महात्मा गाँधी का जीवन परिचय-Mahatma Gandhi


महात्मा गाँधी प्रारंभिक जीवन :-

भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी महात्मा गाँधी का जन्म गुजरात के एक तटीय नगर पोरबंदर नामक स्थान पर 2 अक्टूबर 1869 में हुआ था | इनका पूरा नाम मोहनदास करमचन्द गाँधी था | इन्हें भारत के आजादी में महान योगदान होने के कारण इन्हें राष्ट्रपिता की उपाधि प्राप्त हुई | महात्मा गाँधी भारत की हिन्दू सनातन धर्म की पंसारी जाति से सम्बन्ध रखते थे |
इनके पिता करमचन्द गाँधी ब्रिटिश सरकार की एक छोटी सी रियासत(पोरबंदर) के दीवान थे | इनकी माता का नाम पुतली बाई था जो कि एक बहुत ही धार्मिक स्वाभाव की महिला थी | महात्मा गाँधी जी इनकी सबसे छोटी संतान थे | ये अपने छोटे से परिवार में रहते थे जिसमें उनके माता-पिता, चाचा-चाची और उनके सगे एवं चचेरे भाई बहन थे |

इनकी माता बहुत ही धार्मिक स्वाभाव की महिला थी जिनका इनके व्यक्तित्व पर बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ा | इन्होने अपनी माता से हिन्दू सनातन धर्म के बारे में जाना | अपनी धार्मिक स्वाभाव की माता की देख-रेख एवं धार्मिक प्रवृत्ति का प्रभाव महात्मा गाँधी पर बहुत ही गहरा पड़ा जिसका प्रयोग महात्मा गाँधी ने अपने जीवन में राजनैतिक कार्य के दौरान किया |

नाममोहनदास करमचन्द गाँधी
जन्म2 अक्टूबर 1969, पोरबंदर, गुजरात
पिता का नामकरमचन्द गाँधी
माता का नामपुतलीबाई
पत्नी का नामकस्तूर बाई मकनजी
संतानेहरिलाल, मणिलाल, रामदास, देवदास
शिक्षायुनिवर्सिटी कॉलिज, लंदन
निधन30 जनवरी 1948 
निधन की वजहगोली मार के हत्या
हत्यारे का नामनाथूराम गोडसे
राजनीतिक पार्टीभारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
कार्यसविनय अवज्ञा आन्दोलन, बंधुआ टैक्स विरोध, चंपारण और खेड़ा का किसान आन्दोलन, असहयोग आन्दोलन, स्वराज और नमक सत्याग्रह आन्दोलन, भारत छोड़ो आन्दोलन इत्यादि
सिद्धांतसत्य, अहिंसा, शाकाहारी, ब्रह्मचर्य, सादगी, विश्वास
प्रकाशित प्रमुख पत्रिकाएँनवजीवन, हरिजन, इंडियन ओपिनियन, यंग इंडिया 
प्रकाशित प्रमुख पुस्तकेंहिन्द स्वराज, दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह का इतिहास, सत्य के प्रयोग (आत्मकथा), गीता माता, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय, महात्मा गांधी के विचार, मेरे सपनों का भारत

महात्मा गाँधी प्रारंभिक शिक्षा :-

महात्मा गाँधी की प्रारंभिक शिक्षा पोरबंदर में ही हुई | ये अपनी शिक्षा के दौरान गणित विषय में काफी कमजोर थे | अपने विद्यालयी दिनों में महात्मा गाँधी बहुत ही शर्मीले और कम बुद्धि वाले छात्र हुआ करते थे | इसके बाद सात वर्ष की उम्र में उनका परिवार काठियावाड की रियासत राजकोट में आकर बस गया |

