बक्सर का युद्ध (1764) (Battle of Buxar) :-
अंग्रेजों की पटना स्थित फैक्टी के प्रमुख, एलिस ने नगर पर कब्जा करने की अपनी असफल कोशिश के द्वारा इस विवाद को हवा दी। 1763 की गर्मियों भर मीर कासिम की सेनाओं के खिलाफ निरन्तर अभियान चला और एक के बाद एक हमलों में नवाब की पराजय हुई। वह अवध भाग गया और वहाँ उसने अवध के नवाब सुजा-उद-दौला, मुगल बादशाह शाह आलम के साथ गठजोड़ किया। 22 अक्टूबर, 1764 को इन तीनों की संयुक्त सेना का बक्सर में अंग्रेजों से युद्ध हुआ। अंग्रेजी कमाण्डर मेजर हेक्टर मुनरों ने इस संयुक्त सेना को करारी शिकस्त दी। मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय ने समर्पण कर दिया। अवध पर कम्पनी का कब्जा हो गया और नवाब को रोहिल्लों के यहाँ शरण लेनी पड़ी। सम्मान और आन-बान के साथ शासन करने वाला नवाब मीर कासिम भगोड़ा बना और 1777 में दिल्ली में अत्यन्त गरीबी की हालत में उसकी मृत्यु हुई।
बक्सर युद्ध के कारण :-
बक्सर युद्ध के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे-
- मीर कासिम का शासन (1760 1763) :- मीर कासिम मीर जाफर की तुलना में अधिक योग्य तथा दूरदर्शी नवाब था। मीर जाफर के शासनकाल में रंगपुर एवं पूर्णिया के फौजदार के रूप में उसे प्रशासकीय अनुभव प्राप्त था। वह अंग्रेजों के वास्तविक उद्देश्यों को समझता था। उसने सन्धि की शर्तों का पालन किया तथा प्रशासन में व्याप्त दोषों को शीघ्र ही दूर करने का प्रयास किया। उसने अपनी राजधानी मुर्शिदाबाद जो कलकत्ता के निकट थी, के स्थान पर मुंगेर को बनाया। लेकिन वह समझ गया कि अंग्रेजों का बंगाल में प्रभुत्व रहते उसके प्रशासकीय सुधार व्यर्थ हैं। अतः उसने बंगाल में अंग्रेजों का प्रभुत्व समाप्त करने का प्रयत्न किया। उसका यही प्रयत्न आगे चलकर संघर्ष का कारण बना।
- मीर कासिम तथा अंग्रेजों के मध्य संघर्ष के कारण :- मीर कासिम को अंग्रेजों से यह शिकायत थी कि वे प्रशासन में अनुचित हस्तक्षेप करते हैं। दस्तक के दुरुपयोग का स्वरूप अब व्यापक हो गया था। डा. ताराचन्द के अनुसार अंग्रेज कर्मचारी व्यापारिक वस्तुओं पर चुंगी नहीं देते थे और भारतीयों की अपेक्षा सस्ता माल बेचने की स्थिति में थे। इसके अलावा कम्पनी के कर्मचारी भारतीय व्यापारियों से रिश्वत लेकर उनके माल को अपना माल बताकर चुंगी से मुक्त करवा देते थे नवाब चाहता था कि इस विषय में कम्पनी के अधिकारियों से कोई निश्चित समझौता हो जाए, लेकिन अंग्रेज इसके लिए तैयार नहीं थे। परिणामस्वरूप मीर कासिम ने 1762 में भारतीय व्यापारियों से भी सारे आन्तरिक कर लेना बन्द कर दिया। इससे अंग्रेजों को कोई प्रत्यक्ष नुकसान नहीं था, लेकिन उनके विशेषाधिकारों को अवश्य चोट पहुँची थी। अतः कलकत्ता कौंसिल ने मीर कासिम से भारतीय व्यापारियों पर पुनः कर लगाने की माँग की नवाब द्वारा इस माँग को अस्वीकार किया जाना झगड़े का प्रमुख कारण बना। अंग्रेजों ने मीर जाफर की भाँति ही मीर कासिम को भी नवाब पद से हटाने का निश्चय किया तथा युद्ध की तैयारियाँ प्रारम्भ कर दी।
