भारत सरकार अधिनियम 1919 –
सन् 1919 में भारत सरकार द्वारा ब्रिटिश सांसद में भारत सरकार अधिनियम 1919 पारित किया किया गया | जिसमें भारतीयों द्वारा अपने देश के प्रशासन में अपनी हिस्सेदारी बढ़ने की मांग की थी|यह अधिनियम 1919 से 1921 तक उस समय के ब्रिटिश सचिव मोंटेग्यू और ब्रिटिश वायसराय लार्ड चेम्सफोर्ड के नेतृत्व में चला|
इस अधिनियम में मोंटेग्यू और लार्ड चेम्सफोर्ड के नेतृत्व में कई सारे संवैधानिक सुधार किये गए थे | इसलिए यह सुधर मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड के सुधार के नाम से प्रसिद्ध हुए|
भारत सरकार अधिनियम 1919 के प्रमुख सुधार –
इस अधिनियम ने भारतीयों की देश के प्रशासन में हिस्से दारी बढ़ने के साथ-साथ भारतीय सरकार के कार्य करने के तरीकों में कई महत्त्वपूर्ण सुधार किये | इस अधिनियम के द्वारा द्वैध शासन प्रणाली शुरू की गयी | इस प्रणाली में दो वर्ग होते थे पहला वर्ग कार्यकारी परिषद् और दूसरा वर्ग मंत्री परिषद् |
इस अधिनियम के द्वारा किये गए सुधार निम्नवत हैं-
प्रांतीय सरकार –
इस अधिनियम द्वारा भारतीय प्रांतीय सरकार के कार्यकारणी और विधान सभा में बहुत ही महत्त्वपूर्ण सुधार किये गए | जिनमें से कुछ प्रमुख सुधार निम्नवत हैं-
कार्यकारणी सभा –
- इस अधिनियम द्वारा भारत में द्वैध शासन प्रणाली शुरू की गयी|
- इस शासन प्रणाली में प्रशासकों को दो वर्गों में विभाजित किया गया | जिसमें प्रथम वर्ग प्रथम वर्ष कार्यकारी परिषद् और दूसरा वर्ग मंत्री परिषद था|
- इस अधिनियम में राज्यपाल प्रान्त का प्रमुख अधिकारी होता था|
- राज्यपाल अपने कार्यकारी परिषदों के साथ ही अपनी अरक्षित सूची का प्रभारी भी होता था|इस सूचियों के अंतर्गत कानून और व्यवस्था, सिचाई, वित्त, भू-राजस्व, आदि विषय शामिल थे|
- प्रत्येक सूची के आधार पर उसके अपने अलग-अलग मंत्री होते थे|इस सूचियों में शिक्षा, स्थानीय सरकार, उत्पाद शुल्क, उद्योग, सार्वजानिक कार्य, धार्मिक बंदोबस्त आदि के विषय शामिल थे|
- इस अधिनियम में मंत्री अपने विषय सूची के प्रति उत्तर दाई होते थे|
- मंत्रियों को विधान परिषद् के निर्वाचित सदस्यों में से चुना जाता था|
- इसमें कार्यकारी मंत्रियों के विपरीत विधायक परिषद् के प्रति उत्तरदायी नहीं नथे|
- राज्य सचिव और गवर्नर जनरल आरक्षित सूची के मामलों में हस्तक्षेप कर सकते थे लेकिन यह स्थानांतरित सूची के लिए प्रतिबंधित था|
विधान सभा –
- इस अधिनियम के अंतर्गत विधान सभाओं का आकार बढाया गया |
- इसमें सांप्रदायिक वर्ग मतदाता थेऔर कुछ महिलाओं को मतदान करने का अधिकार था|
- इसमें किसी भी विविधेयक को पारित करने के लिए राज्यपाल की स्वीकृति की आवश्यकता होती थी|
- इसमें राज्यपाल को वीटो शक्ति भी प्राप्त थी | जिससे वह अध्यादेश भी जारी कर सकता था|
केन्द्रीय सरकार-
इस अधिनियम द्वारा केन्द्रीय सरकार में बहुत ही महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किये गए जो निम्नवत हैं-
कार्यकारणी सभा-
- इस अधिनियम के तहत केन्द्रीय सरकार की कार्यकारणी सभा का मुख्य अधिकारी गवर्नर जनरल था|
- इसमें प्रशासन के लिए दो सूचियों का निर्माण किया गया जिसमें प्रथम केन्द्रीय सूची और द्वितीय प्रांतीय सूची थी|
- प्रांतीय सूची प्रान्तों के अधीन थी परन्तु केंद्र ने अपनी केन्द्रीय सूची का ध्यान रखा |
- इसमें वायसराय की कार्यकारणी परिषद् में 8 सदस्य थे जिनमें 3 सदस्य भारतीय होते थे|
- गवर्नर जनरल भी अपने अध्यादेश जारी कर सकता था |
- गवर्नर जनरल उन विधेयकों को भी प्रमाणित करने का अधिकार था, जिन्हें केन्द्रीय विधान मंडल द्वारा अस्वीकृत कर दिया गया हो|
विधान सभा –
- इस अधिनियम के तहत विधान सभा में एक द्विसदनीय विधायिका पारित की गयी|
- इस विधायिका का प्रथम सदन विधान मण्डल और दूसरा सदन राज्य परिषद् थी|
- राज्यसभा विधान सभा का उच्च सदन और विधान मंडल विधान सभा का निम्न सदन था|
- विधान सभा के मनोनीत सदस्यों को गवर्नर जनरल द्वारा एंग्लो-इंडियन या भारतीय ईसाई से नामित किया गया|
- विधान सभा के इन मनोनीत सदस्यों का कार्य काल 3 वर्ष का था|
राज्य परिषद् –
- इस परिषद् में केवल पुरुषों को ही मनोनीत किया गया जिनका कार्य काल 5 वर्ष का था |
- इस अधिनियम के अनुसार राज्य परिषद् में 60 सदस्य थे | जिनमें से 27 को नियुक्त किया गया और 33 सदस्यों को चुनाव के माध्यम के चुना गया |
- चुने गए सदस्यों में 16 साधारण, 11 मुस्लिम, 3 यूरोपीय, और 1 शिख था |
- इस अधिनियम के अनुशार विधायक सवाल पूछ सकते थे और बजट के एक हिस्से पर मतदान भी कर सकते थे|
- बजट का 25% वोट के अधीन था|
- इस अधिनियम के अनुसार किसी भी कानून को बनाने के लिए पहले दोनों सदनों में एक विधेयक पारित होना आवश्यक था|
- दोनों सदनों के बीच में किसी भी आपसी गतिरोध को दूर करने के लिए तीन उपाय थे-
- संयुक्त समितियाँ
- संयुक्त सम्मलेन
- संयुक्त बैठकें |
गवर्नर गनरल –
- गवर्नर गंरल विधान सभा का एक प्रमुख अधिकारी था|
- किसी भी विधेयक को पारित करने के लिए गवर्नर जनरल की सहमती आवश्यक होती थी|भले ही इसे दोनों सदनों द्वारा पारित कर दिया गया हो|
- गवर्नर को विधायिका की सहमति के बिना ही विधेयक पारित करने का अधिकार था|
- कोई भी विधेयक यदि गवर्नर को देश की शांति के लिए हानिकारक लगता है तो वह इसे पारित होने से रोक सकता है|
- गवर्नर को सदन में किसी भी प्रश्न स्थगन प्रस्ताव या बहस को अस्वीकार करने का अधिकार था |