यहाँ पर उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा पूर्ण की और हाईस्कूल में प्रवेश लिया | विद्यालय की गतिविधियाँ या परीक्षाओं के परिणाम से ऐसा कोई संकेत नहीं मिला कि जिससे यह अनुमान लगाया जा सके कि वे भविष्य में महान बनेंगे। लेकिन विद्यालय में घटी एक घटना से यह संदेश अवश्य मिला कि एक दिन यह छात्र आगे अवश्य जायेगा। हुआ यूं कि एक दिन स्कूल निरीक्षक विद्यालय में निरीक्षण के लिए आये हुए थे। कक्षा में उन्होंने छात्रों की ‘स्पेलिंग टेस्ट` लेनी शुरू की। मोहनदास शब्द की स्पेलिंग गलत लिख रहे थे, इसे कक्षाध्यापक ने संकेत से मोहनदास को कहा कि वह अपने पड़ोसी छात्र की स्लेट से नकल कर सही शब्द लिखें। उन्होंने नकल करने से इंकार कर दिया। बाद में उन्हें उनकी इस ‘मूर्खता` पर दंडित भी किया गया।

कम आयु में विवाह :-

मई 1883 में मात्र साढे 13 वर्ष की आयु में उनका विवाह 14 वर्ष की कस्तूर बाई मकनजी से कर दिया गया | इन्होने अपनी पत्नी का नाम छोटा करके कस्तूरबा कर दिया और लोग प्यार से उन्हें बा कहकर पुकारते थे | तब के समय में बचपन में शादी एक आम बात थी | जब तक कस्तूरबाई ने अपनी शिक्षा पूरी कर ली तब तक वे दोनों अलग-अलग अपने माता पिता के साथ रहे |

इंग्लैण्ड वकालत की पढाई के लिए गमन :-

तब के समय में हिन्दू लोग जाति व्यवस्था में विश्वास रखते थे | उनका मनना था कि कुछ लोग दूसरों से बेहतर होते हैं | तब हिन्दू समाज में मुख्यतः चार समूह थे; ब्राह्मण, क्षत्रिय, बनिया और शूद्र या अछूत जो सबसे गरीब और कमजोर थे | महात्मा गाँधी का परिवार व्यापारियों की जाति से सम्बंधित था |

जब महात्मा गाँधी 18 वर्ष के थे, तभी उनके परिवार ने उन्हें आगे की पढाई के लिए इंग्लैड भेजने का फैसला लिया | जब व्यापारी जाति के नेताओं को इसका पता चला, तो उन्होंने इसका विरोध किया क्योंकि तब तक उनकी जाति से कोई भी व्यक्ति कभी-भी विदेश में पढने के लिए देश से बहार नहीं गया था |

परन्तु महात्मा गाँधी अपनी जिद पर बने रहे और कहा के वह किसी भी हालत में विदेश पढने के लिए जाएँगे | जिसके बाद व्यापारी जाति के नेताओं न महात्मा गाँधी को व्यपारी जाति से बहार कर दिया और उन्होंने कहा के महात्मा गाँधी से कोई भी बात नहीं करेगा | इसके बाद महात्मा गाँधी किसी भी जाति का हिस्सा नहीं बने |

महात्मा गाँधी ने इंग्लैण्ड आते समय अपनी माता से वादा किया था कि वह मांस और मदिरा का सेवन नहीं करेंगे | उन्होंने अपनी माँ का वादा पूरा किया|हांलाकि उन्हें शाकाहारी बने रहने में बहुत ही परेशानी हुई क्योंकि वहां पर सभी लोग मांस खाते थे | पहले कुछ महीनों तक वह रोटी, दलिया, और कोको खाकर जीवित रहे | परन्तु बाद में उन्हें एक शाकाहारी रेस्तरां मिला जहाँ उन्हें अपना मन पसंद भोजन खाने को मिला |

महात्मा गाँधी तीन वर्ष तक इंग्लैण्ड में रहे और वकील बने | इसी बीच वहीँ महात्मा गाँधी को पैदल चलने की आदत पड़ी | वह लन्दन में हर जगह पैदल चलकर जाते थे | इस आदत से उन्होंने पैसे भी बचाए और अपनी अच्छी सेहत भी बरकरार रखी |