- मीर कासिम की पराजय तथा पलायन :- मीर कासिम अंग्रेजों के इरादों तथा युद्ध की तैयारियों से अच्छी तरह परिचित था अपना पक्ष मजबूत बनाने के लिए उसने अपनी सेना को प्रशिक्षित करने के लिए फ्रांसीसियों को नियुक्त किया। पटना फैक्ट्री के अंग्रेज अधिकारी एलिस और नवाब के मध्य मनमुटावों के कारण तनाव में वृद्धि हुई। मीर कासिम द्वारा एक अंग्रेज अधिकारी को बन्दी बनाये जाने के विरोध में एलिस ने पटना पर आक्रमण कर उसे लूट लिया। जुलाई 1763 में अंग्रेजों तथा मीर कासिम के बीच युद्ध आरम्भ हो गया। अंग्रेजों ने कटवा, मुर्शिदाबाद, गिरया, मुंगेर आदि स्थानों पर मीर कासिम की सेना को पराजित किया। भाग्य मीर कासिम के साथ नहीं था। विवशता में वह भागकर अवध पहुँचा। मीर कासिम के बंगाल और बिहार को छोड़ते ही अंगेजों ने मीर जाफर को पुनः बंगाल का नवाब बना दिया। कम्पनी को पुरानी सुविधाएँ पुनः मिल गई।
- मीर कासिम का अवध के नवाब तथा मुगल सम्राट से समझौता :- पटना से भागकर मीर कासिम अवध के नवाब शुजाउद्दौला की शरण में चला गया। यहीं उसकी मुलाकात मुगल सम्राट शाह आलम से हुई। मीर कासिम ने दोनों से ही बंगाल की नवाबी पुनः प्राप्त करने के लिए सहायता की याचना की तीनों शासकों ने अपने-अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष करने का निश्चय किया। अवध के नवाब शुजाउद्दौला की दृष्टि मीर कासिम के विशाल कोष पर थी, वह मीर कासिम को सहायता देने को तैयार हो गया। सरकार और दत्ता के अनुसार, “पिछले तीन दशकों से अवध के नवाब अपने प्रभाव में वृद्धि करने के उद्देश्य से बंगाल की ओर गिद्ध दृष्टि लगाये थे। इसी कारण शुजाउद्दौला द्वारा अपने एक बन्धु शासक को उसके सिंहासन पुनः प्राप्त करने में सहायता करना अपने व्यक्तिगत लाभ की भावना से अधिक था।” मुगल सम्राट शाह आलम अपनी प्रभुसत्ता पुनः स्थापित करना चाहता था ।
बक्सर युद्ध की घटनाएँ :-
तीनों शासकों ने अपनी-अपनी सेनाओं के साथ बिहार की सीमाओं में प्रवेश किया। अंग्रेज सेना भी मेजर कार्नक के नेतृत्व में मार्च 1764 में ही बक्सर के मैदान में पहुंच गई। 23 अक्टूबर, 1764 को बक्सर के मैदान में युद्ध प्रारम्भ हुआ। यह युद्ध प्रातः 9 बजे प्रारम्भ हुआ और दोपहर 12 बजे के पूर्व ही समाप्त हो गया। शाह आलम, सिराजुद्दौला तथा मीर कासिम की सेनाएँ अंग्रेजों की गोलाबारी के आगे टिक नहीं पाई तथा उन्हें पराजित होना पड़ा। मीर कासिम को भागना पड़ा। 12 वर्ष तक इधर-उधर भटकने के बाद 1777 में उसकी मृत्यु हो गई।
बक्सर के युद्ध के परिणाम तथा महत्व :-
