असहयोग (नॉन कॉपरेशन) आन्दोलन
एक लम्बे समय से ब्रिटिश सरकार भारत की जनता पर अत्याचार एवं उसका शोषण कर रही थी|इस अत्याचार एवं शोषण से पीड़ित जनता ने महात्मा गाँधी के नेतृत्व में भारत का प्रथम जनांदोलन असहयोग आन्दोलन का प्रारंभ किया|इस आन्दोलन को मध्यम वर्गीय शहरी, किसानों, श्रमिकों एवं आदिवासियों का पूर्ण समर्थन मिला|
1914- 1918 यह समय प्रथम विश्व युद्ध का था जब ब्रिटिश सरकार के अधिकारी सर सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा रॉलेट एक्ट पारित किया गया|जिसमें ब्रिटिश सरकार ने प्रेस पर प्रतिबन्ध लगा दिया था और किसी भी संदेहजनक व्यक्ति को बिना किसी जाँच-पड़ताल के अनिश्चित काल के लिए कारावास डाल दिया जा सकता था|
महात्मा गाँधी ने इस अधिनियम का बहुत ही विरोध किया|भारतीय जनता को इस अधिनियम (रॉलेट एक्ट) मुक्ती से दिलाने के लिए उन्होंने भारतीय जनता के बीच में एक जन अभियान चलाया|इस जन अभियान का समर्थन भारत की सम्पूर्ण जनता ने किया|
अधिनियम (रॉलेट एक्ट) का पंजाब की जनता ने विशेष रूप से कड़ा विरोध किया क्योंकि इस क्षेत्र के बहुत से लोगों ने युद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार की बहुत ही अच्छीतरह से मदद की थी|परन्तु ब्रिटिश सरकार को जिन लोगों को ईनाम देना चाहिए था उनको इस एक्ट के अंतर्गत जेल में डाल दिया गया|इस एक्ट का विरोध कर रहे महात्मा गाँधी को पंजाब जाते समय ही कैद कर लिया|
असहयोग आन्दोलन का प्रारंभ
असहयोग आन्दोलन का औपचारिक रूप से प्रारंभ 1 अगस्त 1920 को हुआ था|इसके बाद में महात्मा गाँधी ने इसका प्रस्ताव भारतीय कांग्रेस को भेजा|इस प्रस्ताव को 4 सितम्बर 1920 कलकत्ता के अधिवेशन में स्वीकृत करते हुए भारतीय कांग्रेस ने इस आन्दोलन को अपना औपचारिक आन्दोलन स्वीकृत कर लिया|
इस आन्दोलन के प्रारंभ होने के बाद में महात्मा गाँधी जी ने “केसर ए हिन्द” तथा जमुनालाल बजाज ने “रायबहादुर” की उपाधि त्याग दी|इसके साथ सी. आर. दास, मोतीलाल नेहरु, जवाहरलाल नेहरु, वल्लभ भाई पटेल, राजेंद्र प्रसाद जैसे बहुत से भारतीय वकीलों ने अपनी वकालत बंद कर दी|
इस आन्दोलन में सभी भारत वासियों से स्कूलों, कॉलेजों और न्यायालयों में न जाने और अंग्रेज सरकार का कर न चुकाने का आग्रह किया गया|जिसका मतलब यह था की अंग्रेज सरकार के साथ सभी ऐच्छिक एवं अनैच्छिक संबंधों का परित्याग करना|गाँधी जी ने अपने संघर्ष को जारी रखते हुए उन्होंने खिलाफत आन्दोलन में भी भाग लिया|
आन्दोलन के कारण
- 1914- 1918 का दौर प्रथम विश्व युद्ध का था|जिसके कारण भारत में बहुत-सी आर्थिक समस्याएँ उत्पन्न हो गयी|फलतः महंगाई बहुत ही अधिक बढ़ गई थी|भारत की जनता इस समस्या से बहुत ही अधिक परेशान थी|परन्तु अंग्रेज सरकार ने इस समस्या पर कोई भी ध्यान नहीं दिया|जिससे भारतीय जनता इस पर भड़क गयी|
- प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों से मदद मांगी और इसके बदले वादा किया कि युद्ध के समाप्त होने पर भारत में संवैधानिक सुधार किये जायेंगे, लेकिन उन्होंने इस वादे को पूरा नहीं किया और इसके बदले रौलेट एक्ट भारतीय जनता पर लगा दिया|
- इसके अतिरिक्त, अमृतसर के जालियांवाला बाग में शांतिपूर्वक विरोध कर रही निहत्थी भारतीय जनता पर अंग्रेजों ने गोलियां चलवा दी|जिस कारण से लगभग 1200 से अधिक लोगों की मौत हो गयी और लगभग 2000 लोग घायल हो गए|