दक्षिण अफ्रीका में वकालत :-

1891 में महात्मा गाँधी इंग्लैण्ड से वापस अपने घर लौटे | घर आने की उनको बहुत ही ख़ुशी हुई परन्तु उन्हें एक बुरी खबर का सामना कारना पड़ा क्योंकि उनके घर आने से कुछ महीने पूर्व उनकी माता की मृत्यु हो गयी थी | इसके बाद महात्मा गाँधी ने भारत में एक वकील के रूप में कार्य किया परन्तु वे उसमें असफल रहे क्योंकि वह अंग्रेजी कानून जानते थे, लेकिन भारतीय कानून नहीं |

1893 एक केस को सँभालने के सिलसिले में उन्हें दक्षिण अफ्रीका भेजा गया | दक्षिण अफ्रीका में उन दिनों एक भारतीय का रहना आसान नहीं था | वहां के कुछ हिस्सों में, भारतीयों के पास न तो रहने के लिए कोई भी जगह थी और न ही अपनी जीविका चलाने के लिए कोई भी व्यवसाय था । दक्षिण अफ्ररीका में भारतीयों का रात में 9 बजे के बाद में टहलना वर्जित था।

इसके बाद महात्मा गाँधी एक दिन फर्स्ट क्लास के टिकट के साथ ट्रेन में सवार हुए । परन्तु इस यात्रा के दौरान उनके गोरे न होने के कारण उनको फर्स्ट क्लास डिब्बा छोड़ने को कहा गया । जब उन्होंने इसका विरोध किया तो उनको एक पुलिसकर्मी ने ट्रेन के डिब्बे से बहार फेंक दिया। जिस कारण उनको रात भर रेलवे स्टेशन पर बैठे रहना पड़ा । इससे महात्मा गाँधी को अपने जैसे ही बहुत से भारतीयों की स्थिति का पता चला और उन्होंने इस भेदभाव का प्रतिरोध लेने का फैसला लिया ।

अफ्रीका में सविनय अवज्ञा आन्दोलन :-

इस घटना का महत्मा गाँधी पर बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ा और घटना से टूटने के बजाय महात्मा गाँधी ने इसका विरोध करने का फैसला लिया। दक्षिण अफ्रीका में रंग के नाम पर हो रहे भेदभाव और भारतीय समाज पर हो रहे अत्याचारों को जड़ से ख़त्म करने का फैसला लिया ।

इसके बाद महात्मा गाँधी ने अफ्रीका में भारतीयों की स्थिति में सुधार लाने के प्रयास में जुट गए। इसके लिए उन्होंने अफ्रीका में ही अपने प्रथम आन्दोलन सविनय अवज्ञा आन्दोलन की शुरुआत की । जिसमें उन्होंने भारतीयों को वोट डालने और उनके सभी सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक अधिकारों को दिलाने की मांग की । महात्मा गाँधी ने सात सालों तक इसके लिए कड़ा परिश्रम किया । सात सालों के बाद गाँधी जी की कोशिश सफल हुई और दक्षिण अफ्रीका की सरकार समझौता करने के लिए मान गयी ।

बन्धुआ मजदूर टैक्स का विरोध :-

अपनी इस यात्रा के दौरान महात्मा गाँधी कई बार अफ्रीका में ही गिरफ्तार हुए । परन्तु उन्होंने कभी हर नहीं मानी । अफ्रीका के सरकार से मताधिकार का समझौता हो जाने के बाद अफ्रीका सरकार द्वारा भारतीय बंधुआ मजदूरों पर लगाए जाने वाले टैक्स का विरोध किया । जिससे अफ्रीका सरकार ने हार मानकर बंधुआ टैक्स को समाप्त कर दिया। इसके बाद महात्मा गाँधी 1914 को भारत लौट आए और इसके बाद भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अपना महत्त्व पूर्ण योगदान दिया ।

अफ्रीका से भारत वापसी :-

इसके बाद जब महात्मा गाँधी भारत लौटे, तब देश में ब्रिटिश साम्राज्य का शासन था । ब्रिटिश सरकार की नजर भारत की बहुमूल्य संपदा पर थी । ब्रिटिश सरकार ने भारत में उगने वाले मसलों, कपड़े, और अन्य सामान के भंडार पर कब्जा कर लिया । वह भारत से इन सभी उत्पादों को सस्ते दामों में खरीद लिया करते थे और बाद में फिर लोगों को उसी सामान को खरीदने के लिए लोगों को मजबूर करते थे ।

