वाकाटक राजवंश क्या है? इसका इतिहास एवं प्रमुख राजा

वाकाटक राजवंश

वाकाटक राजवंश भारत पर राज्य करने वाला एक स्थानीय शक्ति राजवंश था | वाकाटक प्रायः सातवाहनों के बाद भारत में आये | इन्होने भारत के दक्कन पर ढाई शताब्दियों से भी अधिक समय तक राज्य किया | पुराणों में वाकाटकों का विन्ध्यक के नाम से उल्लेख मिलता है, जो कि उत्तर भारत के गुप्तों के समकालिक थे | वाकाटक राजवंश के ब्राह्मण विष्णुवृद्ध गोत्र से सम्बंधित थे | जिन्होंने बहुत से यज्ञ अनुष्ठान भी किये थे|

वाकाटकों द्वारा तात्कालिक ब्राह्मणों को एक बड़ी संख्या में भूमि-अनुदान पत्र जारी किए थे | जिनकी मदद से आज हमें वाकाटकों के इतिहास को जानने में अत्यधिक मदद मिली|

वाकाटक प्रायः ब्राह्मण थे और उन्होंने तात्कालिक समाज में ब्राह्मणवाद को बढ़ावा देने के साथ-साथ बौद्ध धर्म का संरक्षण भी किया, जो बाद में सांस्कृतिक रूप से वाकाटक राज्य में ब्राह्मण वादी विचार धारा और सामाजिक सस्थाओं को प्रसारित करने का एक जरिया बने | इन्होने प्रायः गुप्तों, पद्मावती के नागाओं, कर्नाटकों के कदम्बों और आन्ध्र के विष्णुकुण्डीनों के साथ वैवाहिक गठबंधन किये |

वाकाटक राजवंश की कला एवं साहित्य –

  • इस राजवंश ने भारतीय कला, संस्कृति और साहित्य को संरक्षण देने के साथ ही भारतीय संस्कृति के निर्माण में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया है |
  • वाकाटक राजवंश के शासन काल में ही विश्व प्रसिद्ध विरासत स्थलों बौद्ध विहार और अजंता की गुफाओं आदि जैसे चैत्यों का निर्माण किया गया |
  • इनका निर्माण वाकाटक राजा हरिसेन के संरक्षण में किया गया, जिन्हें पत्थरों को काट कर बनाया गया था |
  • वाकाटक राजा प्रवरसेन -ii (सेतुबंधकाव्य के लेखक) और सर्वसेन (हरिविजय के लेखक) प्राकृत में प्रसिद्ध अनुकरणीय कवि थे |
  • इनके शासन के दौरान, वैदरभारती संस्कृत में एक विकसित शैली थी | जिसकी कालीदास, दण्डिन, और बाणभट्ट आदि जैसे महान कवियों ने प्रसंसा की है|

वाकाटक राजवंश के प्रमुख शासक –

विन्ध्यशक्ति (शासन काल 250 से 270 सीई) –

  • विन्ध्यशक्ति वाकाटक राजवंश का प्रथम शासक एवं राजवंश का संस्थापक था|
  • इसने लगभग 96 वर्ष तक दक्कन पर शासन किया था|
  • इसका नाम देवी के नाम से लिया गया था|
  • इस राज वंश के उत्पत्ति में कोई भी तथ्य ज्ञात नहीं है|
  • अजंता की गुफा (xvi) के शिलालेख में वाकाटक राजवंश को एक द्विज के रूप उल्लेखित किया गया है|
  • इसकी सैन्य शक्ति बहुत ही मजबूत थी|जिस कारण इनकी सैन्य उपलब्धियों के लिए उनकी प्रसंसा की जाती है|

प्रवरसेन प्रथम (शासन काल 270 से 330 तक) –

  • प्रवरसेन प्रथम विन्ध्यशक्ति का पुत्र था|
  • इनको सम्राट, धर्ममहाराज और हरीतपुत्र की उपाधियाँ प्राप्त थीं|
  • इसके साम्राज्य में उत्तरी भारत और दक्कन का एक बड़ा हिस्सा भी सामिल था |
  • इन्होने अश्वमेध, वाजपेय जैसी यज्ञ एवं अनुष्ठानों का संचालन प्रारंभ किया |
  • यह वाकाटकों की वास्तविक शक्ति एवं महानता का संस्थापक था|
  • इसने अपने साम्राज्य को दक्षिण की विदर्भ और दक्कन के आस-पास के एक बड़े क्षेत्र में विस्तारित किया, जिसमें कंचनक (आधुनिक नचना) को अपनी राजधानी बनाया|
  • इनके पुत्र गौतमीपुत्र ने नागा राजवंश के राजा भवनागा की बेटी से शादी कर ली| जिससे इन दोनों के बीच में एक महान राजनीतिक संगठन बन गया| परिणामतः इनकी सैन्य शक्ति और भी मजबूत हो गयी |
  • इन्होने अपने वैवाहिक गठबन्धनों एवं उनकी शैन्य शक्ति का उपयोग उसने अपनी साम्राज्य सीमा बढ़ाने में किया |जिससे इनका साम्राज्य बुंदेलखण्ड से लेकर दक्षिण में हैदराबाद तक विस्तृत हो गया|
  • युद्धों को जितने बाद उन्होंने अश्वमेध और वाजपेय यज्ञ यज्ञ कराया और इसके बाद उन्होंने “सम्राट” और अन्य राजाओं ने “महाराजा” की उपाधि धारण की|
  • इसके बाद में उन्होंने पद्मावत नागा के राजाओं के साथ भी युद्ध किया |
  • पुराणों और कथाओं के अनुसार इनके चार पुत्र थे और संभवतः इनका साम्राज्य उनके पुत्रों के बीच में ही विभाजित हो गया|
  • राजा प्रवरसेन की मृत्यु के बाद वाकाटक राजवंश दो भागों में विभाजित हो गया –
    1. प्रावरपुर-नन्दिवर्धन राजवंश
    2. वत्सगुलाम राजवंश

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