- जालियांवाला बाग हत्याकांड के खिलाफ जाँच करने के लिए हंटर नामक एक कमेटी गठित की गयी|जिसने इस घटना के दोषी जनरलडायर को निर्दोषी करार दे दिया|जिससे भारतीय जनता भड़क गयी और इनके इस गुस्से ने असहयोग आन्दोलन का रूप ले लिया|
आन्दोलन का कार्यक्रम
- इस आन्दोलन में कांग्रेस के नेतृत्व में सभी ब्रिटिश सरकार के विद्यालयों और महाविद्यालयों का बहिष्कार कर राष्ट्रीय विद्यालयों और महाविद्यालयों की स्थापना की गयी|
- इसके अतिरिक्त, अपने विवादों को निपटाने के लिए पंचायतों की स्थापना की गयी|
- इस आन्दोलन में सभी विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया गया और हांथों से कपडा बुनाई पर जोर दिया गया |
- इसमें छुवा-छूत का विरोध किया गया जिससे राष्ट्रीय एकता बढ़े जिससे आन्दोलन को पूर्ण रूप से सभी का सहयोग प्रदान हो सके|
- इसके अंतर्गत सभी सरकारी समारोहों को बहिष्कृत कर दिया गया और इसके साथ-साथ महात्मा गाँधी जी ने “केसर ए हिन्द” तथा जमुनालाल बजाज ने “रायबहादुर” की उपाधि त्याग दी और जूलू युद्ध पदक और बोअर पदक अंग्रेजों को लौटा दिए गए|इसके साथ सी. आर. दास, मोतीलाल नेहरु, जवाहरलाल नेहरु, वल्लभ भाई पटेल, राजेंद्र प्रसाद जैसे बहुत से भारतीय वकीलों ने अपनी वकालत बंद कर दी|
- इस आन्दोलन में सभी से आग्रह किया गया कि वे स्कूलों, कॉलेजों और न्यायालयों में न जाये और स्थानीय पदों पर कार्यरत भारतीय लोग अपने पदों से इतीफा दे दें|इसके साथ-साथ भारतीय किसनों से अंग्रेज सरकार का कर न चुकाने का भी आग्रह किया गया|
- इस आन्दोलन के दौरान 1921 में प्रिन्स ऑफ़ वेल्स के भारत आगमन पर उनका स्वागत काला झंडा दिखा कर किया गया|
आन्दोलन की समाप्ती
इसी आन्दोलन के बीच में गोरखपुर जिले के चौरी- चौरा नामक स्थान पर भारतीय जनता शांतिपूर्वक से जुलूस प्रदर्शन कर रही थी|ब्रिटिश पुलिस ने उन प्रदर्शनकारियों को जबरदस्ती प्रदर्शन करने से मना कर दिया|परन्तु भारतीय जनता ने अपना प्रदर्शन जारी रखा|इस बिगडती हुई स्थिति को नियंत्रित करने के लिए सब-इंस्पेक्टर पृथ्वी पाल ने प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया|
जिसमें तीन लोग मारे गए और कई घायल हो गए|इससे प्रदर्शनकारियों में गुस्सा और तेज हो गया और इसके विरोध में ४ फ़रवरी 1922 को चौरी-चौरा के एक पुलिस थाने में आग लगा दी|जिसमे 22 पुलिसकर्मी और 3 आम नागरिकों की जान चली गयी| इस घटना से महात्मा को एक बड़ा झटका लगा और 12 फ़रवरी1922 को बारदोली में हुई कांग्रेस की बैठक में असहयोग आन्दोलन के समाप्ति की घोषणा कर दी|
असहयोग आन्दोलन के परिणाम
इस आन्दोलन के फलस्वरूप ब्रिटिश सरकार भारतीय जनता की एकता और उसके क्रोध से परिचित हो गयी थी|इस आन्दोलन ने देश भर में रहने वाले सभी भारतीय जनता की विचारधारा बदल दी और सभी के मन में एक राष्ट्र प्रेम की भावना जागृत कर दी|इसके साथ-साथ इस अनोलन ने खिलाफत आन्दोलन पर जोर दिया जिसके फलस्वरूप हिन्दू-मुस्लिम में एकता की भावना विकसित हुई|
इस आन्दोलन ने ब्रिटिश सरकार केशासन-व्यवस्था के सम्पूर्ण ढाँचे को अस्त-व्यस्त कर दिया|इससे अंग्रेजों को लगने लगा के बिना इनके सहयोग के वे आगे नहीं बढ़ पाएंगे|लोगों ने विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार कर दिया और स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने लगे|जिसके परिणाम स्वारूप भारतीय कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन मिला|भारतीय कांग्रेस ने हिंदी को राष्ट्र भाषा के रूप में घोषित कर दिया|