बक्सर के युद्ध में अंग्रेजों की विजय कुछ हद तक मराठों की पानीपत में पराजय (1761) के कारण सम्भव हो सकी। पानीपत के पूर्व मराठे मुगल साम्राज्य के दावेदार थे और कम्पनी के प्रतिद्वंदी । पानीपत की पराजय के कारण मराठे विरोध करने की स्थिति में ही नहीं रहे। जब तक मराठे पुनः शक्तिशाली हुये तब तक अंग्रेजों की स्थिति इतनी मजबूत बन गयी थी कि उनका कोई भी कुछ भी बिगाड़ नहीं सकता था।
बक्सर युद्ध के परिणाम प्लासी युद्ध के मुकाबले अधिक स्थायी महत्व के थे अंग्रेज इतिहासकार स्वीकार करते हैं कि वास्तव में भारत में अंग्रेज राज्य बक्सर के युद्ध से प्रारम्भ हुआ। बक्सर युद्ध के विषय में बूम ने लिखा है, “इस प्रकार बक्सर का प्रसिद्ध युद्ध समाप्त हुआ। जिस पर भारत का भाग्य निर्भर था और जो जितनी बहादुरी से लड़ा गया, परिणामों की दृष्टि से उतना ही महत्वपूर्ण था ।”
बक्सर युद्ध के निम्नलिखित प्रमुख परिणाम हुए-
- अंग्रेजों की धाक सम्पूर्ण भारत में स्थापित हो गई। अंग्रेजों के दिल्ली विस्तार का मार्ग खुल गया।
- अंग्रेजों की सैनिक श्रेष्ठता तथा संगठन की उच्चता सिद्ध हो गई। उत्तर भारत के सबसे अधिक शक्तिशाली अवध के नवाब शुजाउद्दौला की पराजय से अवध पूर्ण रूप से अंग्रेजों के अधीन हो गया।
- अंग्रेजों की बंगाल और बिहार में स्थिति दृढ़ हो गई। बंगाल व बिहार की दीवानी अंगेजों को मिली। बंगाल के नवाब का अधिकार समाप्त कर दिया गया तथा वह अब नाममात्र का शासक रह गया।
- मुगल सम्राट शाह आलम अंग्रेजों पर आश्रित हो गया। वह नाममात्र के अधिकार सुरक्षित रखकर किसी भी प्रकार का समझौता करने को तैयार हो गया।
- आर्थिक दृष्टि से बंगाल व बिहार को अपार क्षति पहुँची। अंग्रेजों ने बंगाल और बिहार का आर्थिक शोषण और तेजी के साथ किया। अंग्रेजों के प्रशासनिक कार्यों से बंगाल की राजस्व व्यवस्था, उद्योग-धन्धे और व्यापार को क्षति पहुँची। इस प्रकार प्लासी के युद्ध ने जिस प्रक्रिया को प्रारम्भ किया था, उसे बक्सर के युद्ध ने पूरा किया। इस युद्ध ने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव को भारत में दृढ़ता से जमा दिया।
- मीर जाफर का पुनः नवाब बनाया जाना (1763-1765) :- मीर कासिम से युद्ध छिड़ने के तुरन्त बाद अंग्रेजों ने मीर जाफर को पुनः नवाब घोषित किया। उन्होंने मीर जाफर से अनेक महत्वपूर्ण सुविधाएँ प्राप्त की।
- नवाब नजीमुद्दौला :- मीर जाफर की मृत्यु के बाद कम्पनी ने मीर जाफर के पुत्र नजीमुद्दौला को नवाब बनाया। उसे 20 फरवरी, 1765 की सन्धि द्वारा अंग्रेजों की शर्तों को मानना पड़ा। शासन का समस्त भार अंग्रेजों द्वारा नामजद नायब नाजिम मुहम्मद रजा खाँ के हाथों में था। इस प्रकार कठपुतली नवाब की स्थापना की गई। धीरे-धीरे कम्पनी ने बंगाल की सेना तथा वित्तीय व्यवस्था आदि पर नियन्त्रण स्थापित किया। इसके बदले बंगाल के नवाब को 53 लाख रुपये वार्षिक स्वीकृत किया गया। कम्पनी के कर्मचारियों की धन लोलुपता बढ़ती जा रही थी। बंगाल की स्थिति अत्यधिक दयनीय हो गयी थी।