प्लासी का युद्ध [Battle of Plassey]


प्लासी का युद्ध [Battle of Plassey]
प्लासी का युद्ध (Image Source Warfare History Network)

प्लासी का युद्ध राबर्ट क्लाइव जो एक महत्वाकांक्षी एवं अत्यन्त चालाक व्यक्ति था वह अली नगर की सन्धि से सन्तुष्ट नहीं हुआ। उसे अपने गुप्तचरों से यह ज्ञात हो चुका था कि सिराजुद्दौला के कई अधिकारी लालची एवं भ्रष्ट हैं, जो पैसों के लिये कुछ भी कर सकते हैं। मानिकचन्द्र का उदाहरण उसके सामने था, अतः क्लाइव ने एक षडयन्त्र रचा जिसमें नवाब के सेनापति मीर जाफर, प्रभावशाली साहूकार जगत सेठ, राय दुर्लभ एवं अमीनचन्द सम्मिलित हो गये। इसमें निश्चय हुआ कि मीर जाफर को बंगाल का नवाब बना दिया जाय, जिसके लिये वह कम्पनी एवं मददगार लोगों को धन एवं पद से कृतार्थ करेगा।

उकसावे के लिये अंग्रेजों ने फ्रांसीसी बस्ती चन्द्रनगर को मार्च 1757 में जीत लिया । एक ऐसे समय में जब अफगानों एवं मराठों का भय नवाब को सता रहा था, क्लाइव सेना सहित नवाब के विरूद्ध मुर्शिदाबाद की ओर बढ़ा। जिससे विवश होकर सिराज को भी युद्ध के लिये आगे बढ़ना पड़ा। 23 जून 1757 को दोनो सेनायें मुर्शिदाबाद से 22 मील दक्षिण में प्लासी के स्थान पर एक दूसरे से टकरायी। यद्यपि संख्या की दृष्टि से अंग्रेजों की तुलना में नवाब की सेना बहुत बड़ी थी, किन्तु सेनापति मीर जाफर के विश्वासघात के कारण नवाब की सेना की पराजय हुई। नवाब की सेना के अग्रगामी दल ने जिसका नेतृत्व मीर मदान एवं मोहन लाल कर रहे थे, अंग्रेजी सेना को पीछे हटने के लिये बाध्य किया था, किन्तु सिराज का 2000 घुड़सवारों के साथ वापस युद्ध से लौटना तथा मीर जाफर के असहयोग से बाजी अंग्रेजों के हाथ लगी। मीर जाफर 25 जून को मुर्शिदाबाद लौटा तथा अपने आपको नवाब घोषित कर दिया। सिराज को बन्दी बना लिया गया तथा उसकी हत्या कर दी गयी। मीर जाफर ने अंग्रेजों को उनकी सेवाओं के लिये 24 परगना की जमींदारी से पुरस्कृत किया। क्लाइव को 2 लाख 34 हजार पौंड की भेंट तथा 50 लाख रूपया सेना एवं नाविकों को दिया। बंगाल की समस्त फ्रांसीसी बस्ती अंग्रेजों को दे दी गयी तथा अंग्रेज पदाधिकारियों एवं व्यापारियों को निजी व्यापार पर चुंगी से छूट दे दी गयी।

प्लासी के युद्ध के कारण :-

बंगाल के नवाब सिराजुदौला ने अपने समक्ष उपस्थित आन्तरिक चुनौतियों का सामना करने की तैयारी की। यह कार्य उसके लिए कठिन नहीं था, परन्तु इसी समय उसे अंग्रेजों द्वारा उत्पन्न चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा। नवाब और अंग्रेजों के मध्य खराब सम्बन्धों ने प्लासी के युद्ध की पृष्ठभूमि का निर्माण किया। प्लासी के युद्ध के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे-

1. सिराजुद्दौला एवं अंग्रेजों के मध्य मनमुटाव :-

अलीवर्दी खाँ के समय से ही नवाब और अंग्रेजों में मित्रतापूर्ण सम्बन्ध नहीं थे। शीघ्र ही सिराजुद्दौला तथा अंग्रेजों के मध्य भी मनमुटाव उत्पन्न हो गया। पी. ई. राबर्टस के मत में, “बंगाल की तत्कालीन राजनीतिक एवं आर्थिक दशा इसके लिए पूर्णतः जिम्मेदार थीं।” नवाब और अंग्रेजों के बीच मनमुटाव के निम्नलिखित कारण थे-