महात्मा गाँधी चाहते थे कि अंग्रेज सरकार भारत को, भारतीयों को वापस कर दे और भारत अपने देश पर खुद शासन करे । उन्होंने अफ्रीका से वापसी के बाद के शेष जीवन अपने इस लक्ष्य को हासिल करने में लगा दिया । उन्होंने एक ऐसे भारत के निर्माण का प्रयास किया जिसमें सभी लोग एक समान हो और कोई भी इस देश में अछूत न हो ।

भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष :-

महात्मा गाँधी 1914 को दक्षिण अफ्रीका से भारत लौट आये । तब भारत में ब्रिटिश शासन था । जिससे भारतीय बहुत ही परेशान थे। ब्रिटिश सरकार के राज्य करने की नीतीयाँ बहुत ही ख़राब थी और भारतीयों को बहुत ही प्रताडित करने वाली थी । महात्मा गाँधी ने भारतीयों की इस स्थिति को देखा तब उन्होंने भारत को आजाद कराने का फैसला लिया । उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की मदद से भारत को आजाद कराने का अपना संघर्ष जारी किया और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई |

महात्मा गाँधी का चंपारण और खेड़ा का किसान आन्दोलन का नेतृत्व :-

भारत के स्वतंत्रता के लिए महात्मा गाँधी ने अपनी सबसे बड़ी उपलब्धी 1918 में चंपारण और खेड़ा के किसान आन्दोलन में प्राप्त की | जिसमें ब्रिटिश सरकार खाद्य पदार्थो के लिए जरूरी फसलों के बजाय कम दामों पर भारतीय किसानों से जबरदस्ती नील की खेती करा रही थी | जिससे भारतीय किसान अत्यधिक गरीब हो गए |

इस प्रकार बिना खाद्य पदार्थों की खेती के कारण आये अकाल के कारण ब्रिटिश सरकार के शाही कोष खाली हो गए | जिसकी भरपाई के लिए अंग्रेज सरकार ने भारतीय किसानों पर बहुत से कर लगा दिए जिनका बोझ दिन प्रतिदिन बढता ही गया। जो भारतीय किसानों के लिए एक निराशजनक स्थिति थी | इस समस्या से महात्मा गाँधी बहुत ही प्रभावित हुए और उन्होंने इसका विरोध करने लिए महात्मा गाँधी ने बिहार के चम्पारण के बाद 1918 में गुजरात के खेड़ा में भारतीय किसानों का सबसे बड़ा आन्दोलन चलाया |

जिस कारण महात्मा गाँधी को लोगों में अशांति फ़ैलाने के जुर्म में ब्रिटिश पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया | जिसके विरोध में हजारों किसानों एवं भारतीय जनता ने मिलकर लोगों वे विरोध प्रदर्शन किये और गाँधी जी को बिना शर्त के रिहा करने की मांग की | जिसके बाद ब्रिटिश सरकार ने किसानों को अधिक क्षतिपूर्ति, खेती पर नियंत्रण, राजस्व में बढ़ोत्तरी को रद्द करना और इस संगृहीत करने वाले एक समझौते पर हस्ताक्षर किये |

असहयोग आन्दोलन :-

एक लम्बे समय से ब्रिटिश सरकार भारत की जनता पर अत्याचार एवं उसका शोषण कर रही थी | इस अत्याचार एवं शोषण से पीड़ित जनता ने महात्मा गाँधी के नेतृत्व में भारत का प्रथम जनांदोलन असहयोग आन्दोलन का प्रारंभ किया | इस आन्दोलन को मध्यम वर्गीय शहरी, किसानों, श्रमिकों एवं आदिवासियों का पूर्ण समर्थन मिला |

