प्राकृतिक संसाधनों की अधिकता है लेकिन नवीन तकनीक की कमी के कारण यहाँ उद्योगों का पर्याप्त विकास नहीं हो पा रहा है जिसके कारण यहाँ औद्योगिक विकास का स्तर बहुत नीचा है।
- अविकसित यातायात एवं संचार व्यवस्था- इन देशों में यातायात एवं दूरसंचार के साधनों का पूर्ण विकास नहीं हो पाया है जिसका प्रभाव यहाँ की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है।
- सामाजिक पिछड़ापन – विकासशील देशों में समाज अज्ञानता एवं पिछड़ेपन से ग्रस्त है। यहाँ पर लोग रूढ़िवादी हैं जो भाग्य पर विश्वास करते हैं। यहाँ नारियों की दशा भी अत्यन्त सोचनीय है। यहाँ नारी को पुरुषों से नीचे समझा जाता है। इन देशों में नारी की दशा में सुधार होने से विकास को नया आधार प्राप्त हुआ है।
- आश्रित जनसंख्या की अधिकता – इन देशों में वृद्ध और बच्चों की संख्या अधिक है। यहाँ काम करनेवालों की संख्या कम है जिससे इनके ऊपर इन लोगों का बोझ रहता है, फलतः यहाँ गरीबी एवं ऋणग्रस्तता हमेशा बनी रहती है।
- आय का असमान वितरण – इन देशों में आय के वितरण में बहुत असमानता पायी जाती है। राष्ट्रीय आय का बहुत बड़ा भाग थोड़े व्यक्तियों को प्राप्त हो पाता है और राष्ट्रीय आय का थोड़ा-सा भाग जनसंख्या के बहुत बड़े भाग को प्राप्त होता है।
विकासशील देशों के आर्थिक विकास में समस्याएँ :-
विकासशील देशों में निम्न समस्याएँ उनके आर्थिक विकास में बाधक हैं-
1. जनाधिक्य की समस्या-
किसी भी राष्ट्र का आर्थिक विकास वहाँ की जनसंख्या पर निर्भर रहता है। लेकिन तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या के कारण अर्थव्यवस्था का आर्थिक विकास अपने आदर्श अनुपात से दूर हट जाता है जिससे देश में अन्य तरह की नयी समस्याएँ जन्म लेने लगती हैं। विकासशील देशों की सबसे बड़ी समस्या जनाधिक्य की है। इन देशों में समस्त विश्व की लगभग 3/4 जनसंख्या निवास करती है। उच्च जन्म दर एवं निम्न मृत्यु-दर के कारण इन देशों में जनसंख्या सम्बन्धी निम्न समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं-
- विकासशील देशों की अधिकतर जनसंख्या निम्न स्तरीय जीवनयापन कर रही है जिसके कारण यहाँ कुपोषण, निर्धनता एवं भुखमरी की समस्याएँ उत्पन्न हो गयी हैं।
- इन देशों में जनसंख्या की तुलना में सुविधाओं की कमी है।
- इन देशों में अशिक्षित लोगों की संख्या भी अधिक है।
- विकासशील देशों में कार्यशील जनसंख्या की कमी है।
- इन देशों में जनसंख्या की औसत आयु भी कम पायी जाती है।
- विकासशील देशों की 60% जनसंख्या कृषि पर निर्भर करती है जिससे कृषि भूमि पर जनसंख्या का दबाव बढ़ता जा रहा है।
- इन देशों में जनाधिक्य के कारण बेरोजगारी और अर्द्धबेरोजगारी की अधिकता है।
- नगरीयकरण के कारण यहाँ के नगरों पर भी जनसंख्या का दबाव निरन्तर बढ़ रहा है।
- प्राकृतिक संसाधनों पर जनसंख्या की अधिकता का दबाव अधिक होने से इन संसाधनों की कमी के साथ ही प्रदूषण की समस्याएँ बढ़ती जा रही हैं।
- अधिक जनसंख्या के कारण इन देशों में शुद्ध वायु, पेयजल एवं खाद्य पदार्थों की निरन्तर कमी होती जा रही है।।
- जनाधिक्य के कारण विकासशील देशों में चोरी, डकैती, लूटपाट, अपहरण, भ्रष्टाचार एवं बलात्कार जैसी आपराधिक प्रवृत्तियाँ बढ़ रही हैं।
2. नारी की दशा :-
विकासशील देशों में नारी की दशा अत्यन्त सोचनीय है। विकसित देशों में कार्यशील नारियों की संख्या पुरुषों के समान हैं परन्तु विकासशील देशों में कार्यशील नारी की संख्या कम है। विकासशील देशों में नारियों की अधिकांश संख्या अनुत्पादक कार्यों में संलग्न है जिससे अर्जक जनसंख्या पर उनका भार बना रहता है। इन देशों में स्त्रियाँ घर की चहारदीवारी में रहकर घरेलू कार्यों और बच्चों के लालन-पालन तक ही सीमित रहती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों की अधिकांश महिलाएँ कृषि सम्बन्धी कार्यों में अपना योगदान देती हैं परन्तु उनके इस योगदान को व्यावसायिक स्तर पर कोई मान्यता नहीं दी जाती है। विकासशील देशों में नारी की शिक्षा पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। अल्पायु में ही उनका विवाह कर छोटी उम्र में ही उनके ऊपर मातृत्व का बोझ लाद दिया जाता है जिसके कारण वे शारीरिक एवं मानसिक रूप से कमजोर हो जाती हैं, अत: इन देशों में जब तक स्त्रियों की दशा में सुधार नहीं किया जायेगा तब तक इन देशों का आर्थिक विकास सम्भव नहीं है।