  1. नवाब के शत्रुओं को शरण देना :- सम्भवतः अंग्रेजों को यह विश्वास था कि अलीवर्दी खाँ की मृत्यु के बाद सिराजुद्दौला नवाब नहीं बन सकेगा। अतः उन्होंने दरबार के एक प्रभावशाली पक्ष घसीटी बेगम तथा उसके दीवान राजवल्लभ का साथ दिया। उन्होंने सिराजुद्दौला के शत्रु राजवल्लभ के पुत्र कृष्णदास को उसके परिवार एवं खजाने के साथ कलकत्ता में शरण दी। जब सिराजुद्दौला ने कृष्णदास को वापस माँगा, अंग्रेजों ने इससे इन्कार कर दिया। इससे नवाब को विश्वास हो गया कि अंग्रेज उसके विरोधियों की मदद कर रहे हैं।
  2. अंग्रेजों द्वारा कलकत्ता की किलेबन्दी :- झगड़े का मुख्य कारण अंग्रेजों द्वारा कलकत्ता की किलेबन्दी करना था। उन्होंने इस कार्य हेतु नवाब से आज्ञा प्राप्त नहीं की थी। इससे नवाब क्रोधित हुआ। उसने स्पष्ट रूप से अंग्रेजों को कलकत्ते की किलेबन्दी नष्ट करने को कहा, परन्तु अंग्रेजों ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। सिराजुद्दौला अंग्रेजों के बढ़ते हुए खतरे को अच्छी तरह समझता था। अतः वह बंगाल में उनकी शक्ति का तुरन्त दमन करना चाहता था।
  3. व्यापारिक सुविधाओं का दुरुपयोग :- अंग्रेजों ने मुगल सम्राट फर्रुखसियर से मुगल राज्य में बिना कर दिये व्यापार करने का अधिकार प्राप्त किया था, परन्तु ईस्ट इण्डिया कम्पनी के कर्मचारियों ने इस अधिकार का दुरुपयोग करना प्रारम्भ कर दिया था। न केवल कम्पनी वरन् कम्पनी के कर्मचारी तथा उनके रिश्तेदार भी इस अधिकार का प्रयोग करने लगे थे। दूसरी ओर अंग्रेजों ने दस्तक ( Free Pass) का उपयोग भारतीय व्यापारियों को भी करने दिया। इससे नवाब की आय में काफी कमी आयी नवाब इससे असन्तुष्ट था, परन्तु अंग्रेज अपने विशेषाधिकारों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे।

2. सिराजुद्दौला का कलकत्ता पर अधिकार :-

अंग्रेज अब तक यह समझ चुके थे कि सिराजुद्दौला को नवाब पद की चुनौती कोई नहीं दे सकेगा। अतः गवर्नर ड्रेक ने नवाब को एक पत्र लिखा। उसकी भाषा तो विनम्र थी, लेकिन कलकत्ता की किलेबन्दी को तोड़ने सम्बन्धी उसमें कोई आश्वासन नहीं था। अतः नवाब ने तुरन्त अंग्रेजों पर आक्रमण करने का निश्चय किया।

4 जून, 1756 को नवाब ने कासिम बाजार की अंग्रेजों की कोठी पर अधिकार कर लिया। 16 जून, 1756 को नवाब ने कलकत्ता पर आक्रमण किया। 20 जून, 1756 को नवाब ने फोर्ट विलियम पर अधिकार कर लिया, परन्तु विजेताओं ने अंग्रेजों के साथ कोई दुर्व्यवहार नहीं किया। अपनी इस सफलता के पश्चात् नवाब ने कलकत्ता को मानिकचन्द के नियन्त्रण में छोड़ा तथा स्वयं अपनी राजधानी मुर्शिदाबाद लौट गया।