1914- 1918 यह समय प्रथम विश्व युद्ध का था जब ब्रिटिश सरकार के अधिकारी सर सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा रॉलेट एक्ट पारित किया गया | जिसमें ब्रिटिश सरकार ने प्रेस पर प्रतिबन्ध लगा दिया था और किसी भी संदेहजनक व्यक्ति को बिना किसी जाँच-पड़ताल के अनिश्चित काल के लिए कारावास डाल दिया जा सकता था | महात्मा गाँधी ने इस अधिनियम का बहुत ही विरोध किया | भारतीय जनता को इस अधिनियम (रॉलेट एक्ट) मुक्ती से दिलाने के लिए उन्होंने भारतीय जनता के बीच में एक जन अभियान चलाया | इस जन अभियान का समर्थन भारत की सम्पूर्ण जनता ने किया |

असहयोग आन्दोलन का औपचारिक रूप से प्रारंभ 1 अगस्त 1920 को हुआ था | इसके बाद में महात्मा गाँधी ने इसका प्रस्ताव भारतीय कांग्रेस को भेजा। इस प्रस्ताव को 4 सितम्बर 1920 कलकत्ता के अधिवेशन में स्वीकृत करते हुए भारतीय कांग्रेस ने इस आन्दोलन को अपना औपचारिक आन्दोलन स्वीकृत कर लिया | इस आन्दोलन के प्रारंभ होने के बाद में महात्मा गाँधी जी ने “केसर ए हिन्द” तथा जमुनालाल बजाज ने “रायबहादुर” की उपाधि त्याग दी|इसके साथ सी. आर. दास, मोतीलाल नेहरु, जवाहरलाल नेहरु, वल्लभ भाई पटेल, राजेंद्र प्रसाद जैसे बहुत से भारतीय वकीलों ने अपनी वकालत बंद कर दी।

इस आन्दोलन में सभी भारत वासियों से स्कूलों, कॉलेजों और न्यायालयों में न जाने और अंग्रेज सरकार का कर न चुकाने का आग्रह किया गया | जिसका मतलब यह था की अंग्रेज सरकार के साथ सभी ऐच्छिक एवं अनैच्छिक संबंधों का परित्याग करना | गाँधी जी ने अपने संघर्ष को जारी रखते हुए उन्होंने खिलाफत आन्दोलन में भी भाग लिया |

परन्तु इसी आन्दोलन के बीच में गोरखपुर जिले के चौरी- चौरा  नामक स्थान पर भारतीय जनता शांतिपूर्वक से जुलूस प्रदर्शन कर रही थी | ब्रिटिश पुलिस ने उन प्रदर्शनकारियों को जबरदस्ती प्रदर्शन करने से मना कर दिया | परन्तु भारतीय जनता ने अपना प्रदर्शन जारी रखा | इस बिगडती हुई स्थिति को नियंत्रित करने के लिए सब-इंस्पेक्टर पृथ्वी पाल ने प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया |

जिसमें तीन लोग मारे गए और कई घायल हो गए | इससे प्रदर्शनकारियों में गुस्सा और तेज हो गया और इसके विरोध में 4 फ़रवरी 1922 को चौरी-चौरा के एक पुलिस थाने में आग लगा दी | जिसमे 22 पुलिसकर्मी और 3 आम नागरिकों की जान चली गयी | इस घटना से महात्मा को एक बड़ा झटका लगा और 12 फ़रवरी1922 को बारदोली में हुई कांग्रेस की बैठक में असहयोग आन्दोलन के समाप्ति की घोषणा कर दी |

स्वराज और नमक सत्याग्रह आन्दोलन (महात्मा गाँधी का दांडी मार्च) :-

1929 में दिसंबर के अंत में कांग्रेस ने अपना वार्षिक अधिवेशन लाहौर में किया था | यह अधिवेशन डॉ दृष्टियों से महत्वपूर्ण था: जवाहरलाल नेहरु का अध्यक्ष के रूप में चुनाव और ‘पूर्ण स्वराज’ अथवा ‘पूर्ण स्वतंत्रता’ की उद्घोषणा|

इसके बाद अब एक बार फिर से राजनीति की गति बढ़ गयी थी | 26 जनवरी 1930 को विभिन्न स्थानों पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया और देशभक्ति के गीत गाकर ‘स्वतंत्रता दिवस’ मनाया |

