वेद क्या हैं? परिचय, महत्त्व एवं प्रकार

वेद क्या हैं?

वेद क्या हैं? इसका अर्थ वेद शब्द जो “ विद्” धातु से निष्पन्न है, से मिलता है| जिसका अर्थ है ज्ञान, विचार, सत्ता एवं लाभ। “ज्ञान” का ही दूसरा नाम वेद है। यह वह ज्ञान है जो ब्रह्माण्ड के विषय में सभी विचारों का स्रोत है, जो सदा अस्तित्व में रहता है और जो सभी कालों में मनुष्य को उपयोगी वस्तुओं की प्राप्ति और उसके उपयोग के उपाय बताता है। मनुष्य के जीवन को शुभ संस्कारों द्वारा सुसंस्कृत करने के लिए ऋषियों द्वारा अनुभूत ज्ञान वेदों में सुरक्षित है। जीवन के लिए आवश्यक ज्ञान वेदों से प्राप्त है।

वेदों का महत्त्व

विश्व साहित्य एवं संस्कृति के इतिहास में वेदों का स्थान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इनकी दृढ़ आधारशिला पर भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता का विशाल एवं भव्य भवन प्रतिष्ठित है। ये संसार के प्राचीनतम एवं विशाल ग्रन्थ हैं। प्राचीन भारतीय ऋषियों को जो दिव्य अनुभुति हुई, वही वेद मन्त्रों के रूप में अभिव्यक्त हुई।

इन मन्त्रों में विभिन्न देवताओं की स्तुतियाँ, ज्ञान-विज्ञान, कर्मकाण्ड, दर्शन, आयुर्वेद, वास्तुकला आदि सभी विद्याएँ समाविष्ट हैं। भारतीय विचारधारा पर वेदों का व्यापक प्रभाव है। सभी भारतीय दर्शन वेदों से अनुप्राणित हैं। वेदों से उच्चकोटि की नैतिक शिक्षा तो मिलती ही है, इनमें श्रेष्ठ मानवीय मूल्यों के दर्शन होते हैं। आधुनिक विज्ञान के प्राचीनतम बीज भी वेदों में उपलब्ध होते हैं।

वेदों का आविर्भाव

वेद ऋषियों द्वारा दृष्ट मन्त्रों का संग्रह है। यह बहुत विशाल है। वेद चार हैं- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद। प्राचीन भारतीय परम्परा के अनुसार चारों वेद परमेश्वर से प्रकट हुए किन्तु आधुनिक युग में साहित्य का इतिहास लिखने वाले विद्वानों ने वेदों के आविर्भाव के काल के विषय में पर्याप्त छान-बीन की है। अधिकांश देशी तथा विदेशी विद्वानों ने एकमत से कहा है कि वेद अति प्राचीन ग्रन्थ हैं।

किन्तु इनका रचना-काल सर्वसम्मति से निर्धारित नहीं हुआ है। इस प्रसंग में विभिन्न विदेशी विद्वानों ने अपने-अपने मत प्रकट किये हैं। प्रायः इनकी दृष्टि में वेदों का आविर्भाव काल ई० पूर्व 3000 से 1000 वर्ष तक माना गया है। लोकमान्य तिलक ने वेदों को ईसा से छः हजार वर्ष पूर्व की रचना माना है। फिर भी यह तथ्य निर्विवाद है कि ऋग्वेद सम्पूर्ण विश्व साहित्य में प्राचीनतम ग्रन्थ है।

वेदों का विषय

वेदों में मन्त्रों का संकलन है। कुछ मन्त्र छन्दोबद्ध एवं कुछ गद्यात्मक हैं। छन्दोबद्ध मन्त्रों को “ऋक् ” कहते हैं। “ऋक्” को ऋचा भी कहते हैं। इसके द्वारा देवताओं की अर्चना की जाती है। जिस वेद में ऋचाओं का संकलन है उसे ऋग्वेद कहा गया है। ये ही मन्त्र जब गेय होते हैं तब उन्हें ” साम” कहा जाता है।

सामों के संकलन को “सामवेद” कहा जाता है। गद्य-प्रधान वेद को यजुर्वेद कहते हैं, जो यज्ञों के लिए प्रयुक्त होता है। स्तवन, गायन और यजन इन तीन प्रमुख विषयों के कारण क्रमशः ऋग्वेद, सामवेद तथा यजुर्वेद का विभाजन किया गया है। इन्हें संयुक्त रुप से वेदत्रयी कहते हैं। जिन मन्त्रों का संग्रह अथर्वा ऋषि ने किया वे अथर्ववेद के नाम से विख्यात हैं। अथर्ववेद में विभिन्न विषय वर्णित हैं जिनमें लोकाचार, भैषज्य आदि लोक-विधाओं का भी संग्रह है।

वेदों के प्रकार

वेदों को निम्नलिखित चार भागों में विभाजित किया गया है-

  1. ऋग्वेद
  2. सामवेद
  3. यजुर्वेद
  4. अथर्ववेद

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