3. ब्लेक होल की दुर्घटना :-

ऐसा कहा जाता है कि फोर्ट विलियम की विजय के बाद नवाब ने एक छोटी-सी कोठरी में 146 अंग्रेज कैदियों को बन्द कर दिया, जिसमें से 123 व्यक्ति मर गए। हालवेल सहित केवल 23 व्यक्ति ही जीवित बचे। यह दुर्घटना ‘ब्लेक होल’ के नाम से जानी जाती है। इस तथाकथित घटना की सत्यता के सम्बन्ध में विद्वानों को सन्देह है।

4. अंग्रेजों का कलकत्ता पर पुनः अधिकार तथा अलीनगर की सन्धि :-

कलकत्ता पर अधिकार के पश्चात् नवाब सिराजुद्दौला आश्वस्त हो गया। वह अनुभवहीन तथा विलासी प्रवृत्ति का था। उसने अंग्रेजों के खतरों से निपटने के लिए कोई अन्य उपाय नहीं किये। अंग्रेज बंगाल की अराजक स्थिति से भलीभाँति परिचित थे। वे कलकत्ता की पराजय को भूले नहीं थे। अपनी पराजय का बदला लेने के लिए उन्होंने एक ओर तो सैनिक तैयारियाँ प्रारम्भ की और दूसरी ओर कूटनीतिक उपायों का सहारा लिया। उन्होंने सिराजुद्दौला से असन्तुष्ट लोगों को अपनी ओर मिलाने के उपाय किये। उन्होंने कलकत्ता के प्रभारी मानिकचन्द, नगर के एक व्यापारी अमीचन्द तथा दरबार के प्रमुख साहूकार जगत सेठ को अपने षड्यन्त्र में सम्मिलित किया । षड्यन्त्र में सम्मिलित सभी लोगों ने नवाब के साथ विश्वासघात किया था और गिरफ्तारी से बचने के लिए अंग्रेजों की शरण ली थी। तैयारियाँ पूर्ण होने के पश्चात् मद्रास कौंसिल ने क्लाइव एवं वाटसन के नेतृत्व में एक सेना बंगाल भेजी जिसने 2 जनवरी, 1757 को कलकत्ता पर पुनः अधिकार कर लिया। विवश होकर नवाब ने 1 फरवरी, 1757 को अंग्रेजों के साथ अलीनगर की सन्धि कर ली। इस सन्धि द्वारा अंग्रेजों को मुगल बादशाह द्वारा दिए गए समस्त अधिकार पुनः वापस मिल गए। नवाब को अंग्रेजों की सभी माँगें माननी पड़ी। परन्तु अंग्रेजों और नवाब में मनमुटाव कम नहीं हुआ।

5. सिराजुद्दौला के विरुद्ध षड्यन्त्र :-

अंग्रेज अपने उद्देश्यों तथा हितों के प्रति बड़े सजग थे। इस समय सप्तवर्षीय युद्ध चल रहा था। अंग्रेजों को आशंका हुई कि नवाब फ्रांसीसियों से गठबन्धन करके उन्हें बंगाल से खदेड़ने के प्रयत्न कर सकता है। अतः उन्होंने अपने मार्ग का काँटा हटा देने में ही अपनी भलाई समझी। उन्होंने सिराजुद्दौला को नवाब के पद से हटाकर किसी ऐसे व्यक्ति को नवाब बनाने का षड्यन्त्र रचा जो उनके लक्ष्यों की पूर्ति में सहायक हो सके। इस षड्यन्त्र में सिराजुद्दौला का सेनापति तथा दामाद मीर जाफर, दुर्लभ राय, जगत सेठ, कृष्णनगर के महाराज कृष्णचन्द्र और रानी भवानी सम्मिलित हुए। इस षड्यन्त्र में दोनों पक्षों की मध्यस्थता अमीचन्द ने की। जून 1757 में एक नियमित सन्धि द्वारा षड्यन्त्र की सफलता के पश्चात् दिये जाने वाले पुरस्कार भी तय किये गये। सन्धि की मुख्य शर्ते निम्नलिखित थीं-