दांडी मार्च नमक सत्याग्रह आन्दोलन का प्रारंभ

स्वतंत्रता दिवस के मनाये जाने के तुरंत बाद महात्मा गाँधी ने घोषणा कि वे ब्रिटिश भारत के सर्वाधिक घृणितकानूनों में से एक, जिसने नमक के उत्पादन और विक्रय पर राज्य को एकाधिकार दे दिया था | उसको तोड़ने के लिए एक यात्रा का नेतृत्व करेंगे |नमक एकाधिकार के जिस मुद्दे का उन्होंने चयन किया था वह गाँधी जी की कुशल समझदारी का एक अन्य उदहारण था | प्रत्येक भारतीय में नमक का अपरिहार्य था लेकिन इसके बावजूद भी उन्हें घरेलू प्रयोग के लिए भी नमक बनाने से रोका गया और इस तरह उन्हें दुकानों से ऊंचे दामों पर खरीदने के लिए बाध्य किया गया |

अपनी दांडी मार्च की यात्रा शुरू करने से पहले ही इसकी सूचना लार्ड इरविन को दे दी थी परन्तु इरविन उनकी इस कारवाही के महत्व को न समझ सके | इसके बाद महात्मा गाँधी ने 12 मार्च 1930 को साबरमती में अपने आश्रम से समुद्र की ओर चलना शुरू कर दिया | तीन हफ्ते बाद महात्मा गाँधी अपने गंतव्य स्थान पर पहुंचे | वहां पर उन्होंने मुट्ठी भर नमकबनाकर खुद को कानून की निगाहों में खुद को अपराधी बना दिया |

द्वितीय विश्व युद्ध और भारत छोड़ो आन्दोलन

यह दौर द्वितीय विश्व युद्ध का था जा महात्मा गाँधी ने क्रिप्स मिशन की विफलता के बाद ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अपना तीसरा बड़ा आन्दोलन छेड़ने का फैसला लिया | 8 अगस्त 1942 को शुरू हुए इस आन्दोलन को “भारत छोड़ो” आन्दोलन का नाम दिया गया | हाँलाकि महात्मा गाँधी को फ़ौरन ही गिरफ्तार कर लिया गया था लेकिन देशभर के युवा कार्यकर्त्ता हड़तालों और तोड़फोड़ की कारवाइयों के रूप में इस आन्दोलन को चलाते रहे | इसके बाद अंग्रेज सरकार ने आन्दोलन के खिलाफ सख्त कारवाही की परन्तु फिर भी इस विद्रोह को दबाने में सरकार को कई वर्ष लग गए | इसके बाद जून 1944 में द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद महात्मा गाँधी को रिहा कर दिया |

स्वतंत्रता प्राप्ति और भारत का विभाजन

15 अगस्त 1947 को राजधानी में हो रहे किसी भी उत्सव में भाग नहीं लिया | उस समय वे कलकत्ता में थे लेकिन उन्होंने वहाँ भी किसी भी कार्यक्रम में भाग नहीं लिया और न ही झंडा फहराया | गाँधी जी उस दिन उपवास पर थे | उन्होंने इतने दिन तक जिस स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया था वह एक अकल्पनीय कीमत पर उन्हें मिली थी | उनका राष्ट्र आजाद था; हिन्दू-मुसलमान एक-दूसरे के गर्दन पर सवार थे |

जब भारत स्वतंत्र हुआ तब दो धार्मिक समूहों के बीच लड़ाई छिड़ गई | मुसलमान और हिंदू आपस में लड़ने लगे | मुसलमान अपना एक अलग देश चाहते थे | गांधी चाहते थे कि सभी लोग शांति से रहें|लेकिन उन शहरों में जहां दोनों धार्मिक समूह रहते थे वहां भयानक लड़ाइयाँ शुरू हुईं |

फिर गांधी ने अपना दूसरा उपवास शुरू किया|उन्होंने अपने लोगों से कहा कि वे तब तक खाना नहीं खाएंगे जब तक कि लड़ाई और दंगे बंद नहीं होते | तीन दिन बाद, हिंदू, मुस्लिम और ईसाई नेताओं ने एक-दूसरे के साथ मिलने का वादा किया | उसके बाद ही गांधी ने संतरे का रस पिया और अपना अनशन खत्म किया |