3. साक्षरता एवं तकनीकी शिक्षा का निम्न स्तर :-
विकासशील देशों में साक्षरता एवं तकनीकी शिक्षा का स्तर अत्यन्त निम्न है, जबकि विकसित देशों में साक्षरता एवं तकनीकी शिक्षा-स्तर काफी ऊँचा पाया जाता है। विकासशील देशों में उच्च शिक्षा एवं तकनीकी शिक्षा के महत्त्व पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है। इन देशों में नवीन शोधों एवं अनुसंधानों का भी कोई महत्त्व नहीं है। किसी देश का पूर्ण आर्थिक विकास तभी सम्भव है जब वहाँ पर मानवीय एवं प्राकृतिक संसाधनों के बीच उचित सन्तुलन हो, अतः हमें इस तरह की परिस्थितियों पर विचार करके देश के आर्थिक विकास की गति को बढ़ाना चाहिए।
4. अल्पविकसित यातायात एवं संचार के साधन :-
यातायात एवं संचार के साधन किसी राष्ट्र के विकास में जीवन-रेखा का काम करते हैं परन्तु विकासशील देशों में पूँजी की कमी के कारण यातायात एवं संचार साधनों का उचित विकास नहीं हो पा रहा हैं। विकासशील देश सर्वप्रथम अपनी प्राथमिक आवश्यकताओं को ही पूरा करने में लगे रहते हैं। कुछ विकासशील देश जैसे चीन, भारत, मिस्र, ब्राजील, अर्जेण्टाइना और इण्डोनेशिया आदि में यातायात एवं संचार के साधनों का पर्याप्त विकास हो चुका है, जिसके कारण इन देशों में औद्योगिक, व्यापारिक और वाणिज्यिक क्षेत्रों में कुछ विकास हुआ है। जिन विकासशील देशों में यातायात एवं संचार के साधनों में कमी पायी जाती है उनका आर्थिक विकास रुक जाता है। कृषि, उद्योग, शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यापार, वाणिज्य, प्रतिरक्षा और प्रशासन के विकास के लिए यातायात एवं संचार माध्यमों का विकसित होना अत्यन्त आवश्यक है।
5. अविकसित उद्योग-धन्धे :-
किसी भी उद्योग का विकास पूरी तरह से खनिज पदार्थों की उपलब्धता पर निर्भर करता है। कुछ उद्योग-धन्धे जैसे कृषि, वनोद्यम एवं पशुपालन से प्राप्त कच्चे मालों पर निर्भर करते हैं। उद्योग-धन्धों के विकास के लिए विकासशील देशों को पर्याप्त खनिज पदार्थ उपलब्ध हैं और नये खनिज पदार्थों की तलाश भी जारी है। विकासशील देशों में पूँजीगत संसाधनों की कमी, तकनीकी शिक्षा का अभाव, शक्ति संसाधनों की कमी तथा जोखिम उठाने की क्षमता के अभाव के कारण ही इन देशों में उद्योग-धन्धे अविकसित अवस्था में रह जाते हैं।
विकासशील देशों के आर्थिक विकास हेतु मार्गदर्शक उपाय :-
किसी भी राष्ट्र का आर्थिक विकास तभी सम्भव है जब वहाँ उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का मानवीय संसाधनों के द्वारा अनुकूलतम उपयोग किया जाय। आर्थिक विकास को गतिशील बनाने और उसको गति प्रदान करने के लिए नीचे कुछ मार्गदर्शक उपाय बताये जा रहे हैं। इन उपायों का क्रमबद्ध अनुसरण करते हुए कोई भी देश अपने आर्थिक विकास की चरम सीमा पर पहुँच सकता है। ये उपाय निम्न है –
- प्राकृतिक एवं मानवीय संसाधनों का कुशलतम दोहन एवं उपयोग।
- जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण एवं शिक्षा का प्रचार-प्रसार।
- योजनाबद्ध ढंग से आर्थिक व्यवस्था को गतिशील बनाना।
- विकसित देशों के साथ आर्थिक सम्बन्धों में उत्तरोत्तर वृद्धि करना।
- कृषि में वैज्ञानिक तकनीकी पद्धति द्वारा खाद्यान्नों के उत्पादन में वृद्धि करना।
- क्षेत्रीय सम्बन्धों को मजबूत बनाना।
- निर्यात व्यापार में वृद्धि करना।
- उपलब्ध कृषि, वन, व्यवसाय, पशुपालन, मत्स्य तथा खनिज पदार्थों पर आधारित उद्योग-धन्धों का विकास करना।
- कुटीर एवं लघु उद्योगों तथा ग्रामीण दस्तकारी एवं शिल्पकला को प्रोत्साहन देना।
- आजीविका के साधनों में अधिकाधिक वृद्धि करना।
- परिवहन एवं संचार साधनों का विकास करना।
- निर्यात व्यापार में प्रसंस्कृत वस्तुओं के अंशदान पर बल देना।
- आर्थिक विकास में नारी की सहभागिता को सुनिश्चित करना।
- समस्त क्षेत्रों के संतुलित एवं सुनिश्चित विकास पर बल देना ।
यदि हम उपर्युक्त सुझावों का उचित ढंग से पालन करेंगे तो अपेक्षित विकास सम्भव हो सकता है। यदि अपने राष्ट्र में उपलब्ध संसाधनों का वहाँ की जनशक्ति द्वारा अधिकतम उपयोग होने लगता है तो वहाँ पर आर्थिक विकास की लहर दौड़ पड़ती है, अतः हमें आर्थिक विकास को लगातार गति प्रदान करने के लिए वहाँ उपलब्ध संसाधनों का अधिकतम एवं कुशलतम उपयोग पर ध्यान केन्द्रित करना होगा।