  1. मीर जाफर को बंगाल का नवाब बनाया जाना निश्चित हुआ। जो अधिकार अंग्रेजों को सिराजुद्दौला के समय में प्राप्त थे, वे मीर जाफर के नवाब बनने पर भी बने रहेंगे।
  2. नवाब बनाये जाने के बदले मीर जाफर ने आश्वासन दिया कि वह सिराजुद्दौला के आक्रमण के समय हुई कलकत्ता के विनाश की क्षतिपूर्ति करेगा। इस तरह कम्पनी को एक करोड़ रुपया 50 लाख रुपया कलकत्ता के यूरोपीय निवासियों को तथा 20 लाख रुपया हिन्दू निवासियों को दिया जायेगा।
  3. मीर जाफर अंग्रेजों को कलकत्ता, ढाका तथा कासिम बाजार की किलेबन्दी की अनुमति देगा तथा कलकत्ता के समीपवर्ती प्रदेशों को अंग्रेजों को सौंप देगा।
  4. भविष्य में यदि मीर जाफर को सैनिक सहायता की आवश्यकता पड़ेगी तो अंग्रेज उसकी सहायता करेंगे, परन्तु सेनाओं का व्यय मीर जाफर को ही वहन करना होगा।

6. अमीचन्द को धोखा :-

इस षड़यन्त्र के मध्यस्थ अमीचन्द को 30 लाख रुपया कमीशन के रूप में दिया जाना तय किया गया। जब मीर जाफर ने सन्धि की शर्तों को अन्तिम रूप से स्वीकार कर लिया, तब अन्तिम समय में अमीचन्द ने एक कठिनाई खड़ी कर दी तथा लूट में अधिक हिस्सा माँगा। क्लाइव ने अमीचन्द को धोखा देने के लिए एक जाली पत्र तैयार किया। उसने सन्धि के दो प्रपत्र तैयार करवाये, एक सफेद कागज पर जो सच्ची थी तथा एक झूठी लाल कागज पर झूठी सन्धि पत्र पर वाटसन ने हस्ताक्षर करने से इन्कार कर दिया अतः क्लाइव ने वाटसन के जाली हस्ताक्षर करके अमीचन्द को धोखा दिया। इस प्रकार षड्यन्त्र पूरा हो गया।

नवाब सिराजुद्दौला बड़ी दुविधाजनक स्थिति में था। उसके अनेक सलाहकार, सेनापति तथा दरबारी अंग्रेजों के साथ मिल गए थे। फ्रांसीसियों ने नवाब को इस षड्यन्त्र के प्रति सचेत किया था, लेकिन नवाब कोई दृढ़ कदम उठाने में असमर्थ था। इतिहासकारों का मत है कि सिराजुद्दौला को इस षड्यन्त्र के विषय में पता चल गया था, परन्तु उसने कोई भी दृढ़ कार्यवाही नहीं की। आर.सी. मजूमदार के अनुसार, “यदि नवाब ने शीघ्रता से कार्य करके मीर जाफर को बन्दी बना लिया होता तो अन्य षड्यन्त्रकारी स्वयं ही आतंकित हो जाते तथा षड्यन्त्र पूर्ण रूप से असफल हो गया होता, लेकिन नवाब के साहस ने उसका साथ छोड़ दिया। किसी सख्त कार्यवाही के स्थान पर वह स्वयं मीर जाफर से भेंट करने उसके निवास पर गया और अलीवर्दी के नाम दयनीय मिन्नतें की। “

प्लासी के युद्ध की घटनाएँ :-

युद्ध प्रारम्भ करने के लिए क्लाइव ने बहाना भी ढूंढ निकाला। उसने नवाब पर अलीनगर की सन्धि को भंग करने तथा बंगाल में अंग्रेजों पर हो रहे अत्याचारों का आरोप लगाया। 22 जून, 1757 को क्लाइव की सेनाएँ प्लासी पहुँच गईं। 23 जून, 1757 को प्रातः लड़ाई प्रारम्भ हो गयी। नवाब के सेनापति मीर जाफर तथा दुर्लभ राय युद्ध क्षेत्र में तटस्थ खड़े रहे। विश्वासघाती सेनापतियों के कारण नवाब के सैनिकों का मनोबल गिरा तथा ये युद्ध क्षेत्र से भाग खड़े हुए। नवाब सिराजुद्दौला भी अपनी प्राणरक्षा के लिए युद्धभूमि से भाग खड़ा हुआ। युद्धभूमि से भागकर वह मुर्शिदाबाद पहुँचा तथा उसके बाद पटना पहुँचा, परन्तु उसे बन्दी बना लिया गया। बाद में मीरजाफर के पुत्र मीरन ने उसकी हत्या करवा दी। इस प्रकार अंग्रेजों ने षडयन्त्र के द्वारा एक बड़ी सफलता प्राप्त की।