लेकिन गांधी के प्रयासों के बावजूद, देश का विभाजन हुआ|हिंदू लोग भारत में ही रहे | मुस्लिमानों ने पाकिस्तान नामक एक नए देश का गठन किया | यह सभी भारतीयों के लिए एक भयानक समय था|लाखों लोगों को अपने घरों और धंधों को छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा | गांधी, भारत के इस टूटने से कभी भी उबर नहीं पाए | उन्हें लगा कि उन्होंने पर्याप्त मेहनत नहीं की थी |

महात्मा गाँधी की मृत्यु

एक दिन गांधी ने अपने एक अनुयायी से कहा, “अगर कोई मुझे मारने की कोशिश करेगा तो मैं अपनी आखिरी सांस में भगवान का नाम लूँगा | उससे मैं अपने कातिल को माफ कर दूंगा |” तीन दिन बाद, 30 जनवरी, 1948 को गांधी एक प्रार्थना सभा का नेतृत्व करने गए|उन्हें सुनने के लिए बड़ी संख्या में उनके अनुयायी और दोस्त वहां मौजूद थे | गाँधी मंच तक पहुँचने के लिए लोगों के बीच से गुज़रे लोगों का अभिवादन करने के लिए उन्होंने अपने दोनों हाथ जोड़े |

एक हिंदू व्यक्ति नाथूराम गोडसे, जो गाँधी को भारत के विभाजन के लिए गांधी को दोषी मानता था, गांधी के पास आया|उसने पिस्तौल से निशाना साधा और तीन गोलियां चलाईं|जैसे ही गांधी अपने दोस्तों की गोद में गिरे, उनके लबों पर भगवान का नाम था|इस शब्द के साथ, उन्होंने अपने हत्यारे को माफ कर दिया था|हत्यारे को गिरफ्तार कर मौत की सजा दी गई|गांधी के बेटे नहीं चाहते थे कि उस हत्यारे को फांसी दी जाए|उन्हें पता था कि गांधी उस के खिलाफ होंगे|उनके पिता ने अपने हत्यारे को माफ कर दिया होगा. पर उनकी बात किसी ने नहीं सुनी.. उस हत्यारे को फांसी दे दी गई|

महात्मा गाँधी के सिद्धान्त

  • सत्य
  • अहिंसा
  • शाकाहारी
  • ब्रह्मचर्य
  • सादगी
  • विश्वास

लेखन कार्य एवं प्रकाशन

लिखने की प्रवृत्ति गाँधीजी में आरम्भ से ही थी। अपने संपूर्ण जीवन में उन्होंने वाचिक की अपेक्षा कहीं अधिक लिखा है। चाहे वह टिप्पणियों के रूप में हो या पत्रों के रूप में। कई पुस्तकें लिखने के अतिरिक्त उन्होंने कई पत्रिकाएँ भी निकालीं और उनमें प्रभूत लेखन किया। उनके महत्त्वपूर्ण लेखन कार्य को निम्न बिंदुओं के अंतर्गत देखा जा सकता है:

महात्मा गाँधी द्वारा प्रकाशित पत्रिकाएँ

महात्मा गाँधी एक सफल लेखक थे|उन्होंने अपने जीवन काल में कई परिकाओं का प्रकाशन किया|जिसमें हरिजनइंडियन ओपिनियनयंग इंडिया  आदि सम्मिलित हैं | जब वे भारत में वापस आए तब उन्होंने ‘नवजीवन’ नामक मासिक पत्रिका निकाली। बाद में नवजीवन का प्रकाशन हिन्दी में भी हुआ |

महात्मा गाँधी द्वारा प्रकाशित प्रमुख पुस्तकें

  • हिन्द स्वराज
  • दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह का इतिहास
  • सत्य के प्रयोग (आत्मकथा)
  • गीता माता
  • सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
  • महात्मा गांधी के विचार
  • मेरे सपनों का भारत