प्लासी के युद्ध के परिणाम :-

प्लासी के युद्ध के निम्नलिखित महत्वपूर्ण परिणाम हुए-

  1. बंगाल पर अंग्रेजों का नियन्त्रण :- प्लासी के युद्ध के पश्चात् बंगाल वास्तव में अंग्रेजों के आधिपत्य में आ गया। मीर जाफर को बंगाल का नवाब बना दिया गया, परन्तु वह नाममात्र का नवाब था उसका अंग्रेजों पर कोई नियन्त्रण नहीं रहा। कम्पनी ने जब चाहा, तब नवाब के पद पर अपने अनुकूल व्यक्ति को बिठाने में सफलता प्राप्त की।
  2. भारत में साम्राज्य विस्तार का मार्ग प्रशस्त :- प्लासी की घटना से ‘फूट डालो और राज्य करो’ की नीति का अविर्भाव हुआ। बंगाल में अंग्रेजों की विजय का मार्ग खुल गया। इसके पश्चात् शेष भारत में भी उनके साम्राज्य विस्तार का मार्ग प्रशस्त हुआ।
  3. कम्पनी के कर्मचारियों को उपहार :- मीर जाफर ने नवाब बनने के पश्चात् कम्पनी के कर्मचारियों को उनकी सहायता के बदले अनेक उपहार प्रदान किये। क्लाइव को पुरस्कार में 2,34,000 पौण्ड, वाटसन को 80,000 पौण्ड, गवर्नर ड्रेक को 31,500 पौण्ड तथा अन्य अंग्रेज अधिकारियों को योग्यतानुसार पुरस्कार मिले। बंगाल की लूट का एक बड़ा हिस्सा सीधे क्लाइव की जेब में गया। इन पुरस्कारों के परिणामस्वरूप नवाब का राजकोष रिक्त हो गया।
  4. कम्पनी को प्रदेश प्राप्ति :- अंग्रेजों को कलकत्ता के समीप 24 परगना की जागीर मिली जिसका क्षेत्रफल 880 वर्ग मील तथा तथा जिसकी वार्षिक आय 1,50,000 पौण्ड थी।
  5. बंगाल, बिहार और उड़ीसा में व्यापार की स्वतन्त्रता :- अंग्रेजों को बंगाल, बिहार और उड़ीसा में निःशुल्क व्यापार की पूर्ण स्वतन्त्रता मिली। शोरे के व्यापार का एकाधिकार कम्पनी को प्राप्त हुआ। कम्पनी ने अपनी टकसाल स्थापित की तथा सिक्का चलाया। कम्पनी के कर्मचारियों ने अगले आठ वर्षों में लगभग 15 करोड़ से अधिक का व्यापारिक लाभ कमाया।
  6. आंग्ल-फ्रांसीसी संघर्ष पर प्रभाव :- आंग्ल-फ्रांसीसी संघर्ष में अंग्रेजों ने बंगाल से प्राप्त धन एवं जन का उपयोग फ्रांसीसियों के विरुद्ध किया। प्लासी के मैदान में अंग्रेजों की विजय से फ्रांसीसी सैनिकों पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ा। इससे अंग्रेजों की विजय और आसान हो गयी। प्लासी के युद्ध ने फ्रांसीसियों के भाग्य के द्वार सदा के लिये बन्द कर दिये ।
  7. बंगाल का आर्थिक दोहन :- प्लासी के युद्ध के पश्चात् कम्पनी के कर्मचारियों ने बंगाल का आर्थिक दोहन प्रारम्भ किया। इस युद्ध के पश्चात् बंगाल को इतना लूटा गया कि सबसे समृद्ध प्रदेश सबसे निर्धन प्रदेश बनकर रह गया। भारत से धन का निष्कासन आरम्भ हुआ।
  8. यूरोपीय प्रतिद्वंद्वियों का उन्मूलन :- बंगाल में अंग्रेजों की सत्ता स्थापना के साथ ही डच तथा फ्रांसीसी प्रतिद्वंद्वियों का उन्मूलन हो गया। ये प्रतिद्वन्द्वी अंग्रेजों की शक्ति का सामना करने में सदा के लिए असमर्थ हो गये। भारत में फ्रांसीसियों के पैर उखड़ गये। इस युद्ध के बाद अंग्रेजों ने 1759 में बेदरा के युद्ध में डचों को परास्त कर बंगाल में उनके प्रभाव का अन्त कर दिया।
  9. मुगल प्रतिष्ठा एवं प्रभुत्व को आघात :- प्लासी के युद्ध से पूर्व तक बंगाल के नवाब मुगल सम्राट के नाम से ही शासन करते थे, परन्तु अंग्रेजों ने मीर जाफर को नवाब बनाकर मुगल प्रतिष्ठा और प्रभुत्व को धक्का पहुँचाया।
  10. क्लाइव के प्रभाव में वृद्धि :- इस युद्ध के पश्चात् क्लाइव की स्थिति में परिवर्तन हुआ। अभी तक औपचारिक रूप से वह केवल मद्रास कौंसिल का एक अधीनस्थ कर्मचारी था, परन्तु प्लासी की विजय के पश्चात् वह बंगाल का सर्वाधिक प्रभावशाली अंग्रेज अधिकारी बन गया। जून 1758 में कलकत्ता कौंसिल ने क्लाइव को बंगाल का गवर्नर बनाकर उसके राजनीतिक महत्व को स्वीकार किया।

नवाब मीर जाफर (1757 1760) :-

प्लासी के युद्ध के परिणामस्वरूप बंगाल में अंग्रेजों की प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई। मीर जाफर 28 जून, 1757 को नवाब तो बन गया, परन्तु बंगाल में अंग्रेजों की सर्वोच्चता स्थापित हो गई। मीर जाफर द्वारा प्लासी के युद्ध में दिए गए वचनों के अनुसार अंग्रेजों को काफी धन दिया जाना था, परन्तु उत्तराधिकार में उसे रिक्त कोष मिला था।

अंग्रेज नवाब पर धन देने हेतु बराबर दबाव डाल रहे थे। इन परिस्थितियों में अपनी आन्तरिक तथा बाह्य कठिनाइयों से निपटने के लिए मीर जाफर ने डचों की मदद चाही। 1759 में डचों ने बंगाल पर आक्रमण किया, लेकिन बेदरा के युद्ध में डच पराजित हुए। “बेदरा का युद्ध अंग्रेजी सत्ता को बंगाल में स्थापित करने में प्लासी के युद्ध से अगला कदम था।” इस युद्ध के परिणामस्वरूप डचों की महत्वाकांक्षाओं पर हमेशा के लिए रोक लग गई।

मीर जाफर को नवाब पद से हटाया जाना :- 25 फरवरी, 1760 को क्लाइव वापस इंग्लैण्ड चला गया तथा हॉलवेल अस्थायी गवर्नर बना हॉलवेल मीर जाफर को नवाब पद से हटाना चाहते थे । कम्पनी के गवर्नर तथा कौंसिल सभी इस परिवर्तन के इच्छुक थे तथा परिवर्तन से लाभ की गुंजाइश थी। अतः मीर जाफर के दामाद मीर कासिम को नवाब बनाना निश्चित किया गया। हालवैल के पश्चात वैसिटार्ट (1760 1765) ने मीर कासिम के समक्ष यह सुझाव रखा कि यदि वह कम्पनी के सेना के व्यय हेतु बंगाल का कुछ भू-भाग दे सके तो उसे नवाब बनाया जा सकता है। मीर कासिम ने इस पर सहमति दी। 27 सितम्बर, 1760 की सन्धि के अनुसार मीर कासिम ने नवाब पद के बदले में मीर जाफर द्वारा बकाया राशि को चुकाना तथा बर्दवान, मिदनापुर, चटगाँव के तीन जिले देना स्वीकार किया। मीर जाफर को नवाबी छोड़ने को बाध्य किया गया। मीर जाफर को पेंशन दे दी गयी।